Friday, June 30, 2023

श्री स्‍वर्गाश्रम बिनसर महादेव मंदिर: आलोकिक शांति का केन्‍द्र


Shree Swargashram Binsar Mahadev Temple
Shree Swargashram Binsar Mahadev Temple

दोस्‍तों जब हम रानीखेत से भतरोजखान की ओर निकले तो ताड़ी खेत से 2 किमी दूर हमें जंगलों के बीच एक आश्रम दिखायी दिया तो हम उत्‍सुकता वश वहां चले गये, वहां पहुंचने पर हमने जो देखा वह अद्भुत था, चीड के जंगल के बीच ताड़ के वृक्षों के तले एक बेहद शानदार आश्रम बना हुआ है, जिसका नाम है श्री स्‍वर्गाश्रम बिनसर महादेव गीता भवन। श्रृद्धालु इस रमणीय स्‍थल पर ध्‍यान योग के माध्‍यम से अनंन्‍त शांति प्राप्‍त कर सकते हैं।

Shree Swargashram Binsar Mahadev Temple| Entry Gate

जब हमने अंदर प्रवेश किया तो वहां अनेक छोटे-छोटे मंदिर बने हुए है और बाबा मोहन गिरी महाराज की समा‍धि स्‍थल भी है क्‍योंकि श्री पंचनाम जूना अखाड़ा के ब्रह्मलीन नागा बाबा मोहन गिरा महाराज ने ही सन् 1959 में इस मंदिर का जीर्णोंधार करवाया था, बताते हैं कि इससे पहले यहां एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था। जून के महीने में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन यहां एक बडे यज्ञ का आयोजन होता है जिसमें बहुत-बहुत दूर-दूर से लोग आकर शामिल होते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी की पूरी रात को जो महिला हाथ में दिया लेकर प्रार्थना करती है उसकी मन इच्‍छा पूरी होती है। 

Shree Swargashram Binsar Mahadev Temple

मैंने स्‍वर्गाश्रम बिनसर महादेव मंदिर के बारे एक छोटा सा रोचक वीडियो भी बनाया है जो  निश्चित तौर पर आपको पसंद आयेगा, वीडियो को देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें तथा मेरा चैनल सब्‍सक्राइब करना न भूलें:


इतिहास

कुछ जानकारों के अनुसार स्‍वर्गाश्रम बिनसर महादेव मंदिर आदिकाल का बताया जाता है जबकि कुछ इसे 600 वर्ष मानते हैं। जबकि कुछ बताते हैं कि इसे राजा पीथू ने अपने पिता बिन्‍दू की याद में बनवाया था। सच्‍चाई जो भी हो लेकिन यहां एक दिव्‍य शांति का एहसास मुझे हुआ। 

बताया जाता है कि वर्ष 1970  से इस मंदिर में अखंड ज्योति जल रही है। महंत  108 श्री महंत रामगिरि जी महाराज स्‍वर्गाश्रम बिनसर महादेव मंदिर की सम्पूर्ण व्यवस्थाएं देखते हैं तथा यहाँ श्री शंकर शरण गिरी संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की गई है।

यहां पर धर्मशाला भी बनी है इसलिए ठहरने की समस्‍या नहीं हैं लेकिन प्रतिवर्ष मई जून में आयोजित होने वाले यज्ञ, गीता पाठ एंव शिव महापुराण के दौरान यहां बहुत ज्‍यादा भीड-भाड होती है इसलिए पूरी व्‍यवस्‍था के साथ आयें।।

ध्‍यान रखने योग्‍य बातें:

  • मंदिर के भीतर कैमरा ले जाने की अनुमति नहीं है
  • मंदिर में लगी घंटियों को बजाने की भी मनाही है
  • शालीन कपडे पहनें

आपको लेख  कैसा लगा, कमेंट के माध्‍यम से अवश्‍य बतायें।

Friday, June 9, 2023

पिंडारी ग्‍लेशियर ट्रेक का रोमांचक अनुभव कीजिए

Zero Point, Pindari Glacier, Uttarakhand


पिन्‍डारी ग्‍लेशियर ट्रेक भारत के सबसे पुराने ट्रेक्‍स में से एक है साथ ही यह कुमाऊं के लोकप्रिय ट्रेक्‍स में से एक भी है जिसका कारण है कि पर्यटक ग्‍लेशियर के जीरों प्‍वाइंट तक पहुंच सकते हैं यानि कि ग्‍लेशियर के ठीक नीचे तक।

2016 से मैं इस ट्रेक को करने की सोच रहा था लेकिन प्‍लान बना नहीं। इस बार भी हमारा असली प्‍लान त्रियुगी नारायण जाने का था लेकिन केदारनाथ यात्रा के कारण हमने प्‍लान बदलने का निर्णय लिया और पिंडारी ग्‍लेशियर जाने का मन बनाया।

14 मई 2023 को मैं, प्रेम नेगी, जगदीप नेगी और सूरज नेगी मानिला, डोटियाल, जैनल, चौखुटिया, मासी, सोमेश्‍वर होते हुए करीब 2 बजे बागेश्‍वर पहुंचे, यहां पर हमने खाना खाया और अपने आज के डेस्‍टीनेशन खाती गांव की ओर निकल गये। कपकोट और भराडी पार करने के बाद 1 पुल आता है जहां से हमें पुल पार करके जाना था लेकिन हम दायीं ओर सौंग, लोहारखेत की ओर चले गये हालांकि हम यहां से भी जा सकते थे लेकिन सौंग में पहुंचने पर पता चला कि रास्‍ते में ट्रक खराब होने के कारण रास्‍ता बंद है। हमने वापिस उसी पुल के पास रीठा बगड आने का फैसला किया जिसमें हमारा काफी समय बर्बाद हो गया। 

पूरा वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें




रीठा बगड़ में ही शाम हो चली थी और आगे का रास्‍ता ऊबड़-खाबड़ होता चला गया जिससे हमारी स्‍पीड कम हो गयी और करमी पहुंचते पहुंचते हमें रात हो गयी थी। करमी में पता किया तो पता चला कि अभी हमें 25 किलोमीटर और जाना है और रास्‍ता पूरा कच्‍चा है। हमने अपनी यात्रा जारी रखी, गौछम से पहले हमने कुछ लाइटे चमकती हुई देखी, पास जाने पर पता लगा कि वे पास के गांव की महिलायें हैं, उन्‍होंने हमें रुकने के लिए कहा, हमने थोडा घबराते हुए कार रोकी तो उनमें से एक महिला ने पास आकर कहा – ‘क्‍या आप हमें आगे तक छोड देंगे’। मैंने उनसे पूछा – ‘आप लोग इतनी रात को कहां से आ रहे हो’। जवाब मिला – ‘कल से यहां लाइट नहीं जिसके कारण मोबाइल टावर बंद है और हमें जरुरी फोन करना था इसलिए ऊपर पहाडी तक गयी थी’। ‘ओह अच्‍छा’ मैंने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा। एक महिला के अलावा अन्‍य 3 महिलाएं कार में बैठने में थोडा घबरा रही थी। मैंने उनका हौंसला बढाने के लिए कार से बाहर उतरते हुए कहा ‘हम भी पहाड़ी ही हैं इसलिए आप बेझिझक होकर हमारे साथ चल सकती हैं’। मेरा ऐसा कहने के बाद वे थोड़ी आश्‍वस्‍त हो गयीं और कार में बैठ गयीं।

महिलाओं को उनके घर के पास उतारने के बाद हम आगे बढने लगे। रात के 9 बज रहे थे और अंजान जगह पर हम फंस गये किसी से पूछ भी नहीं सकते थे। खाती गांव तक रोड़ का काम जोरों पर है और पिछली रात तूफान और भारी बारिश से रोड़ पर कई जगह मलवा आया हुआ था और फिसलन भी बहुत थी जिसके कारण कार चलाने में बहुत परेशानी हो रही थी, आखिरकार एक जगह पर फिसलन के कारण कार ने चढने से मना कर दिया जिससे हम बहुत घबरा गये थे। हमने टायर्स के नीचे पत्‍थर लगाये जिससे बात बन गयी और हम आगे बढने लगे। आगे चलकर खाती गांव से आधा किलोमीटर पहले पुल बनाने का काम चल रहा था और बारिश से रोड़ पर मलवा आने के कारण हमें रास्‍ता दिखा ही नहीं और हम वापिस आ गये लगा आज रात भूखे प्‍यासे गाड़ी में ही बितानी पड़ेगी लेकिन जैसे ही हम आधा किलोमीटर वापिस आये वहां पर हमें एक गेस्‍ट हाउस दिखा, रात के साढ़े नौ बज चुके थे, हमने बहुत-बहुत जोर-जोर से आवाज लगायी तो आखिरकार एक व्‍यक्ति बाहर आये, गांव में लोग जल्‍दी सो जाते हैं इसलिए वह व्‍यक्ति नींद में ही था, कुछ देर समझाने पर वह हमें कमरा देने के लिए राजी हो गया लेकिन जब हमने खाने के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह अकेला है और उसका बेटा भी सोने चला गया है इसलिए खाना नहीं मिल पायेगा। बहुत समझाने पर उसने कहा चलो मैं उसे बुलाकर लाता हूं और उसे लेने चला गया जिसके बाद हमने चैन की सांस ली। होटल वाले ने गर्मा-गर्म दाल-भात बनाया जो उस समय किसी लग्‍जरी से कम नहीं लग रहा था। हमने खाना खाया और सो गये, पता ही नहीं चला कब सुबह हो गयी।

पहला दिन – खाती से फुरकिया (16 किमी) 

Khati Village, Pindari Glacier (c)

अगली सुबह हम लोग सूरज की पहली किरण के साथ आज का अपना सफर शुरु करने के लिए उत्‍साहित थे। आज आसमान साफ था और धूप भी निकल आयी थी जिससे सर्दी कुछ कम हो गयी थी, नाश्‍ता करने के बाद हम ठीक 7 बजे अपने सफर की ओर निकल पड़े। जब हम रात वाली जगह पर पहुंचे तो वहां मलवा तो था लेकिन हम आगे जा सकते थे। लगभग 1 किमी चलने के बाद हम खाती गांव में पहुंच गये, यहां पर बहुत सारे होम स्‍टे हैं लेकिन रात में हम यहां तक पहुंच ही नहीं पाये थे खैर हम आगे बढने लगे, खाती गांव से ही हमारे साथ 3 भोटिया कुत्‍ते भी साथ चलने लगे लेकिन उनमें 2 तो आधे रास्‍ते से ही वापिस लौट गये लेकिन 1 भेटिया हमारे साथ जीरों प्‍वाइंट तक गया और सबसे बडी बात कई जगह पर उसने एक ट्रेक लीडर का काम किया जिससे उसके प्रति हमारा लगाव और बढ गया, रास्‍ते में हमने उसे खाना और बिस्‍कुट खिलाये। पूरे जंगल में हम 4 लोगों के अलावा हमें और कोई नहीं दिखा जिससे मुझे लगा शायद अभी यहां का सीजन पीक पर नहीं था यह शुरुआत भर थी। हम बुरांस, रिंगाल, शाल आदि के घने जंगल के बीच बने ट्रेक पर आगे बढने लगे, रास्‍ता भी ठीक-ठाक बना हुआ है और ज्‍यादा चढाई वाला नहीं था। लगभग 6 घंटे चलने के बाद हम लगभग 1 बजे द्वाली पहुंचे, द्वाली से ठीक पहले पिंडर या पिंडारी नदी पार करनी होती है द्वाली में पिंडारी और कफनी ग्‍लेशियर के पानी का संगम होता है बाद में पिंडारी नदी कर्ण प्रयाग में अलकनंदा नदी में समा जाती है। यहां पर 2013 में भयंकर बाढ आयी थी जिससे द्वाली के दोनो ओर जबरदस्‍त कटान हुआ था, KMVN गेस्‍ट हाउस बाल-बाल बच गया था। इस तबाही के निशान आपको यहां पर पहुंचने पर मिल जायेंगे। 

Pindari Glacier Trek Route

द्वाली से एक ट्रेक पिंडारी ग्‍लेशियर के लिए और दूसरा कफनी ग्‍लेशियर के लिए जाता है। हमने यहां पर दाल-भात खाया और फुरकिया के लिए रवाना हो गये। द्वाली से फुरकिया तक रास्‍ता चढाई वाला है और दूरी लगभग 5 किमी है। ऊंचाई बढने के कारण थकान ज्‍यादा महसूस हो सकती है। रास्‍ते में कई जगह एवलॉन्‍च आये हुए हैं जिन्‍हें पार करना होता है। लगभग 3 घंटे की चढाई के बाद ठीक 4 बजे हम फुरकिया पहुंच गये जैसा कि नाम से जाहिर है 3200 मीटर की ऊंचाई पर हवा बहुत तेज और ठंडी थी, पानी बर्फ से ठंडा था। ठंड के मारे हमने सारे गर्म कपड़े पहन लिए लेकिन ठंड कम नहीं हुई। यहां पर केवल 2 गेस्‍ट हाउस है एक KMVN और दूसरा PWD का। संसाधन बहुत कम हैं क्‍योंकि इतनी दूर तक सामान पहुंचाना भी अपने आप में चुनौती भरा काम है। हमने KMVN में रुकने का फैसला किया, एक बात हमेशा याद रखें तुरंत बिस्‍तर में न घुसें थोड़ी देर शरीर को वहां के मौसम के अनुकूल ढलने दें वरना आपको हाई एल्‍टीट्यूड सिकनेस हो सकती है जिसमें तेज सिरदर्द, बेचैनी और घबराहट जैसी समस्‍या हो सकती है। 

Furkiya Base Camp, Pindari Glacier


फुरकिया में भी 10 ही ट्रेकर्स ही थे, उनमें से 4 बंगाली थे बाकी के 6 पहाडी थे। मेरे ट्रेकिंग अनुभव के दौरान मैंने गौर किया है जहां भी मैं गया हूं वहां मुझे बंगाली ट्रेकर्स जरुर मिलते हैं। हम थोड़ी देर बाहर घूमें और फिर कमरे में बैठ गये फिर तो खाना खाने ही बाहर निकले। खाना खाने के बाद हम लगभग 10 बजे सो गये। 

दूसरा दिन - फुरकिया से पिंडारी ग्‍लेशियर और वापिस खाती तक (लगभग 30 किमी.)

अगली सुबह प्रेम, जगदीप और सूरज ग्‍लेशियर के जीरों प्‍वाइंट तक चलने के लिए टाल-मटोल करने लगे, जगदीप नेगी और सूरज दोनों पहली बार आये थे इसलिए उनकी हवा एकदम टाइट थी इसलिए मैंने कहा – ‘बस 1 घंटा चलेंगे, उसके बाद हम वापिस आ जायेंगे’। तीनों तैयार हो गये, कुछ दूर ही चले होंगे कि तीनों वापिस जाने की जिद करने लगे लेकिन मैं उन्‍हें थोड़ा और चलते हैं कहते-कहते उन्‍हें आधे रास्‍ते तक ले आया था, जिसके बाद उनके पास आगे बढने का कोई चारा नहीं था, तीनों मुझे खूब कोस रहे थे लेकिन मैंने तो ठान रखा था कि मैं जीरों प्‍वाइंट तक जाऊंगा। 

फुरकिया से जीरो प्‍वाइंट की दूरी लगभग 6-7 किमी है और पूरा रास्‍ता चढाई वाला है। जीरो प्‍वाइंट की समुद्रतल से ऊंचाई 3600 मीटर्स है जिससे चढने में बहुत थकान महसूस होती है इसलिए आपको अस्‍थमा या दिल की बीमारी है तो अपने डॉक्‍टर की सलाह जरुर ले लें क्‍योंकि किसी भी तरह की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या होने पर चिकित्‍सा सेवा मिलना लगभग नामुमकिन है। 

रास्‍ते में आगे बढते हुए मुझे 3 और ट्रेकर्स मिल गये और मैं उनके साथ हो लिया। धीरे-धीरे लेकिन वे तीनों भी बाबा की कुटिया तक पहुंच गये और इसके आगे एक भी कदम चलने से उन्‍होंने मना कर दिया और मैं उन्‍हें वहीं पर छोड़कर जीरो प्‍वाइंट तक चला गया। 

जीरो प्‍वाइंट से 1 किमी पहले बाबा की कुटिया है जो वहां पहुंचने वाले ट्रेकर्स को खाना खिलाते हैं लेकिन आज वे वहां पर नहीं थे और गाइड ने हमें बताया कि बाबा आज कुटिया में पहुंचने वाले हैं। बाबा 6 महीने यहां रहे हैं और बाकी के 6 महीने द्वाली के पास बनी कुटिया में रहते हैं। बाबा ने मेरे दोस्‍तों को बताया कि वे अपने आश्रम में हर साल 24 मई से मां पार्वती के जन्‍म दिन के अवसर पर 1 हफ्ते का भंडारा देते हैं जिसमें अनेको श्रद्धालु पहुंचते हैं पूरे 7 दिनों तक मेला लगा रहता है। 

Pindari Glacier Trek

 

जब मैं जीरो प्‍वाइंट पहुंचा तो वहां का नजारा बहुत ही रोमांचक लेकिन बहुत डरावना था, ग्‍लेशियर की जगह एक बहुत चौडी खाई थी जिसकी गहराई देखकर मेरा सिर चकरा रहा था। पूरा ग्‍लेशियर 2013 की आपदा में बह गया था वहां पर ग्‍लेशियर का नामो-निशान नहीं था बर्फ केवल पहाड़ों पर ही थी, ग्‍लोबल वार्मिंग के कारण यहां की बर्फ सिमटती जा रही है। 

यहां से आप नन्‍दा देवी, नंदा कोट पर्वत और ट्रेल्‍स पास का अद्भुत नजारा देख सकते हैं। ट्रेल पास ट्रेक को पार करते हुए आप पिथौरागढ की तरफ जा सकते हैं, यह एक मुश्किल ट्रेक है जिसे बहुत कम लोग ही कर पाते हैं। यह पिंडारी ग्‍लेशियर के अंत में हैं जिसे पहली बार G.W. Trail ने सन 1830 में पार किया था जिससे इसका नाम ट्रेल्‍स पास पड़ गया। 

जीरो प्‍वाइंट पर सुकून के कुछ पल बिताने के बाद जब मैं नीचे बाबा की कुटिया में आया तो बाबा जी अपनी कुटिया में पहुंच गये थे और साफ-सफाई में लगे हुए थे। मैंने इधर-उधर देखा तो मेरे तीनों साथी गायब थे, पूछने पर वहां मौजूद गाइड ने बताया कि वे तीनों काफी समय पहले लौट चुके हैं। मुझे लगा अभी कुछ ही दूर गये होंगे इसलिए मैं तेजी से नीचे उतरने लगा लेकिन मुझे वे कही नहीं दिखे पूरे रास्‍ते मैं लगभग दौड़ते हुए उन्‍हें ढूंढता रहा, पूरे 7 किमी के सुनसान ट्रेक पर मैं अकेला चल रहा था। मैंने 7 किमी का सफर लगभग 1 घंटे में पूरा कर लिया और जब मैं फुरकिया पहुंचा तो तीनों आराम से नाश्‍ता कर रहे थे। 

Pindari Glacier Zero Point

खैर, मैंने भी नाश्‍ता किया और दोपहर करीब 12.30 बजे हम फुरकिया से खाती के लिए रवाना हुए। फुरकिया से हम सुपरफास्‍ट ट्रेन की तरह नीचे उतरे और द्वाली होते हुए शाम 6 बजे खाती तक पहुंच गये थे, लोग भी हमारी स्‍पीड देखकर हैरान थे। हमने खाती में रुकने की बजाय रात होने से पहले नीचे उतरने का फैसला किया और करीब 9 बजे तक बागेश्‍वर पहुंचे गये। बागेश्‍वर पहुंचने के बाद मेरे तीनों साथियों की जान में जान आयी। लगातार चलने के कारण हम बहुत थके हुए थे इसलिए नींद कब आ गयी पता ही नहीं चला। 

अगले दिन करीब 7 बजे हम बागेश्‍वर से अपने घर की ओर निकल गये।

याद रखने वाली महत्‍वपूर्ण बातें:

  • ट्रेक थोडी कठिनाई वाला है – इसलिए फिटनेस बहुत जरुरी है 
  • ट्रेक की समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 3600 मीटर्स है – यदि आपको कोई भी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या है तो अपने डॉक्‍टर की सलाह जरुर लें। 
  • खाती से जीरों प्‍वाइंट और वापिस खाती तक ट्रेक की दूरी लगभग 50 किमी है – इसलिए फिटनेस बहुत जरुरी है। 
  • खाती से खाती तक ट्रेक को कम से कम 4 दिनों में पूरा करें। 
  • खाती से अनेक ट्रेक शुरु होते हैं जैसे कि धाकुड़ी टॉप, सुंदर डूंगा, कफनी, पिंडारी ग्‍लेशियर और ट्रेल्‍स पास। 

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