कालिंका मंदिर का प्रवेश द्वार |
देवी-देवताओं की भूमि उत्तराखंड
देवी-देवताओं की भूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में आपको हर जिले में देवी-देवताओं के अनेकों छोटे-बड़े मन्दिर मिल जायेंगे जिनके नाम अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन मान्यता और श्रृद्धा अटूट है यहां मैं जिस देवी के बारे में बताने जा रहा हूं वह दुर्गा मां के नौ अवतारों - काली, रेणुका (या रेणु), भगवती, भवानी, अंबिका, ललिता, कंदालिनी, जया, राजेश्वरी और नौ रुपों - स्कंदमाता, कुशमंदा, शैलपुत्री, कालरात्रि, भ्रह्मचारिणी, कात्यायिनी, चंद्राघंटा और सिद्धरात्रि में से एक है।
गर्भ गृह में बिराजमान मां की मूर्ति |
प्राचीन मॉं कालिंका मंदिर
कालिंका मां काली का स्वरुप है। यह कालिंका मां का मंदिर उत्तर भारत के उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह अल्मोड़ा जिले की सीमा के नजदीक पड़ता है। मंदिर का अस्तित्व कई सदियों पुराना है लेकिन अब इसके ढांचे को बदल दिया गया है और नया रुप-रंग दे दिया गया है।
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मां कालिंका का मंदिर समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और एक समतल, खाली और पथरीली जगह पर बना है एवम् हरियाली से घिरा है यहां से आपको 360 डिग्री का नजारा दिखाई देता है। इसके चारों चीड़, बांज, बुरांस एवं अन्य कई प्रजातियों के पेड़ो से भरा जंगल है। मंदिर तक पहुंचने के लिए गढ़वाल और कुमाउं दोनों ओर से कई रास्ते हैं। चढ़ाई आसान से मध्यम और कठिन है। यहां से दूधातोली पर्वतों, त्रिशूल श्रृंखला और साथ ही पश्चिम गढ़वाल के बंदरपूंछ रेंज के पर्वतों का शानदार नजारा दिखायी देता जो आपको मंत्र-मुग्ध कर देता है।
यहां का मौसम सबट्रॉपिकल है। गर्मियों में, गर्माहट भरा रहता है और सर्दियों में ठंडा लेकिन चटक धूप वाला होता है, दिसंबर के आखिरी हफ्ते से फरवरी के बीच यहां बर्फबारी भी होती है। गर्मियों में यहां का तापमान दिन के समय 25-30 डिग्री सेल्सियस और रात में 10-15 डिग्री सेल्सियस रहता है। सर्दियों में दिन के समय 15 डिग्री सेल्सियस और रात में करीब 5 डिग्री सेल्सियस रहता है।
सर्दियों की चटक धूप में मां के दर्शनों के लिए जाते श्रद्धालू |
खिली धूप और नीला आसमान दिल खुश कर देता है |
धार्मिक महत्व
मां कालिंका स्थानीय लोगों के बीच बहुत श्रृद्धेय है और सामाजिक समारोहों और धार्मिक त्योहारों में मंदिर का बहुत ज्यादा महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि बहुत समय पहले मां कालिंका एक स्थानीय गडरिये के सपनों में आयी और उस खास स्थान तक पहुंचने और मां का मंदिर बनाने के लिए कहा। यहां हर 3 साल में सर्दियों के मौसम में मेला लगता है जिसमें लाखों स्थानीय लोगों के अलावा दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। मेले की शुरुआत कई दिनों पहले बंदरकोट से हो जाती है मां अपने प्रतीक न्याजा, के साथ अपनी दीसाओं (बहनों) से मिलने उनके गांव जाती हैं और यात्रा पूरी करते हुए मेले से एक दिन पहले बंदरकोट पहुंचती है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से मन्नत मांगने पर मां कालिंका लोगों की मन्नते पूरी कर देती हैं और मन्नत पूरी होने पर लोग यहां आकर मां कालिंका को छत्र और घंटियां आदि बांधते हैं। यहां मेले के समय पर देश-विदेशों में बसे उत्तराखंडी पहुंचते हैं यहां तक बाहरी लोगों की भी मां के प्रति बहुत श्रद्धा है। वार्षिक मेले केे अलावा भी हर समय यहां लोगों का आना-जाना लग रहता है, कोई मन्नत मांगने के लिए जा रहा होता हैै तो कोई मन्नत पूरी होने पर अपना वचन पूरा करने के लिए, मंदिर में लोग बारह महीने पहुंचते रहते हैं।
मां के दर्शनों के लिए जाते लोग |
आप सर्दियों में यहां बर्फ में खेल सकते हैं |
मंदिर के प्रांगण का दृश्य |
आस-पास के दर्शनीय स्थल
उत्तराखंड के अन्य पर्यटन सर्किटों की तुलना में यह क्षेत्र लगभग अनछुआ है, खासकर गढ़वाल क्षेत्र में। यहां केवल आस-पास के लोग ही आते हैं। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए यहां पर देखने के लिए कई दर्शनीय जगहें हैं जो अभी तक एकदम अनछुई हैं। वे यहां से ट्रेक करते हुए जोगीमढ़ी, चौखाल, बिन्देश्वर महादेव (समुद्रतल से ऊंचाई 2200 मीटर) (अल्मोड़ा के नजदीक स्थित बिन्सर महादेव से भ्रमित न हों), दीबा माता मंदिर (छोटी और बड़ी दीबा – समुद्रतल से ऊंचाई 2000 - 2800 मीटर), गुजरु गढ़ी (समुद्रतल से ऊंचाई 2600 मीटर), बीरोंखाल (यह तीलू रौतेली से संबंधित जगह है) बैजरो, गौणी छीड़ा, थलीसैण, ऐंठी दीबा मंदिर, पीरसैण, दूधातोली ट्रेक (3100 मीटर) और गैरसैण जा सकते हैं।
बड़ी दीबा मंदिर से सूर्यास्त का मनमोहक नजारा |
बिन्देश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर |
कैसे पहुंचे
यहां तक सड़क मार्ग से पहुंचना बहुत ही आसान है। आप रेल से भी जा सकते हैं लेकिन रेल रामनगर तक ही जाती है। आगे का सफर बस या टैक्सी से करना होता है। मंदिर तक कई जगहों से पहुंचा जा सकता है – या तो रामनगर से रसिया महादेव होते हुए क्वाठा तक और दूसरा रामनगर, कार्बेट नेशनल पार्क, मरचूला, जड़ाऊखांद, धुमाकोट, दीबा होते हुए मैठाणाघाट, सिंदुड़ी या बीरोंखाल में उतर सकते हैं जहां से आपको पैदल चलना होगा।
आनंद विहार से बैजरो तक सीधी बस सेवा है जो शाम को 7 बजे आनंद विहार से चलती है और सुबह 6 बजे आपको मैठाणाघाट या सिन्दूड़ी में छोड़ देती है यहां से मंदिर की दूरी 4 किलोमीटर पहले 2 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई है और आगे सीधा रास्ता है, अगर बीरोंखाल में उतरते हैं तो आपको करीब 6-8 किलोमीटर चलना होगा। जबकि यदि आप रसिया महादेव होते हुए क्वाठा पहुंचे और वहा से करीब 2 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है।
निजी वाहन से जाने पर आप क्वाठा तक सड़क मार्ग से जा सकते हैं।
कहां ठहरें:
ठहरने के लिए यहां कोई लग्जरी होटल या बजट होटल नहीं है, चाहें तो टेन्ट में रह सकते हैं या आस-पास के गांव में किसी के घर में आसरा ले सकते हैं। गांव में आर्गेनिक चीजों से बना खाना खा सकते हैं और यहां के लोगों के जीवन और संस्कृति के बारे में जान सकते हैं।
अगली बार छुट्टियों पर जाने की योजना बनाते समय इस जगह पर विचार करना न भूलें।
उपरोक्त लेख मेरे अनुभवों और रिसर्च के आधार पर आधारित है। यदि आपके पास और कोई जानकारी उपलब्ध हैं तो नीचे दिए गए ईमेल एड्रेस पर संपर्क कर सकते हैं।
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