Desert Storm |
यूं तो हम शहरों में रोजाना ही इधर-उधर जाने के लिए मोटरसाइकिल चलाते हैं जो हमें कोई खुशी नहीं देता है और शहर की भीड़-भाड़ और लाल बत्तियों पर रुकते-चलते हुए हम बुरी थक जाते हैं, इससे न तो कोई रोमांच और न ही कोई उत्साह मिलता है। लेकिन जब हम उसी मोटरसाइकिल को शहर की सीमा को पार करते हुए हाइवे और पहाड़ों की बल खाती और कभी ऊपर, कभी नीचे जाती सड़कों पर चलाते हैं तो मन रोमांच और उत्साह से भर उठता है वो पल-पल बदलते नजारे, चेहरे को छूती ठंडी-ठंडी हवा और जंगलों, पानी के नालों, नदियों को पार करते हुए हम फिर से जी उठते हैं और अगर मोटरसाइकिल रॉयल इनफील्ड हो तो कहना ही क्या!
2013 की गर्मियों की बात है, मेरे पैतृक गांव सिन्दूड़ी में भगवान बद्रीनाथ जी के मंदिर में बड़ी पूजा/अनुष्ठान का आयोजन हो रहा था। वैसे तो हर साल ऐसा होता है लेकिन प्रत्येक 12 वर्ष में विशाल पूजा/अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है जिसमें, न केवल गांव के सभी देश-विदेशों में रहने वाले लोग बल्कि आस-पास के गांवों के लोग भी शामिल होते हैं।
मेरे 3 दोस्तों ने हाल ही में नयी रॉयल इनफील्ड डेजर्ट स्टॉर्म 500 खरीदी थी, इसलिए हमने प्लान बनाया कि क्यों ना टेस्ट ड्राइव के लिए मेरे गांव चला जाये और सभी लोग राजी हो गये। हम 5 लोग थे और हमारे पास 3 खाकी कलर की भयंकर डेजर्ट स्ट्रॉम 500 थी। इसका 500 सीसी का इंजन 27.2 शक्ति पैदा करता है और टॉर्क 41.3 Nm @ 4000 rpm है इसलिए पहाड़ों और कच्चे रास्तों के लिए इसका कोई सानी नहीं है।
मंदिर के सामने धूनी जलती हुई |
सुबह जब हम रवाना हुए थे तो मौसम थोड़ा ठंडा था लेकिन दिन चढ़ने के साथ-साथ गर्मी बढ़ने लगी थी। हम गढ़ गंगा को पार करते हुए, करीब 8 बजे मुरादाबाद पहुंचे यहां से हमने नेशनल हाइवे 24 को छोड़ दिया और हाइवे नंबर 121 पर आ गये जो काशीपुर, रामनगर, जिम कार्बेट नेशनल पार्क होकर गुजरता है, हाइवे नंबर 24 को छोड़ने बाद जैसे ही हम हाइवे नंबर 121 पर आये तो यहां पर एक ढाबा है साईं ढाबा जो काफी साफ-सुथरा है, खाना भी बढ़िया मिलता है और सबसे बड़ी बात यहां पर सवारियों को लूटा नहीं जाता है। हमने यहां नाश्ता किया और जिम कार्बेट पार्क के लिए चल पड़े, काशीपुर होते हुए हम करीब 10 बजे रामनगर पहुंचे और पेट्रोल भरवाया।
रामनगर से निकलते ही कार्बेट नेशनल पार्क शुरु हो जाता जो बाघों की संख्या के मामले में दूसरे नंबर पर है, यह बहुत विशाल बायोडायवर्सिटी पार्क है जिसमें हजारों तरह की वनस्पतियां और जीव रहते हैं, आबो हवा इतनी साफ है कि यह आपके जीवन में नये प्राण भर देती है। पार्क से बीच से निकलते हुए आगे गर्जिया मां का मंदिर आता है, नदी के बीचों-बीच बहुत ऊंची चट्टान पर बने इस मंदिर की बहुत मान्यता है और हर वक्त लोगों का आना-जाना लगा रहता है। आगे चलने पर मोहान आता है यहां से एक रास्ता कुमाऊं के लिए कट जाता है और दूसरा पौड़ी के लिए चला जाता है यहां से सड़क घुमावदार और ऊपर की ओर चढ़नी शुरु हो जाती है।
हम सभी काले रंग की टी शर्ट और 6 पॉकेट कार्गो पहने हुए थे और हमारी मोटरसाइकलों की गर्जना जंगल की खामोशी को तोड़ रही थी, 3 एक जैसी और रंग की मोटरसाइकिलें मुख्य आकर्षण थी।
हम करीब 1 बजे के बीच मरचूला पहुंचे, यहां से भी दो रास्ते कटते हैं एक कुमाऊं ओर जाता है और दूसरा गढ़वाल की तरफ, यहां से आगे बढ़ते हुए हम जड़ाऊखांद, धुमाकोट पार करते हुए दीबा पहुंचे। यहां पर मां दीबा का मंदिर है जिसकी बड़ी मान्यता है और समुद्रतल से 2000 मीटर से अधिक ऊचांई पर स्थित है। यहां से आगे करीब 18 किमी. की ढलान हैं और थोड़ी सी खतरनाक भी है। 3 बेंड्स को पार करते हुए हम करीब 5 बजें मेरे गांव की मार्केट में पहूंचे, यहां से हमें अब पैदल जाना है, सड़क से मेरे घर की पैदल दूरी करीब 500 मीटर्स की है इसलिए हमने मोटरसाइकिले मार्केट में ही खड़ी कर दी।
पारंपरिक ढोर और दमाऊ |
अगले दिन मैं अपने दोस्तों को कालिंका मां के मंदिर ले गया जो मेरे घर से करीब 4 किमी. की दूरी पर और इसमें करीब 1 किमी. खड़ी चढ़ाई है, बारिश भी हो रही थी और हवा काफी तेज थी इसलिए हमारा ठंडे के मारे बुरा हाल था। हम भीगते-ठिठुरते हुए मंदिर में पहुंचे, मां कालिंका का मंदिर एकदम चोटी पर बना है जहां से आपको 180 डिग्री का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है।
दर्शनों के बाद हम वापिस घर आये तो मेरा एक दोस्त कहने लगा उसे अभी वापिस जाना है हमने से काफी रोका लेकिन वह नहीं माना और करीब 1 बजे अकेले ही मोटरसाइकिल लेकर दिल्ली के लिए निकल पड़ा लेकिन रास्ते में ही उसका एक्सीडेंट हो गया उसे और उसकी मोटरसाइकिल को काफी नुकसान पहुंचा और उसे रात रामनगर में ही गुजारनी पड़ी लेकिन गनीमत यह रही कि उसे ज्यादा चोटें नहीं आयी।
हम सभी शाम को बद्रीनाथ जी के अनुष्ठान में शामिल हुए। उत्तराखंड में आज भी पौराणिक मान्यताओं का निर्वाह किया जाता है इसकी में से यह एक है। शाम होते ही आस-पास के गांवों के लोग ढोल-दमाउ के साथ मंदिर पहुंचने लगे रात होते-होते मंदिर में अच्छी-खासी भीड़ जुट चुकी थी। सभी लोगों के लिए खाने का इंतजाम था जिसे गांव वाले स्वयं करते हैं इसके लिए कोई हलवाई या कैटरर नहीं रखा जाता है। करीब-करीब 9 बजे तक करीब 500 से ज्यादा लोगों को खाना खिलाने के बाद हमने राहत की सांस ली। सभी लोगों के खा लेने के बाद धूनी जलाई जाती है और देवी-देवताओं का आह्वाहन किया जाता है जिसमें उत्तराखंड के वाद्य यंत्र ढोल-दमाउ, डमरु आदि इस्तेमाल किए जाते हैं यह अनुष्ठान लगभग 3-4 घंटे तक चलता है।
दूर घाटी का दृश्य |
अगले दिन भी लोग अपनी मन्नतें पूरी होने पर खास तरह के झंडे, घंटियां और छत्र लेकर जाते हैं और उन्हें प्रभु को समर्पित करते हैं। आज मेरे 2 और साथी भी वापिस आ गये और मैं और प्रेम ही गांव में रह गये।
मुझे लाइसेंस बनवाना था जिसके लिए पौड़ी जाना पड़ता है इसलिए मैं और मेरा भाई प्रेम नेगी डेजर्ट स्ट्रॉर्म पर पौड़ी के लिए सुबह करीब 6 बजे रवाना हो गये जिसकी दूरी मेरे घर से करीब 170 किमी है। मई के महीने में भी हमारे गांव का मौसम काफी सुहाना रहता है हम ठंडी हवा का मजा लेते हुए बल खाती सड़क पर सन्नाटे को चीरते हुए आगे निकल रहे थे। बीरोंखाल, बैजरो, थलीसैण होते हुए हम करीब 9 बजे पाबो बाजार पहुंचे वहां कुछ देर रुकने के बाद हमने अपनी यात्रा फिर से शुरु की और करीब 11 बजे हम पौड़ी में आरटीओ ऑफिस में थे वहां से 1 घंटे में फ्री होने के बाद हम दुविधा में थे कि वापिस गांव जायें या दिल्ली जायें।
हमने दिल्ली जाने का फैसला किया हम दोनों जानते हैं कि सफर काफी कष्टदायक होने वाला है क्योंकि हम 170 किमी आ चुके थे और अभी लगभग 300 किमी. और जाना है। खैर हम बुआखाल होते हुए कोटद्वार के लिए रवाना हो गये कोटद्वार में खाना खाने के बाद हम शाम करीब 4 बजे निकले और करीब रात 11 बजे दिल्ली पहुंचे हम बुरी तरह थक चुके थे इसलिए कब नींद आयी पता नहीं चला अगले दिन 10 बजे ही नींद खुली।
कुलमिलाकर हमारा अनुभव बेदह रोमांचक और यादगार रहा था। अगर आपके पास भी रॉयल इनफील्ड बाई हैं तो निकल जाइए ऐसी एक रोमांचक यात्रा पर जो आपके जीवन में नये प्राण भर दे।
बाइकिंग के दौरान कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए जैसे:
Sparrow | घिंडुडी |
अपने मोटरसाइकिल की पूरी जांच कराने के बाद ही राइडिंग पर जायें।
अतिरिक्त ट्यूब और क्लच वायर साथ में रखें।
यातायात नियमों का सख्ती से पालन कीजिए।
अकेले कभी नहीं जायें
जहां जा रहे हैं वहां के बारे में पूरी जानकारी ले लें जैसे वहां का तापमान, ठहरने की जगह, पेट्रोल स्टेशन आदि
फर्स्ट एड बॉक्स अपने साथ रखें
साथ ही रेन कोट, रेन कवर और मौसम के अनुकूल कपड़े ले जाना न भूलें।
आशा करता हूं आपको यह लेख पसंद आया हो।
बेस कैम्प |