बर्फबारी में ट्रेकिंग का आनंंद ले हुए |
केदार कांठा विंटर ट्रेक
हमने विंटर ट्रैक के लिए इस बार केदारकांठा चुना, जो काफी रोमांचक अनुभव रहा। केदारकांठा उत्तराखंड का सबसे मशहूर ट्रेकिंग डेस्टीनेशन है जो उत्तरकाशी जिले के गोबिंद वाइल्ड सैंक्चुअरी क्षेत्र में आता है और इसकी ऊंचाई समुद्रतल से 3800 मीटर के करीब है। यह सैलानियों से हमेशा गुलजार रहता है इसकी वजह है केदारकांठा टॉप से दिखायी देने वाला मनमोहक नजारा जो आपको मंत्रमुग्ध कर देता है जहां से आपको 13 चोटियां दिखायी देती हैं।
केदारकांठा जाने के लिए आपको सांकरी पहुंचना होता है, यह समुद्रतल से 1920 मीटर की ऊंचाई पर बसा एक छोटा सा गांव हैं, सांकरी से केदारकांठा टॉप की दूरी करीब 9 किमी की है, रास्ता एकदम खड़ी चढ़ाई वाला है।
सांकरी में लगा साइन बोर्ड |
सांकरी में GNVN, PWD के गेस्ट हाउस और अन्य छोटे-छोटे गेस्ट हाउस हैं, हम रावत गेस्ट हाउस में ठहरे थे यहां के मालिक मुझे पहले से जानते थे क्यों हम पहले भी यहां ठहर चुके थे। गेस्ट हाउस काफी साफ-सुथरा है और सुविधाएं भी अच्छी हैं, सोलर हीटर लगे हैं, बाथरुम, कमरे, बिस्तर सभी कुछ बढ़िया है। मेहमान नवाजी भी अच्छी है। यहां के मकानों की खास बात है लकड़ी पर की गयी बहुत खूबसूरत नक्काशी, जो सैलानियों को चकित कर देती है।
केदार कांठा ट्रेक का शुभारंभ
हमने दिल्ली से रात को देहरादून की बस पकड़ी और सुबह 5 बजे देहरादून पहुंचे, वहां से सीधे सांकरी तक जाने वाली बस पकड़नी थी मगर वह जा चुकी थी इसलिए हमने पुरोला की रोड़वेज बस पकड़ी, और मसूरी, कैम्प्टी फॉल, नैनबाग, नौगांव होते हुए करीब 10 बजे पुरोला पहुंचे वहां रुककर खाना खाया। यहां पर हमें सांकरी जाने वाली बस मिल गयी जो देहरादून में छूट गयी और हम इसमें सवार हो गये। पुरोला के बाद का सफर थोड़ा हिचकोले वाला है इसलिए यात्रियों के नट-बोल्ट खुलने शुरु हो जाते हैं बाहर के नजारे बेहद शानदार होते हैं मगर यात्री बाहर ध्यान देने की बजाय अपनी सीट पर बने रहने की जद्दोजहद में लगा रहता है।
हमारी बस जब मोरी, नैटवाड़ होते हुए करीब 5 बजे सांकरी पहुंची तो हमारे सभी साथियों ने राहत की सांस ली क्योंकि रात से अब तक सफर में सभी के नट-बोल्ट पूरी तरह खुल चुके थे खासकर देहरादून से सांकरी तक के सफर ने उन्हें बुरी तरह थका दिया था। ज्यादातर लोग रजाई में घुसना चाहते थे मगर ऐसा करने से उन्हें ऑल्टीट्यूड सिकनेस हो सकती थी इसलिए मैंने सबको कहा कि आगे तक घूम कर आते हैं। वहां वापिस आने के बाद सभी ने राहत की सांस ली। ठंड बहुत ज्यादा थी इसलिए सभी दवा ढूंढने लगे और इसी के साथ जाम टकराने लगे।
जूड़ा का तालाब |
अगले दिन हमने करीब 9 बजे अपना ट्रैक (Trekk) शुरु किया, मौसम एकदम साफ था, चटक धूप खिली थी और आसमान का चटक नीला रंग और स्वच्छ वातावरण हमारे फेफड़ों में जमा प्रदूषण की गर्द को साफ करने के लिए पर्याप्त। रास्ते पर जैसे-जैसे हम ऊपर चढ़ते जाते वैसे-वैसे सांस लेने में दिक्कत होने लगती थी। हम करीब 1 बजे जूड़ा का तालाब पहुंचे यहां तालाब के ऊपर पाला जमा हुआ था जो कांच के जैसा लग रहा था।
यहां पर भी कुछ टेंट्स लगे हुए थे कुछ लोग इस ट्रैक को 5-6 दिनों में पूरा करते हैं लेकिन हमे केवल 2 दिन में पूरा करना था इसलिए हमारा बेस कैम्प (Base Camp) इनके अगले कैंप से भी आगे था।
हम करीब 3 बजे अपने बेस कैम्प में पहुंचे। शाम होने लगी थी और बर्फीली हवा चेहरे चीरती हुई जा रही थी, हाथों की उंगलियां सुन्न होने लगी थी। हिमालयी क्षेत्रों के मौसम का मिजाज जरा हटकर होता है क्योंकि यह हर पल बदलता रहता है। अगर चटक धूप खिली हो तो यह नहीं समझना चाहिए कि मौसम कल भी ऐसा ही बना रहेगा। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब हमने ट्रैक शुरु किया तो चटक धूप खिली हुई थी लेकिन शाम होते-होते मौसम ने अपना रंग दिखा शुरु कर दिया, अचानक से हवा में सफ़ेद फाहें उड़ने लगी थी और धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ने लगी, ऐसा लग रहा था मानों राख उड़ रही हो। अमूनन बर्फ गिरना शुरु होने से पहले बारिश होती है लेकिन यह मेरा भी पहला अनुभव था जब बिना किसी चेतावनी के बफबारी शुरु होने लगी थी और आस-पास की जगह सफेद चादर से ढकने लगी थी हमने किसी तरह से आग जलाने के लिए लकड़ियों की व्यवस्था की। जहां आग जल रही थी उसके अलावा बाकी की जगह पर बर्फ जमा होने लगी थी और जैसे -जैसे शाम ढलने लगी इसकी तीव्रता बढ़ने लगी, शुक्र ये था कि हमने अपने टेंट बिछा लिए थे और वहां पर पत्थरों से बनी एक झोपड़ी थी जहां पर गाइड ने खाना पकाने के लिए अपना किचन बनाया।
श्वेत रंग में सजा कैनवस |
जब बर्फबारी संकट बन गयी
गाइड को टेंटों की चिंता होने लगी थी कि कहीं वे बर्फ से दब न जायें, हमारे साथ के ज्यादातर लोगों का यह पहला अनुभव था, वे तो काफी उत्साहित थे मगर वह जानता था रात काफी परेशानी में बीतने वाली थी। गाइड सारी रात हमारे टेंट्स से बर्फ हटाते रहा ताकि घुटन से हमारा काम-तमाम न हो जाये।
अगर कल्पना की बात करें तो नजारा सपनो के जैसा ही था – मैं जंगल में टेंट (Tent) लगाये हुए हूं और सामने नदी,पहाड़, तरह-तरह के पेड़-पौधे और खूबसूरत नजारे हैं,बर्फ गिर रही है और मैं चाय पीते हुए बर्फबारी का आनंद उठा रहा हूं। मगर हकीकत की बात करें तो टेंट के अंदर हमारा हाल ज्यादा ठीक नहीं था,रात को ठंड से बचने के लिए रम कुछ ज्यादा ही हो गयी थी जिससे शरीर में पानी की कम हो गयी थी जिसकी वजह से सिर में तेज दर्द था। हम सोचने लगे कब सुबह होगी। सुबह भी बर्फबारी जारी थी और करीब 1 फीट तक बर्फ गिर चुकी थी। जहां देखूं सिर्फ एक ही रंग नजर आता था, पेड़-पौधें हों या मैदान सभी श्वेत रंग से रंग चुके थे मानों कोई सफेद कैनवस हो।
हम सभी में कोई भी रुकने के लिए तैयार नहीं था,हमारा आज का प्लान था कि सुबह केदारकांठा समिट करेंगे और वापिस आकर टैक्सी बुक करके शाम तक देहरादून पहुंच जायेंगे मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। अगर हम आज रुक जाते तो अगले दिन हम ऐसा अद्भुत नजारा देखते जो हमें मरते दम तक याद रहता मगर हमारे पास समय की कमी थी इसलिए सभी ने लौटने का फैसला किया। गाइड को सबसे ज्यादा अपने घोड़ों की चिंता होने लगी थी क्योंकि उनके पैर इस तरह की परिस्थिति के लिए नहीं बने है अगर घोड़ों को कुछ हो जाता है तो उसकी साल भर की कमाई चली जायेगी।
सांकरी में मौसम का आनंद उठाते हुए |
बर्फबारी के बीच उतरना एक मुश्किल अनुभव होता है
बर्फबारी के बीच ही हम नीचे उतरने लगे, इतनी बर्फ जमा हो गयी, थी रास्ता नहीं सूझता था, ऐसी स्थिति में अनुभव काम आता है। क्योंकि एक गलत कदम आपको नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए मैं और गाइड दोनों रास्ता बनाते हुए चल रहे थे जिससे पीछे वालों को परेशानी न हो, हम फिसलते, गिरते-पढ़ते करीब 12 बजे सांकरी पहुंचे, खाना खाया और टैक्सी पकड़कर देहरादून के लिए चल पड़े। कुछ लोगों की पुरोला पहुंचते-पहुंचते उल्टी कर-कर के हालत पस्त हो चुकी थी। उन्हें देखकर मेरा भी मन अजीब सा हो रहा था। लेकिन पुरोला के बाद सभी ने राहत की सांस ली।
यादगार अनुभव
खैर हम करीब 8-9 बजे देहरादून पहुंचे और वहां से बस पकड़कर सुबह करी 5 बजे दिल्ली पहुंच गये, सभी लोगों को यह अनुभव हमेशा याद रहेगा और उनके लिए एक सबक भी है कि ऐसी परिस्थिति का सामना कैसा करना है।
सांकरी से रुइनसारा घाटी का मनमोहक दृश्य |
सलाह
अगर आप पहाड़ों पर जा रहे हैं तो मौसम के बारे में पता करके जायें और गर्म कपड़े जरुर लेकर जायें क्योंकि वहां मौसम हमेशा ठंडा रहता है। अपने साथ एनर्जी बार, चॉकलेट और ड्राई-फ्रूट्सअवश्य लेकर जायें।
कई लोग बिना गाइड के चले जाते हैं ऐसा करना खतरनाक होता है, अकेले कभी न जायें अगर फिर आप जाना ही चाहते हैं तो बेस स्टेशन पर किसी को बताकर जायें कि आप कहां जा रहे हैं और कब तक लौटेंगे, क्योंकि ऊंचाई पर मोबाइल काम नहीं करते हैं और इससे संकट के समय आपको ढूंढना आसान रहता है।
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