Friday, November 25, 2016

श्री बद्री नाथ दर्शन और क्‍वारी पास ट्रेक (Badrinath and Kuari Paas)

श्री बदरीनारायण जी का मंदिर
Uttrakhand के चार धामों और इनके महत्‍व के बारे में लगभग सभी जानते हैं इन्‍हीं में से एक धाम है चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बद्रीनाथ (Badrinath) धाम, यह भगवान विष्‍णु के एक रुप बदरी को समर्पित मंदिर है, ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्‍णु ने यहां पर तपस्‍या करनी शुरु की तो वहां बहुत ज्‍यादा बर्फबारी होने लगी और मां लक्ष्‍मी से यह देखा न गया तो उन्‍होंने बेर (बदरी) के पेड़ का अवतार लेकर उनकी कई वर्षों तक धूप, बारिश और हिमपात से रक्षा की, कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ (Badrinath) के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा। 
यहां आकर भक्‍तों को अनंत सुख का एहसास होता है और तप्‍त कुंड में स्‍नान करने से मन की पीड़ाओं से मुक्ति मिल जाती है और उनका मन अलकनंदा (Alaknanda) नदी के पानी की तरह निर्मल हो उठता है।
रात में मंदिर का नजारा
जहाँ भगवान बदरीनाथ (Badrinath) ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
इस यात्रा पर जाने का कार्यक्रम अचानक ही बना, दरअसल मेरे भाई हुकुम के कुछ दोस्‍त बदरीनाथ के दर्शन करने और उसके बाद जोशीमठ और औली होते हुए क्‍वारीपास (Kuari Pass) Trek पर जाने की योजना बना रहे थे, उसने मुझे बताया और मैं और मेरा भाई प्रेम और दोस्‍त संदीप जाने के लिए तैयार हो गये। इससे पहले मैं Trekking के बारे में नहीं जानता था, बाद में पता चला कि गांव में तो हम रोज ही Trekking करते थे। 

पहला दिन (दिल्‍ली - जोशीमठ - बद्रीनाथ) 
ब्रदीनाथ घाटी का नजारा
26 सितंबर 2012 की शाम थी, करीब 7 बजे होंगे, मौसम अभी भी गर्म था और हवा में नमी बनी हुई थी,  मैं, प्रेम, संदीप और हुकुम पीठ पर बैग लादे आनंद विहार बस अड्डा पहुंचे, बस अड्डे में चहल-पहल थी, लोग अपने गंतव्‍य जाने के लिए बसें ढूंढ रहे थे, बसेंं आ रही थी जा रही थी, मेरे गांव जाने वाली बस भी तैयार थी लेकिन मैं तो किसी और बस को ढूंढ रहा था,  हमारे बाकी साथी अभी तक नहीं पहुंंचे थे, धीरे-धीरे सभी पहुंचने लगे, सबसे आखिर में आया हिमांशु जो हमारा Trek leader, मार्गदर्शक है, मैंने उसके बारे में हुकुम से सुना तो था लेकिन कभी देखा नहीं था, सभी का एक-दूसरे का परिचय होने लगा, हमने बस के टिकट लिए और सीटों पर सामान रखने के बाद बाहर आकर बातचीत करने लगे क्‍योंकि बस को रवाना होने में समय था और अंदर गर्मी लग रही थी।  
शान से खड़ा माणा पर्वत
थोड़ी देर बाद बस रवाना हुई और बस में खाने-पीने का दौर शुरु हो गया था रंजन घर से खाना पैक करके लाया था सो हम सबने खाया खाया और सोने की कोशिश करने लगे, हम ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्र प्रयास, कर्ण प्रयाग होते हुए करीब 11 बजे चमोली पहुंचे बस यहीं तक जाती है, चमोली में मौसम काफी सुहावना था, धूप खिली थी लेकिन गर्मी व उमस नहीं थी, हम सभी ने यहां पर नाश्‍ता किया और थोड़ी देर रुकने के बाद टैक्‍सी पकड़कर जोशीमठ के लिए रवाना हो गये यहां से जोशीमठ (Joshimath) की दूरी करीब 90 किलोमीटर है जिसमें करीब 3-4 घंटे का समय लगता है।
पूरे जोर-शोर से बहती अलकनंदा नदी
हम करीब 2 बजे जोशीमठ पहुंचे और वहां से फिर टैक्‍सी करके गोबिन्‍दघाट होते हुए शाम 4-5 बजे बद्रीनाथ पहुंचे, बद्रीनाथ चारों तरफ से पहाड़ों से ढका हुआ है और ऊंचाई ज्‍यादा होने से यहां मौसम बहुत ठंडा रहता है, शाम को बारिश कभी भी हो सकती है जिसके कारण ठंड और ज्‍यादा बढ़ जाती है। हिमांशु ने गढ़वाल मंडल के गेस्‍ट हाउस में ठहरने का सुझाव दिय जो सीजन नहीं होने के कारण खाली था और हमें सस्‍ते में रहने की जगह मिल गयी, हमने कपड़े बदले और तुरंत ही बद्रीनाथ जी के दर्शनों के लिए निकल गये। 
जिस मंदिर को आज तक तस्‍वीरों में देखा था वह आज मेरे सामने साक्षात मौजूद था मन में एक अजीब सा कोतहूल था, ठीक वैसा ही जब हम किसी फिल्‍मी सितारे को अपनी आंखों के सामने देखने पर महसूस करते है।
सरस्‍वती घाटी का नजारा, यहां चीन की सीमा पड़ती है
बद्रीनाथ जी का मंदिर अलकनंदा नदी के दूसरे छोर पर है, वहां तक जाने के लिए आपको पुल को पार करना पड़ता है। पुल पार करके सीढ़ियां चढ़ते ही दायीं ओर तप्‍तकुंड है जिसमें हमेंशा गर्म पानी रहता है। जैसे ही हम कुंड के पास पहुंचे बाहर बारिश होने लगी जिससे ठंड बढ़ गयी, हमने ठंड की परवाह किए बगैर कुंड में नहाया और बारिश्‍ा रुकने बाद मंदिर में दर्शन करने चले गये।
बदरीनाथ जी की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। गर्भगृह की दीवारों पर सोना मढ़ा हुआ है। यह प्राचीन शैली का मंदिर है, दर्शनों के बाद हम मंदिर को देखने लगे, शाम हो चली थी और दिन की रोशनी धीरे-धीरे कम होती जा रही थी थोड़ी देर में अंधेरा हो गया, मंदिर की लाइटें जलने लगी थी और रात में मंदिर और भी खूबसूरत दिखायी दे रहा था, वहां वक्‍त बिताने के बाद मन शांत हो गया था। ठंड बढ़ने लगी और हमारे हाथ-पैर ठंडे होने लगे थे इसलिए हम वापिस होटल में आ गये और खाना खाकर सो गये।

दूसरा दिन (बद्रीनाथ - माणा - जोशीमठ - औली - गौरसों बुग्‍याल)
सरस्‍वती नदी का उदगम स्‍थल
अगले दिन सुबह जल्‍दी उठे तो बहुत ज्‍यादा ठंड थी, गर्म पानी पैसे देकर मिल रहा था क्‍योंकि ठंडे पानी से नहाने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है। माणा पर्वत पर धूप की किरणें पड़ चुकी थी जो अलग ही छटा बिखेर रहा था, धीरे-धीरे धूप सारी घाटी में फैल गयी और ठंड से राहत मिलने लगी, हमने नाश्‍ता किया, हमारे कुछ साथी दर्शनों के लिए गए थे इसलिए हम फोटोबाजी में लग गये थोड़ी देर में अन्‍य साथी भी पहुंचे और हम सभी माणा गांव चले गये जो यहां का आखिरी गांव है, गांव से आगे जाने पर भीमपुल जगह आती हैं सामने सरस्‍वती नदी का उदगम है, उसके स्रोत के बारे में किसी को जानकारी नहीं वह पहाड़ के अंदर से निकलती हुए नीचे जाकर अलकनंदा में समा जाती है, पानी का बहाव बहुत तेज है और बहुत जोर की गर्जना होती है, आप अपने चेहरे पर पानी की फुहारे महसूस कर सकते हैं, भीम पुल, सरस्‍वती नदी को पार करने के लिए एक विशाल पत्‍थर की शिला है जिसके बारे में कहा जाता है कि पांडवों के स्‍वर्ग जाते समय नदी का पार करने केे लिए महाबली भीम ने इस पत्‍थर को रखा था। 
खेत से आलू निकाल रहा हूं
मैंने कुछ स्‍थानीय लोगों को खेत में आलू निकालते हुए देखा तो मैं भी वहां चला गया और उनका हाथ बंटाने लगा उसके बाद तो मेरे सभी साथी वहां आकर हाथ आजमाने लगे।
वहां से वापिस आने के बाद हमने टैक्‍सी पकड़ी और गोबिन्‍द घाट, विष्‍णु प्रयाग होते हुए करीब 1 बजे तक जोशीमठ पहुंच गये, यहां से गाइड और अन्‍य चीजों की व्‍यवस्‍था करने के बाद औली के लिए निकल गये, औली तक टैक्‍सी जाती है और उसके बाद 4 किमी. पैदल चढ़ाई है। हम करीब 2 बजे औली पहुंचे यहां मौसम काफी सुहावना था, और तेज धूप खिली हुई थी, इसके बावजूद ठंड लग रही थी।
औली (Auli) भारत में स्‍कीइंग के लिए बहुत लोकप्रिय है सर्दियों में यहां स्‍कीइंग की प्रतियोगिताएं होती रहती है और यदि किसी कारण वश यहां बर्फबारी नहीं होती है तो यहां कृत्रिम रुप से बर्फ बनाने की व्‍यवस्‍था की गयी है, यहां से आपको नंदा देवी, कामेट, माणा पर्वत, दौनागिरी, बीथारतोली, निल्‍कानाथ, हाथी पर्बत, घोड़ी पर्बत और नर पर्बत का बेहत खूबसूरत नजारा मिलता है। 
औली 
यहां पर GNVN का बहुत बढ़िया होटल बना हुआ है। यहां खाना खाने के बाद चढ़ाई करने लगे वैसे यहां से ऊपर तक रोपवे भी है लेकिन हमने पैदल ही जाने का फैसला किया, हम औली के स्‍कीइंग स्‍लोप से होते हुए आगे बढ़ते हुए करीब 5 बजे गोरसौं बुग्‍याल पहुंचे गये।
यह बुग्‍याल काफी खूबसूरत है और इसके तल पर बांज और देवदार के पेड़ हैं, हमारा टैंट यहां लगना था, क्‍योंकि इन चीजों को देखने का और टैंट में सोने का मेरा पहला मौका था इसलिए मैं तो बहुत उत्‍साहित था, सभी लोग बेस कैंप में आराम करने लगे लेकिन मैं, प्रेम और हिमांशु बुग्‍याल के टॉप पर चले गये जहां से सूर्यास्‍त का बेहद खूबसूरत नजारा दिखायी दे रहा था और चारों तरफ छोटी-छोटी मखमली घास बिखरी हुई थी, वहां पर फोटो लेने केे बाद हम काफी देर तक वहां बैठे रहे लेकिन तेज हवा ने हमें नीचे आने के लिए मजबूर कर दिया, नीचे आकर हमने आग जलाई और अपने अनुभवों को एक-दूसरे के साथ बांटने लगे, सभी लोग आपस में घुलने-मिलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अभी तक अलग-अलग ग्रुप्‍स में थे। लेकिन जैसे ही दौर शुरु हुआ तो सभी एक-दूसरे के साथ सहज होने लगे, जिससे माहौल थोड़ा खुशनुमा हो गया।

तीसरा दिन (गौरसौं - क्‍वारी पास - खुलारा टॉप)
गौरसों बेस कैम्‍प
सुबह बस हाथ-मुंह धोया और नाश्‍ता करके बुगयाल में चढ़ने लगे करीब 200 मीटर खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद हम गौरसौं टॉप पर पहुंचे वहां से जो नजारा दिखा उससे सारी थकान गायब चुकी थी, फिर से फोटोबाजी का दौर शुरु हो चुका था, करीब आधा घंटा गुजारने के बाद हम आगे चल दिए यहां से रास्‍ता ज्‍यादातर सीधा ही है लेकिन काफी खतरनाक है अगर पैर फिसला तो कई सौ मीटर नीचे गिरेंगे और बचने की कोई उम्‍मीद नहीं है, खैर धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए हम करीब 1 बजे ताली पहुंचे, रास्‍ते में प्‍यास लगने की वजह से मैने कुछ ऐसे फूल और जड़े खा ली जिनकी वजह से मेरी हालत पतली हो गयी, मेरा पेट खराब हो गया और पेट खराब होने की वजह से मुझे डीहाइड्रेशन हो गया, इसलिए मैं वहीं लेट गया, यहां पर हमने खाना खाया और आराम करने लगे।
गौरसों बुग्‍याल के टॉप का नजारा
यहां से दो रास्‍ते हैं एक खुलारा बेस कैंप के लिए और दूसरा क्‍वारी पास होते हुए खुलारा में आता है। मैं तो पूरी तरह पस्‍त था इसलिए मैंने तो मना कर दिया, साथ ही हुकुम और प्रेम भी मेरे साथ रुक गये बाकी लोग क्‍वारी पास के लिए चले गये और हम खुलारा के लिए, मेरी हालत इतनी खराब थी कि मेरे लिए 4 कदम चलना भी मुश्किल हो रहा था, मैं थोड़ा सा चलता और रुक जाता, मेरे पैर कांप रहे थे। 

ताली में आराम फरमाते हुए

किसी तरह मैं खुलारा पहुंचा और पानी पीने के बाद धूप में लौट गया 2 घंटे धूप में सोने के बाद मेरी तबीयत सुधरी और उसके बाद हम नीचे कैम्‍प में गये वहां दाल-भात बन रहा था, गर्मागर्म दाल-भात खाने के बाद तो मैं एकदम ठीक हो गया, 4 बजने वाले थे मगर बाकी लोगों का कोई अता-पता नहींं था इसलिए हम फोटो ग्राफी करने लगे फिर हमने आग जलाने के लिए लकड़ियां इकट्ठा की।
लगभग 5 बजे के करीब बाकी साथी उतरते हुए दिखायी दिए। उन्‍होंने बताया कि उन्‍हें उतरने में बहुत ज्‍यादा परेशानी हुई क्‍योंकि वहां Trek नहीं बना हुआ था और कई लोग पहली बार Trekking कर रहे थे। 
क्‍वारीपास का नजारा
खुलारा में हमारे अलावा गडरिए भी थे जो अपनी सैकड़ों भेड़-बकरियों को ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों से मैदानी क्ष्‍ोत्रों की तरफ ले जा रहे थे क्‍योंकि कुछ ही दिनों में ऊपरी हिस्‍सों में बर्फबारी शुरु हो जायेगी और हर-भरे नजर आने वाले चरागाह कई फीट बर्फ मेंं ढक जायेंगे। ये गडरिए हर साल गर्मियों में यहां आते हैं और सर्दियों में नीचे मैदानी इलाकों में चले जाते हैं। इनके साथ कुत्‍ते और घोड़े भी होते हैं, घोड़े इनकी जरुरत का सामान और छोटे मेमनों को लेकर चलते हैं, जबकि कुत्‍ते झुंड की रखवाली करते हैं, ये उन्‍हें एक जगह एकत्र भी करते हैं, ये कुत्‍ते बहुत खतरनाक होते हैं, भेड़ों के पास जाते ही ये हमला कर देते हैं।

खुलारा बेस कैंप में चरती भेड़-बकरियां
शाम हो चली थी और पहाड़ों की चोटियों पर धूप की लाल रोशनी बहुत खूबसूरत लग रही थी, इक्‍का-दुक्‍का बादल भी थे जो आसमान में कैनवस पर किसी पेन्टिंग की तरह नजर आ रहे थे, बड़ा ही मनमोहक दृश्‍य था। धीरे-धीरे रात होने लगी थी और सर्दी असर दिखाने लगी थी इसलिए हम सब आग के आस-पास इकट्ठा हो गये और गर्माहट लेने लगे। अब ग्रुप में सभी आपस में घुल-मिल चुके थे जिससे माहौल काफी दोस्‍ताना हो गया था।
मेरी तबीयत अभी भी ज्‍यादा ठीक नहीं थी, मुझे इस बात का बहुत अफसोस था मेरी एक छोटी सी गलती की वजह से मैं पास तक नहीं जा पाया, इसलिए जब भी आप Trekking पर जायें तो अपने साथ फर्स्‍ट एड बॉक्‍स जरुर लेकर जायें क्‍योंकि मौसम में बदलाव के कारण तबीयत खराब हो सकती है।

चौथा दिन (खुलारा - ढाक - जोशीमठ - रुदप्रयाग - देव प्रयाग - ऋषिकेश)
सुबह हमने नाश्‍ता किया और नीचे उतरने लगे, आज केवल नीचे उतरना था, लेकिन उतरना चढ़ने से मुश्किल होता है क्‍योंकि आपके घुटने दुखने लगते हैं और बदन में दर्द होने लगता है। लेकिन मुझे कोई परेशानी नहीं थी मैं तो बस नीचे लगभग दौड़ते हुए उतरने लगा बाकी साथी भी मेरे साथ चलने लगे और करीब आधे घंटे में ही ढाक गांव में पहुंच गये जहां से हमें टैक्‍सी से जोशीमठ जाना था, कुछ लोग पीछे रह गये इसलिए उनका इंतजार करने के अलावा हमारे पास कोई और चारा नहीं था, इसलिए हम वहीं बैठ गये।
ढाक गांव नजारा
सभी लोगों के आने के बाद हम टैक्‍सी से करीब 2 बजे जोशीमठ पहुंचे और वहां से टैक्‍सी पकड़कर रात को 8 बजे के करीब ऋषिकेश पहुंचे गये वहां से हमने खाना खाने के बाद रात 10.30 बजे बस पकड़ी और दिल्‍ली के ओर चल दिये।
दुनिया के सबसे खुश लड़के
दोस्‍तों अगर आप महानगरों की प्रदूषित जिंदगी से तंग आ चुके हैं और बीमार सा महसूस कर रहे हैं तो तरो-ताजा होने का समय आ गया है और इसका सबसे आसान तरीका है वादियों में नीले आसमान के तले और स्‍वच्‍छ हवा में समय बिताना।
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धन्‍यवाद

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