नाग देवता का मंदिर |
नागटिब्बा टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड का काफी मशहूर ट्रेक है, इसकी समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 3000 मीटर है जो पहाड़ों की राजधानी मसूरी से 85 किमी. की दूरी पर है। स्थानीय भाषा में नागटिब्बा का मतलब होता है नाग देवता का स्थान, यहां पर नाग देवता का मंदिर हैं जहां स्थानीय लोग अपने पशुओं की रक्षा करने के लिए नाग देवता की पूजा करने के लिए जाते हैं। यहां से दिखने वाले खूबसूरत नजारों और पहुंचने की आसानी के कारण ट्रेकर्स और सैलानियों की यह मनपंसद जगहों में से एक है साथ ही यहां पर सूर्योदय और सूर्यास्त का मनमोहक नजारा देखते ही बनता है यदि आप जनवरी में जाते हैं तो आपको यहां विंटरलाइन देखने अवसर मिलता है यानि सूरज को अपनी तरफ अस्त होते हुए और दूसरी तरफ उगते हुए देख सकते हैं। सर्दियों में आप यहां बर्फ का आनंद भी ले सकते हैं जबकि बरसात में हरे-भरे जंगल और बुगयाल अनुभव को और भी हसीन बना देते हैैं।
नागटिब्बा जाने के तीन रास्ते हैं, पहला देवलसारी से, दूसरा पंतवाणी से और तीसरा श्रीकोट से जाता है। देवलसारी की तरफ से जाने पर आपको मसूरी वन विभाग से अनुमति लेनी होती है, दूसरा रास्ता श्रीकोट से जाता है जो देहरादून से 110 किमी. की दूरी पर है, यह रास्ता देवलसारी और पंतवाणी की अपेक्षा छोटा है, यहां से 5 किमी. चलते हुए आप नाग टिब्बा टॉप पर पहुंच सकते हैं जहां से आपको हिमालय का बहुत ही शानदार नजारा दिखायी देता है। यहां से टॉप तक पहुचंने में 3-4 घंटे का समय लगता है, इसी प्रकार देवलसारी से यहां तक का पैदल सफर लगभग 13 किमी. का है जिसमें 7-8 घंटे लग सकते हैं, जबकि पंतवाणी से टॉप तक पहुंचने में लगभग 5-6 घंटे लगते हैं और रास्ता चढ़ाई वाला है।
टॉप से आप बायीं तरफ बंदरपूंछ, गंगोत्री रेंज, केदारनाथ पर्वतों के दर्शन कर सकते इसके अलावा दूनघाटी और चनाबंग की पर्वतों से लदी पहाड़ियों को देख सकते हैं।
पंतवाणी में प्रभात फेरी निकालते स्कूली बच्चे |
यहां पर हमने नाश्ता किया और करीब 10 बजे बेस कैंप के लिए निकल गये, पूरा रास्ता खड़ी चढ़ाई वाला है और दूरी लगभग 5 किमी. है। रास्ते में जैसे-जैसे हम ऊपर चढ़ते गये नजारे खूबसूरत होने लगे, करीब 2-3 किमी. की चढ़ाई चढ़ने के बाद रास्ता थोड़ा सा सीधा है और वहां पर कुछ घर भी बने हुए हैं। इन लोगों के लिए ये रोजाना का रास्ता है जबकि हम लोग इतना चढ़ने पर भी बुरी तरह से थक गये थे। हम यहां थोड़ी देर रुके और हमें यहां पर बर्फ मिली शुरु हो गयी थी जो कि अच्छे संकेत थे, थोड़ा सा ऊपर चढ़ने पर जब मैंने नीचे देखा तो पंतवाड़ी गांव और सीढ़ीदार खेत बहुत खूबसूरत लग रहे थे।
सुबह की ओस सूरज की रोशनी से भाप बनकर ऊपर उठने लगी थी जो सामने की घाटियों को एक अलग ही रुप दे रही है थी, आज आसमान साफ और नीला था जिसकी वजह से धूप एकदम चटक और गुनगुनी थी। बेस कैम्प के नजदीक पहुंचने पर अब बर्फ से ढके बुगयाल और पर्वत नजर आने लगे थे।
भाप बनकर उड़ती ओस घाटी में छटा बिखेर रही है |
करीब 2 बजे हम बेस कैम्प पहुंच गये, यहां चारो तरफ बहुत बर्फ थी जिसे देखकर सभी लोग उत्साहित थे। चाय पीने के बाद हम गाइड की टैंट लगाने में मदद करने लगे, टैंट लगाने के बाद हमने गर्मा-गर्म दाल-भात खाया और धूप का आंनंद लेने लगे।
बेस कैम्प |
वहां से ढूबते हुए सूरज का नजारा बेहद आकर्षक था, सूरज एकदम लाल नजर आ रहा था और सफेद बर्फ पर इसकी लाल रोशनी बेहद खूबसूरत लग रही थी, हम सूरज को क्षितिज में पूरी तरह से ढूबते हुए देख सकते थे। सूरज के ढूबने के साथ ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों कोई मोबाइल स्क्रीन की ब्राइटनेस को 100 से 0 कर रहा हो।
सूर्यास्त का अदभुत नजारा |
ऐसी जगहों पर अगर रात में हमारे पास आग जलाने की व्यवस्था न हो तो अनुभव काफी चिंताजनक हो सकता है क्योंकि आग हमारे शरीर को गर्मी देने के साथ-साथ जंगली जानवरों को भी दूर रखती है।
हमें अगली सुबह समिट के लिए जाना था और हम बहुत थके हुए भी थे इसलिए हम खाना खाकर जल्दी सो गये। सुबह हम नाश्ता करने के बाद नाग टिब्बा गये वहां नाग देबता का काफी सुंदर मंदिर बना हुआ है और आस-पास की जगह को भी अच्छे से विकसित किया गया है। बर्फ अधिक होने के कारण हम चोटी तक नहीं जा पाये जिसका हमें काफी अफसोस था। फोटो सेशन के बाद हम करीब 12 कैम्प में लौट आये और खाना खाकर पतंवाणी की तरफ चल दिये क्योंकि हमें आज ही देहरादून पहुंचकर दिल्ली की बस लेनी थी। करीब 3-4 बजे हम पंतवाणी पहुंचे और वहां से ट्रैवलर में बैठकर मसूरी होते हुए करीब 9 बजे देहरादून पहुंच गये और रात की बस लेकर सुबह 5 बजे दिल्ली आ गये।
बर्फ से भरे बुगयाल पर चलते ट्रैकर्स |
यह बसंत और गर्मियों में कैंपिंग के लिए आदर्श जगह है और सर्दियों में ट्रेकिंग के लिए सबसे उपयुक्त जगह है, जब ज्यादातर ट्रैक्स भारी बर्फबारी की वजह से बंद रहते हैं।
कृपया बिना तैयारी के न जायें क्योंकि ऊपर रहने व खाने की कोई व्यवस्था नहीं है, लोकल गाइड को अवश्य साथ रखें वह आपके अनुभव को खुशनुमा बना सकता है।
कब जायें : अक्टूबर से अप्रैल
ट्रैक का स्तर: थोड़ा सा मुश्किल
मौसम : वैसे तो खुशनुमा रहता है लेकिन सर्दियों में ठंड बहुत ज्यादा रहती है।
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Kalinka Temple |