Friday, November 25, 2016

श्री बद्री नाथ दर्शन और क्‍वारी पास ट्रेक (Badrinath and Kuari Paas)

श्री बदरीनारायण जी का मंदिर
Uttrakhand के चार धामों और इनके महत्‍व के बारे में लगभग सभी जानते हैं इन्‍हीं में से एक धाम है चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बद्रीनाथ (Badrinath) धाम, यह भगवान विष्‍णु के एक रुप बदरी को समर्पित मंदिर है, ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्‍णु ने यहां पर तपस्‍या करनी शुरु की तो वहां बहुत ज्‍यादा बर्फबारी होने लगी और मां लक्ष्‍मी से यह देखा न गया तो उन्‍होंने बेर (बदरी) के पेड़ का अवतार लेकर उनकी कई वर्षों तक धूप, बारिश और हिमपात से रक्षा की, कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ (Badrinath) के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा। 
यहां आकर भक्‍तों को अनंत सुख का एहसास होता है और तप्‍त कुंड में स्‍नान करने से मन की पीड़ाओं से मुक्ति मिल जाती है और उनका मन अलकनंदा (Alaknanda) नदी के पानी की तरह निर्मल हो उठता है।
रात में मंदिर का नजारा
जहाँ भगवान बदरीनाथ (Badrinath) ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
इस यात्रा पर जाने का कार्यक्रम अचानक ही बना, दरअसल मेरे भाई हुकुम के कुछ दोस्‍त बदरीनाथ के दर्शन करने और उसके बाद जोशीमठ और औली होते हुए क्‍वारीपास (Kuari Pass) Trek पर जाने की योजना बना रहे थे, उसने मुझे बताया और मैं और मेरा भाई प्रेम और दोस्‍त संदीप जाने के लिए तैयार हो गये। इससे पहले मैं Trekking के बारे में नहीं जानता था, बाद में पता चला कि गांव में तो हम रोज ही Trekking करते थे। 

पहला दिन (दिल्‍ली - जोशीमठ - बद्रीनाथ) 
ब्रदीनाथ घाटी का नजारा
26 सितंबर 2012 की शाम थी, करीब 7 बजे होंगे, मौसम अभी भी गर्म था और हवा में नमी बनी हुई थी,  मैं, प्रेम, संदीप और हुकुम पीठ पर बैग लादे आनंद विहार बस अड्डा पहुंचे, बस अड्डे में चहल-पहल थी, लोग अपने गंतव्‍य जाने के लिए बसें ढूंढ रहे थे, बसेंं आ रही थी जा रही थी, मेरे गांव जाने वाली बस भी तैयार थी लेकिन मैं तो किसी और बस को ढूंढ रहा था,  हमारे बाकी साथी अभी तक नहीं पहुंंचे थे, धीरे-धीरे सभी पहुंचने लगे, सबसे आखिर में आया हिमांशु जो हमारा Trek leader, मार्गदर्शक है, मैंने उसके बारे में हुकुम से सुना तो था लेकिन कभी देखा नहीं था, सभी का एक-दूसरे का परिचय होने लगा, हमने बस के टिकट लिए और सीटों पर सामान रखने के बाद बाहर आकर बातचीत करने लगे क्‍योंकि बस को रवाना होने में समय था और अंदर गर्मी लग रही थी।  
शान से खड़ा माणा पर्वत
थोड़ी देर बाद बस रवाना हुई और बस में खाने-पीने का दौर शुरु हो गया था रंजन घर से खाना पैक करके लाया था सो हम सबने खाया खाया और सोने की कोशिश करने लगे, हम ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्र प्रयास, कर्ण प्रयाग होते हुए करीब 11 बजे चमोली पहुंचे बस यहीं तक जाती है, चमोली में मौसम काफी सुहावना था, धूप खिली थी लेकिन गर्मी व उमस नहीं थी, हम सभी ने यहां पर नाश्‍ता किया और थोड़ी देर रुकने के बाद टैक्‍सी पकड़कर जोशीमठ के लिए रवाना हो गये यहां से जोशीमठ (Joshimath) की दूरी करीब 90 किलोमीटर है जिसमें करीब 3-4 घंटे का समय लगता है।
पूरे जोर-शोर से बहती अलकनंदा नदी
हम करीब 2 बजे जोशीमठ पहुंचे और वहां से फिर टैक्‍सी करके गोबिन्‍दघाट होते हुए शाम 4-5 बजे बद्रीनाथ पहुंचे, बद्रीनाथ चारों तरफ से पहाड़ों से ढका हुआ है और ऊंचाई ज्‍यादा होने से यहां मौसम बहुत ठंडा रहता है, शाम को बारिश कभी भी हो सकती है जिसके कारण ठंड और ज्‍यादा बढ़ जाती है। हिमांशु ने गढ़वाल मंडल के गेस्‍ट हाउस में ठहरने का सुझाव दिय जो सीजन नहीं होने के कारण खाली था और हमें सस्‍ते में रहने की जगह मिल गयी, हमने कपड़े बदले और तुरंत ही बद्रीनाथ जी के दर्शनों के लिए निकल गये। 
जिस मंदिर को आज तक तस्‍वीरों में देखा था वह आज मेरे सामने साक्षात मौजूद था मन में एक अजीब सा कोतहूल था, ठीक वैसा ही जब हम किसी फिल्‍मी सितारे को अपनी आंखों के सामने देखने पर महसूस करते है।
सरस्‍वती घाटी का नजारा, यहां चीन की सीमा पड़ती है
बद्रीनाथ जी का मंदिर अलकनंदा नदी के दूसरे छोर पर है, वहां तक जाने के लिए आपको पुल को पार करना पड़ता है। पुल पार करके सीढ़ियां चढ़ते ही दायीं ओर तप्‍तकुंड है जिसमें हमेंशा गर्म पानी रहता है। जैसे ही हम कुंड के पास पहुंचे बाहर बारिश होने लगी जिससे ठंड बढ़ गयी, हमने ठंड की परवाह किए बगैर कुंड में नहाया और बारिश्‍ा रुकने बाद मंदिर में दर्शन करने चले गये।
बदरीनाथ जी की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। गर्भगृह की दीवारों पर सोना मढ़ा हुआ है। यह प्राचीन शैली का मंदिर है, दर्शनों के बाद हम मंदिर को देखने लगे, शाम हो चली थी और दिन की रोशनी धीरे-धीरे कम होती जा रही थी थोड़ी देर में अंधेरा हो गया, मंदिर की लाइटें जलने लगी थी और रात में मंदिर और भी खूबसूरत दिखायी दे रहा था, वहां वक्‍त बिताने के बाद मन शांत हो गया था। ठंड बढ़ने लगी और हमारे हाथ-पैर ठंडे होने लगे थे इसलिए हम वापिस होटल में आ गये और खाना खाकर सो गये।

दूसरा दिन (बद्रीनाथ - माणा - जोशीमठ - औली - गौरसों बुग्‍याल)
सरस्‍वती नदी का उदगम स्‍थल
अगले दिन सुबह जल्‍दी उठे तो बहुत ज्‍यादा ठंड थी, गर्म पानी पैसे देकर मिल रहा था क्‍योंकि ठंडे पानी से नहाने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है। माणा पर्वत पर धूप की किरणें पड़ चुकी थी जो अलग ही छटा बिखेर रहा था, धीरे-धीरे धूप सारी घाटी में फैल गयी और ठंड से राहत मिलने लगी, हमने नाश्‍ता किया, हमारे कुछ साथी दर्शनों के लिए गए थे इसलिए हम फोटोबाजी में लग गये थोड़ी देर में अन्‍य साथी भी पहुंचे और हम सभी माणा गांव चले गये जो यहां का आखिरी गांव है, गांव से आगे जाने पर भीमपुल जगह आती हैं सामने सरस्‍वती नदी का उदगम है, उसके स्रोत के बारे में किसी को जानकारी नहीं वह पहाड़ के अंदर से निकलती हुए नीचे जाकर अलकनंदा में समा जाती है, पानी का बहाव बहुत तेज है और बहुत जोर की गर्जना होती है, आप अपने चेहरे पर पानी की फुहारे महसूस कर सकते हैं, भीम पुल, सरस्‍वती नदी को पार करने के लिए एक विशाल पत्‍थर की शिला है जिसके बारे में कहा जाता है कि पांडवों के स्‍वर्ग जाते समय नदी का पार करने केे लिए महाबली भीम ने इस पत्‍थर को रखा था। 
खेत से आलू निकाल रहा हूं
मैंने कुछ स्‍थानीय लोगों को खेत में आलू निकालते हुए देखा तो मैं भी वहां चला गया और उनका हाथ बंटाने लगा उसके बाद तो मेरे सभी साथी वहां आकर हाथ आजमाने लगे।
वहां से वापिस आने के बाद हमने टैक्‍सी पकड़ी और गोबिन्‍द घाट, विष्‍णु प्रयाग होते हुए करीब 1 बजे तक जोशीमठ पहुंच गये, यहां से गाइड और अन्‍य चीजों की व्‍यवस्‍था करने के बाद औली के लिए निकल गये, औली तक टैक्‍सी जाती है और उसके बाद 4 किमी. पैदल चढ़ाई है। हम करीब 2 बजे औली पहुंचे यहां मौसम काफी सुहावना था, और तेज धूप खिली हुई थी, इसके बावजूद ठंड लग रही थी।
औली (Auli) भारत में स्‍कीइंग के लिए बहुत लोकप्रिय है सर्दियों में यहां स्‍कीइंग की प्रतियोगिताएं होती रहती है और यदि किसी कारण वश यहां बर्फबारी नहीं होती है तो यहां कृत्रिम रुप से बर्फ बनाने की व्‍यवस्‍था की गयी है, यहां से आपको नंदा देवी, कामेट, माणा पर्वत, दौनागिरी, बीथारतोली, निल्‍कानाथ, हाथी पर्बत, घोड़ी पर्बत और नर पर्बत का बेहत खूबसूरत नजारा मिलता है। 
औली 
यहां पर GNVN का बहुत बढ़िया होटल बना हुआ है। यहां खाना खाने के बाद चढ़ाई करने लगे वैसे यहां से ऊपर तक रोपवे भी है लेकिन हमने पैदल ही जाने का फैसला किया, हम औली के स्‍कीइंग स्‍लोप से होते हुए आगे बढ़ते हुए करीब 5 बजे गोरसौं बुग्‍याल पहुंचे गये।
यह बुग्‍याल काफी खूबसूरत है और इसके तल पर बांज और देवदार के पेड़ हैं, हमारा टैंट यहां लगना था, क्‍योंकि इन चीजों को देखने का और टैंट में सोने का मेरा पहला मौका था इसलिए मैं तो बहुत उत्‍साहित था, सभी लोग बेस कैंप में आराम करने लगे लेकिन मैं, प्रेम और हिमांशु बुग्‍याल के टॉप पर चले गये जहां से सूर्यास्‍त का बेहद खूबसूरत नजारा दिखायी दे रहा था और चारों तरफ छोटी-छोटी मखमली घास बिखरी हुई थी, वहां पर फोटो लेने केे बाद हम काफी देर तक वहां बैठे रहे लेकिन तेज हवा ने हमें नीचे आने के लिए मजबूर कर दिया, नीचे आकर हमने आग जलाई और अपने अनुभवों को एक-दूसरे के साथ बांटने लगे, सभी लोग आपस में घुलने-मिलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अभी तक अलग-अलग ग्रुप्‍स में थे। लेकिन जैसे ही दौर शुरु हुआ तो सभी एक-दूसरे के साथ सहज होने लगे, जिससे माहौल थोड़ा खुशनुमा हो गया।

तीसरा दिन (गौरसौं - क्‍वारी पास - खुलारा टॉप)
गौरसों बेस कैम्‍प
सुबह बस हाथ-मुंह धोया और नाश्‍ता करके बुगयाल में चढ़ने लगे करीब 200 मीटर खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद हम गौरसौं टॉप पर पहुंचे वहां से जो नजारा दिखा उससे सारी थकान गायब चुकी थी, फिर से फोटोबाजी का दौर शुरु हो चुका था, करीब आधा घंटा गुजारने के बाद हम आगे चल दिए यहां से रास्‍ता ज्‍यादातर सीधा ही है लेकिन काफी खतरनाक है अगर पैर फिसला तो कई सौ मीटर नीचे गिरेंगे और बचने की कोई उम्‍मीद नहीं है, खैर धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए हम करीब 1 बजे ताली पहुंचे, रास्‍ते में प्‍यास लगने की वजह से मैने कुछ ऐसे फूल और जड़े खा ली जिनकी वजह से मेरी हालत पतली हो गयी, मेरा पेट खराब हो गया और पेट खराब होने की वजह से मुझे डीहाइड्रेशन हो गया, इसलिए मैं वहीं लेट गया, यहां पर हमने खाना खाया और आराम करने लगे।
गौरसों बुग्‍याल के टॉप का नजारा
यहां से दो रास्‍ते हैं एक खुलारा बेस कैंप के लिए और दूसरा क्‍वारी पास होते हुए खुलारा में आता है। मैं तो पूरी तरह पस्‍त था इसलिए मैंने तो मना कर दिया, साथ ही हुकुम और प्रेम भी मेरे साथ रुक गये बाकी लोग क्‍वारी पास के लिए चले गये और हम खुलारा के लिए, मेरी हालत इतनी खराब थी कि मेरे लिए 4 कदम चलना भी मुश्किल हो रहा था, मैं थोड़ा सा चलता और रुक जाता, मेरे पैर कांप रहे थे। 

ताली में आराम फरमाते हुए

किसी तरह मैं खुलारा पहुंचा और पानी पीने के बाद धूप में लौट गया 2 घंटे धूप में सोने के बाद मेरी तबीयत सुधरी और उसके बाद हम नीचे कैम्‍प में गये वहां दाल-भात बन रहा था, गर्मागर्म दाल-भात खाने के बाद तो मैं एकदम ठीक हो गया, 4 बजने वाले थे मगर बाकी लोगों का कोई अता-पता नहींं था इसलिए हम फोटो ग्राफी करने लगे फिर हमने आग जलाने के लिए लकड़ियां इकट्ठा की।
लगभग 5 बजे के करीब बाकी साथी उतरते हुए दिखायी दिए। उन्‍होंने बताया कि उन्‍हें उतरने में बहुत ज्‍यादा परेशानी हुई क्‍योंकि वहां Trek नहीं बना हुआ था और कई लोग पहली बार Trekking कर रहे थे। 
क्‍वारीपास का नजारा
खुलारा में हमारे अलावा गडरिए भी थे जो अपनी सैकड़ों भेड़-बकरियों को ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों से मैदानी क्ष्‍ोत्रों की तरफ ले जा रहे थे क्‍योंकि कुछ ही दिनों में ऊपरी हिस्‍सों में बर्फबारी शुरु हो जायेगी और हर-भरे नजर आने वाले चरागाह कई फीट बर्फ मेंं ढक जायेंगे। ये गडरिए हर साल गर्मियों में यहां आते हैं और सर्दियों में नीचे मैदानी इलाकों में चले जाते हैं। इनके साथ कुत्‍ते और घोड़े भी होते हैं, घोड़े इनकी जरुरत का सामान और छोटे मेमनों को लेकर चलते हैं, जबकि कुत्‍ते झुंड की रखवाली करते हैं, ये उन्‍हें एक जगह एकत्र भी करते हैं, ये कुत्‍ते बहुत खतरनाक होते हैं, भेड़ों के पास जाते ही ये हमला कर देते हैं।

खुलारा बेस कैंप में चरती भेड़-बकरियां
शाम हो चली थी और पहाड़ों की चोटियों पर धूप की लाल रोशनी बहुत खूबसूरत लग रही थी, इक्‍का-दुक्‍का बादल भी थे जो आसमान में कैनवस पर किसी पेन्टिंग की तरह नजर आ रहे थे, बड़ा ही मनमोहक दृश्‍य था। धीरे-धीरे रात होने लगी थी और सर्दी असर दिखाने लगी थी इसलिए हम सब आग के आस-पास इकट्ठा हो गये और गर्माहट लेने लगे। अब ग्रुप में सभी आपस में घुल-मिल चुके थे जिससे माहौल काफी दोस्‍ताना हो गया था।
मेरी तबीयत अभी भी ज्‍यादा ठीक नहीं थी, मुझे इस बात का बहुत अफसोस था मेरी एक छोटी सी गलती की वजह से मैं पास तक नहीं जा पाया, इसलिए जब भी आप Trekking पर जायें तो अपने साथ फर्स्‍ट एड बॉक्‍स जरुर लेकर जायें क्‍योंकि मौसम में बदलाव के कारण तबीयत खराब हो सकती है।

चौथा दिन (खुलारा - ढाक - जोशीमठ - रुदप्रयाग - देव प्रयाग - ऋषिकेश)
सुबह हमने नाश्‍ता किया और नीचे उतरने लगे, आज केवल नीचे उतरना था, लेकिन उतरना चढ़ने से मुश्किल होता है क्‍योंकि आपके घुटने दुखने लगते हैं और बदन में दर्द होने लगता है। लेकिन मुझे कोई परेशानी नहीं थी मैं तो बस नीचे लगभग दौड़ते हुए उतरने लगा बाकी साथी भी मेरे साथ चलने लगे और करीब आधे घंटे में ही ढाक गांव में पहुंच गये जहां से हमें टैक्‍सी से जोशीमठ जाना था, कुछ लोग पीछे रह गये इसलिए उनका इंतजार करने के अलावा हमारे पास कोई और चारा नहीं था, इसलिए हम वहीं बैठ गये।
ढाक गांव नजारा
सभी लोगों के आने के बाद हम टैक्‍सी से करीब 2 बजे जोशीमठ पहुंचे और वहां से टैक्‍सी पकड़कर रात को 8 बजे के करीब ऋषिकेश पहुंचे गये वहां से हमने खाना खाने के बाद रात 10.30 बजे बस पकड़ी और दिल्‍ली के ओर चल दिये।
दुनिया के सबसे खुश लड़के
दोस्‍तों अगर आप महानगरों की प्रदूषित जिंदगी से तंग आ चुके हैं और बीमार सा महसूस कर रहे हैं तो तरो-ताजा होने का समय आ गया है और इसका सबसे आसान तरीका है वादियों में नीले आसमान के तले और स्‍वच्‍छ हवा में समय बिताना।
आपके विचार और राय मेरे लिए बहुमूल्‍य है। इससे मुझे अपने Hindi Blog को और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
धन्‍यवाद

Monday, November 21, 2016

एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: घुटन की कब्ज

एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: घुटन की कब्ज: भैवा देश की दुर्दशा देख स्वयं तो व्यथा में था ही, मुझे भी दुर्दांत प्रश्नों के चक्रव्यूह में घेरे था।  उनके उत्तर टंकाते टंकाते जब अंगुलिय...

Saturday, November 19, 2016

चुनौतियों भरा रुइनसारा ताल ट्रेक (RUENSARA LAKE TREK)



रुइनसारा के लिए हमारी यात्रा की शुरुआत 

बात 2013 की है, जब Uttrakhand में त्रासदी आयी थी हजारों लोग लापता हो गये थे और उनमें से कई मारे गये थे, उसी साल सितंबर 26 को हम 4 दोस्‍तों हिमांशु दत्‍त, हुकम नेगी, गौरव तलन और मैंने Bali Pass जाने की योजना बनायी, यह बहुत ही रोमांचक Trek है।

इस रोमांचक सफर को करीब से देखने के लिए इस वीडियों को देखें



हमें पता तो था कि बहुत तबाही हुई है लेकिन यह नहीं जानते थे वह सभी जगह हुई थी, Trek बुक करते समय जब हमने गाइड से संपर्क और वहां के हालात के बारे में पूछा तो गाइड ने बताया परेशानी वाली कोई बात नहीं सब कुछ ठीक-ठाक है लेकिन वहां पहुंचने पर पता चला स्थिति कितनी ठीक है। खैर हमने दिल्‍ली से रात को देहरादून की बस पकड़ी और सुबह 5 बजे देहरादून पहुंचे, वहां से सीधे सांकरी तक जाने वाली बस पकड़ी, यह सफर करीब 210 किमी. का है जिसमें करीब 10 घंटे लगते हैं, हम विकास नगर होते हुए करीब 12 बजे पुरोला पहुंचे वहां रुककर खाना खाया और आगे के सफर पर चल दिए, लोकल बस थी इसलिए सवारियां चढ़ी रही थी और उतर रही थी और बस में बहुत भीड़ थी और भारी बारिश होने के कारण सड़क काफी खराब थी इसलिए बस बहुत धीमे चल रही थी। पुराला से आगे बढ़ने पर नजारों ने दिल जीत लिया था चीड़ के पेड़ों के बीच से गुजरती हुई काली सड़क सच में मन मोह लेती है, चेहरे को छूती ठंडी और स्‍वच्‍छ हवा नाक को पूरी तरह खोल देती है और आप हर तरह की महक को महसूस कर पाते हैं, हम कुछ देर बाद मोरी पहुंचे जो River Rafting के लिए भी लोकप्रिय है, आगे नैटवाड़ होते हुए हम करीब 4 बजे सांकरी पहुंचे।

सांकरी गांव

रुइनसारा के लिए पहला पडाव

सांकरी एक छोटा सा गांव हैं यहां पर GNVN और PWD के गेस्‍ट हाउस और अन्‍य छोटे होटल बने हैं, यहां के मकान बौद्ध शैली के हैं और लकड़ी पर बहुत खूबसूरत नक्‍काशी की गयी है, यह समुद्रतल से 1920 मीटर की ऊंचाई पर स्थि‍त है और यहां से कई सारे Trek निकलते हैं जैसे कि Har ki Doon, जो बहुत लोकप्रिय ट्रेक है इसके अलावा केदारकांठा, बाली पास आदि।

यहां हमारा गाइड हमारा इंतजार कर रहा था, गाइड से मिलने के बाद हम होटल में चले गये, होटल बहुत अच्‍छा और साफ-सुथरा था, कल रात 9 बजे से बस में बैठे-बैठे हमारी हालत खराब हो चुकी थी इसलिए, मन कर रहा था बस लेट जायें लेकिन ऐसा नहीं कर सकते थे क्‍योंकि इससे हम बीमार पड़ सकते हैं जिसे ऑल्‍टीट्यूड सिकनेस कहते हैं, हमें वहां के मौसम में खुद को ढालना था, इसलिए हम आगे घूमने निकल गये, वापिस आने पर गाइड से आगे के ट्रेक की जानकारी लेने के बाद हम जल्‍दी ही सो गये।

रुइनसारा के ट्रेक का पहला दिन (सांकरी - तालुका - सीमा (ओसला)

तालुका और सामने का नजाारा

सुबह हमें अगले Base Camp सीमा-ओसला पहुंचना था जो वहां से 25 किमी. दूर था, सांकरी से तालुका 11 किमी. जीप से और आगे का 14 किमी. पैदल पूरा करना होता है, लेकिन बारिश की वजह से सड़क कई जगह से टूटी हुई थी इसलिए जीप नहीं जा सकती थी, हमें पैदल ही जाना था। हम तालुका के लिए निकल पड़े मानसून की वजह से रास्‍ता कच्‍चा और कीचड़ से भरा हुआ था। करीब 2 घंटे पैदल चलने और कई पानी के नाले पार करने के बाद हम तालुका पहुंचे जहां से आपको Himalaya और रुइनसारा घाटी के पहली बार दर्शन होते हैं और सामने स्‍वर्ग रोहिणी पर्वत (Swarg Rohini Mountain) शान से खड़ा नजर आता है, ये एक अदभुत नजारा होता है, हमने यहां खाना खाया और ओसला की ओर चल दिये, हर की दून के लिए भी यही रुट है, जबकि सीमा से रास्‍ते अलग हो जाते हैं, एक हर की दून चला जाता है और दूसरा रुइनसारा की ओर।

चौलाई के खेतों से गुजरता रास्‍ता

हमें बिल्‍कुल भी अंदाजा नहीं था कि आज हमारा बैंड बजने वाला है, जैसे ही ताकुला से थोड़ी दूर चलें तो देखा कि बारिश की वजह से रास्‍ता नदी में बह चुका था और वहां बड़ी फिसलन थी जरा भी गलती होने का मतलब था सीधे उफनती नदी में गिरना। किसी तरह से वहां से निकले तो आगे फिर रास्‍ता गायब था।

इस सीजन में इस रास्‍ते पर आने वाले हम पहले लोगों में से थे इसलिए हमें रास्‍ते के खराब होने की जानकारी थी, कई जगह को पूरा का पूरा हिस्‍सा ही गायब था और मलवा बह रहा था, हमें आगे की चिंता होने लगी लेकिन हमने हिम्‍मत नहीं हारी और आगे बढ़ते रहे। हमारे पोर्टरों को भी मुश्किल हो रही थी, वे बेचारे इस खतरनाक रास्‍ते पर खाने-पीने और ठहरने का सामान पीठ पर लादकर चल रहे थे।

गंगाड़ गांव

आगे हम घने जंगल में उफनती सुपिन नदी के किनारे-किनारे चलते हुए गंगाड़ गांव पहुंचे यह बहुत ही खूबसूरत गांव हैं यहां के मकान प्राचीन शैली के हैं। यहां के लोगों का जीवन बहुत कठिन है इन्‍हें अपनी जरुरत की चीजों को लेने के लिए करीब 10 किलोमीटर पैदल चलते हुए तालुका या सांकरी तक जाना होता है, सर्दियों में बर्फ पड़ने पर ज्‍यादा मुश्किल पेश आती हैं जब इनका संपर्क बाकी दुनिया से कट सा जाता है।

हमें पैदल चलते हुए लगभग 6 घंटे होने वाले थे लेकिन मंजिल आने का नाम नहीं ले रही थी, आखिरकार शाम करीब 4 बजे हम अपने आज के बेस कैम्‍प सीमा पहुंचे, यहां पर गढ़वाल मंडल विकास निगम और PWD का गेस्‍ट हाउस हैं जो बंद थे क्‍योंकि रुट आपदा के बाद से पूरी तरह प्रभावित था और सैलानी यहां नहीं आ रहे थे, हम यहां पहुंचे ही थी कि बारिश शुरु हो गयी थी, हमने एक छोटे सी दुकान में शरण ली, किसी तरह से रहने की व्‍यवस्‍था हुई, हम बहुत थके हुए थे इसलिए खाना खाकर करीब 8 बजे ही सो गये क्‍योंकि अगले दिन हमें इतनी ही दूरी तय करनी थी।

रुइनसारा के ट्रेक का दूसरा दिन (सीमा - रुइनसारा ताल) (3500 mts.)

कालानाग पर्वत के तल पर स्थित रुइनसारा ताल साफ पानी का ताल है, यहां से आपको कालानाग पर्वत, रुइनसार रेंज, बंदरपूंछ और स्‍वर्गरोहिणी पर्वतों का करीब से दीदार करने का अवसर मिलता है जो एकदम अदभुत होता है, यह एक सबसे बेहतरीन कैंपिंग साइट भी है।

सीमा में बारिश का नजारा

सुबह फिर हम 8 बजे अपने रास्‍ते चल दिए, आज भी हमें करीब 15 किमी. चलना था मगर आज की परि‍स्थितियां कुछ अलग थी, समुद्र तल से ऊंचाई बढ़ने की वजह से ऑक्‍सीजन का स्‍तर कम होने और उमस भरे मौसम की वजह से हमें ज्‍यादा थकान महसूस होने लगी और ज्‍यादा पसीना निकलने की वजह से पानी की कमी होने लगी। बार-बार पानी पीने बावजूद प्‍यास नहीं बुझ रही थी तो हमने ओआरएस को पानी की बोतल में घोल लिया फिर थोड़ा आराम मिला, जब आप ऐसी जगहों पर जायें तो ओआरएस या ग्‍लूकोज जरुर लेकर जायें वरना डी-हाइड्रेशन की समस्‍या हो सकती है।

हम नदी के किनारे-किनारे चल रहे थे, पानी का बहाव इतना तेज था कि लगातार बहाव को देखने पर मेरा सिर चकरा रहा था, उस पर रास्‍ता कहीं जगह बिल्‍कुल बह चुका था हमने पहले रास्‍ता बनाया फिर आगे बढ़े लेकिन हमने अपना हौंसला नहीं टूटने दिया।

रुइनसारा घााटी में बहती रुपिन नदी

पूरी घाटी में हम 7-8 लोगों के अलावा और कोई नहीं था और केवल एक आवाज सुनाई देती थी वो थी उफनती नदी की गर्जना। हम करीब 3 बजे जैसे ही रुइनसारा बेस कैम्‍प पहुंचे बारिश फिर से शुरु हो गयी थी, बारिश हमारा साथ दे रही थी। पूरी घाटी में बारिश और नदी की गर्जना ही सुनाई दे रही थी। ठंड और भूख से हमारा बुरा हाल था क्‍योंकि हमारे रास्‍ते का खाना पोर्टरों के पास था और वे हमसे आगे निकल गये थे इसीलिए हमने भूखे पेट ही ट्रेक किया, रुइनसारा पहुंचने पर जब हमारे गाइड ने हमें गर्मागर्म चाय और मैगी खिलाई तब जाकर जान में जान आई। कई लोग सोचते होंगे कि हमें ऐसी जगह जाने की क्‍या जरुरत है जहां पैसे भी तो और मुश्किल भी उठाओ तो इसका मेरा पास कोई ठोस जवाब नहीं है बस यह मेरा शौक है, मुझे नये अनुभवों को लेना पसंद है।

हमने इस तरह से अपना रास्‍ता बनाया

रुइनसारा ताल में लकड़ी से बना भगवान शिवजी का मंदिर

बारिश बंद होने के बाद हमने आग जलाई उसके बाद ही हमारी ठंड कम हुई, खाना खाकर हम जल्‍दी सो गये, क्‍योंकि बारिश फिर से शुरु हो गयी और रात भर होती रही।

रुइनसारा के ट्रेक का तीसरा दिन (रुइनसारा से सीमा)

बेस कैंप से नजारा

सुबह जैसे ही मैंने अपना टेन्‍ट खोला तो सामने का नजारा देखकर मैं दंग रह गया क्‍योंकि सामने की पहाड़ी पर बर्फ की चादर बिछ गयी थी और उस पर पड़ रही उगते हुए सूरज की किरणें गजब ढा रही थी, मैं उस खुशी को बयां नहीं कर सकता। धूप तो निकल आयी थी लेकिन मौसम आज साथ नहीं दे रहा था चोटियों में फिर से बादल बनने लगे थे और धीरे-धीरे वे घने होते चले गये, काफी देर इंतजार करने के बाद जब मौसम ठीक होने की उम्‍मीद नहीं बची तो हमने Bali Pass न जाने और यहीं से वापिस लौटने का फैसला किया।

स्‍वर्गरोहिणी का अदभुत नजारा

नाश्‍ता करने के बाद हम सीमा की ओर चलने लगे फिर से हमें 14 किमी. का ट्रेक करना था जो कि बहुत थका देने वाला था खैर हम दुबारा 3 बजे के आस-पास सीमा पहुंचे और वहां पहुंचते ही फिर से बारिश शुरु हो गयी। आज भी हमें तंग जगह में ही सोना पड़ा क्‍योंकि गेस्‍ट हाउस अभी भी बंद,आज कुछ और ट्रेकर्स यहां पहुंच चुके थे इनमें ज्‍यादातर बंगाली थे, वे भी आसरा न मिलने की वजह से परेशान थे, यहां पर मोबाइल नेटवर्क भी नहीं है कि केयर टेकर को फोन किया जा सके, लेकिन किसी तरह से केयर टेकर से संपर्क किया गया और उनके लिए रहने की व्‍यवस्‍था की गयी, उनके साथ महिलाएं और बच्‍चे भी थे।

रुइनसारा के ट्रेक का चौथा दिन (सीमा - तालुका - सांकरी)

खूबसूरत रुइनसारा घाटी

आज हमें सांकरी पहुंचना है जो यहां से करीब 25 किमी. दूर था मतलब आज भी बस चलते ही जाना था। 3 दिनो से हमने नहाया नहीं था इसलिए हमने रास्‍ते में नहाने का प्‍लान ब और हम बहुत उत्‍साहित होकर छोटी धाारा में नहाने लगे लेकिन वहां पानी इतना ठंडा था कि सारा उत्‍साह गायब हो गया लेकिन हम पूरी तरह से तरोताजा हो गये थे करीब आधा घंटा नहाने के बाद हम आगे बढ़ेे और हम दिन में करीब 1 बजे तालुका पहुंचे वहां पर खाना खाया, यहां पर पता चला कि सांकरी तक जाने वाली जीप रोड़ ठीक हो गयी है, सुनकर बड़ी खुशी हुई, तालुका में बहुत लोग थे जिन्‍हें सांकरी या आगे जाना था इसलिए जीप भर गयी तो मैंने और मेरे दोस्‍त हिमांशु दत्‍त ने छत पर बैठकर जाने का फैसला किया जबकि हुकुम और गौरव जीप के अंदर बैठ गये। जब बोलेरो ऊबड़-खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाती तो हमारी हालत खराब जाती थी लेकिन मजा भी आ रहा था।

बोलेरो के अंदर जगह नहीं थी तो मैंने और हिमांशु ने छत पर सफर करने को फैसला किया

आज हमें यहीं रुकना और कल देहरादून और फिर दिल्‍ली जाना है, यह मेरा अब तक का सबसे रोमांचक और चुनौती भरा ट्रेक था।

आपको भी अगर चुनौतियां पसंद है और खुद को आजमाना चाहते हैं तो आपको यह Trek करना चाहिए आप यहां से आगे बाली पास होते हुए यमनोत्री उतर सकते हैं।

आपके कमेंट्स मेरे लिए बहुमूल्‍य इसलिए कमेंट करने में झिझके नहींं।

यह ब्‍लॉग पूर्णतया मेरे अनुभवों पर आधारित है।

धन्‍यवाद

मैंने और भी कई मजेदार ट्रैकिंग अनुभवों बारे में लिखा है ....इन्‍हें भी पढ़ें 

नेपाल डायरी


 दयारा बुग्‍याल की सैर


खूबसूरत हिमाचल, खीर गंगा 



Wednesday, November 16, 2016

प्रसिद्ध मॉं कालिंका (काली) मंदिर (Kalinka Temple)

कालिंका मंदिर का प्रवेश द्वार

देवी-देवताओं की भूमि उत्‍तराखंड

देवी-देवताओं की भूमि कहे जाने वाले उत्‍तराखंड में आपको हर जिले में देवी-देवताओं के अनेकों छोटे-बड़े मन्दिर मिल जायेंगे जिनके नाम अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन मान्‍यता और श्रृद्धा अटूट है यहां मैं जिस देवी के बारे में बताने जा रहा हूं वह दुर्गा मां के नौ अवतारों - काली, रेणुका (या रेणु), भगवती, भवानी, अंबिका, ललिता, कंदालिनी, जया, राजेश्‍वरी और नौ रुपों - स्‍कंदमाता, कुशमंदा, शैलपुत्री, कालरात्रि, भ्रह्मचारिणी, कात्‍यायिनी, चंद्राघंटा और सिद्धरात्रि में से एक है।

गर्भ गृह में बिराजमान मां की मूर्ति

प्राचीन मॉं कालिंका मंदिर

कालिंका मां काली का स्‍वरुप है। यह कालिंका मां का मंदिर उत्‍तर भारत के उत्‍तराखंड राज्‍य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह अल्‍मोड़ा जिले की सीमा के नजदीक पड़ता है। मंदिर का अस्तित्‍व कई सदियों पुराना है लेकिन अब इसके ढांचे को बदल दिया गया है और नया रुप-रंग दे दिया गया है।


कालिंका माँ की मूर्ति पूजा के पावन अवसर पर श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने अपनी अविस्मरणीय प्रस्तुति दी, आप भी सुने उनके द्वारा गाया गया बेहतरीन भजन

मां कालिंका का मंदिर समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और एक समतल, खाली और पथरीली जगह पर बना है एवम् हरियाली से घिरा है यहां से आपको 360 डिग्री का नजारा दिखाई देता है। इसके चारों चीड़, बांज, बुरांस एवं अन्‍य कई प्रजातियों के पेड़ो से भरा जंगल है। मंदिर तक पहुंचने के लिए गढ़वाल और कुमाउं दोनों ओर से कई रास्‍ते हैं। चढ़ाई आसान से मध्‍यम और कठिन है। यहां से दूधातोली पर्वतों, त्रिशूल श्रृंखला और साथ ही पश्चिम गढ़वाल के बंदरपूंछ रेंज के पर्वतों का शानदार नजारा दिखायी देता जो आपको मंत्र-मुग्‍ध कर देता है।

त्रिशूल एवं बंदरपूंछ पर्वत श्रृंखला का खूबसूरत नजारा

मौसम

यहां का मौसम सबट्रॉपिकल है। गर्मियों में, गर्माहट भरा रहता है और सर्दियों में ठंडा लेकिन चटक धूप वाला होता है, दिसंबर के आखिरी हफ्‍ते से फरवरी के बीच यहां बर्फबारी भी होती है। गर्मियों में यहां का तापमान दिन के समय 25-30 डिग्री सेल्सियस और रात में 10-15 डिग्री सेल्सियस रहता है। सर्दियों में दिन के समय 15 डिग्री सेल्सियस और रात में करीब 5 डिग्री सेल्सियस रहता है।

सर्दियों की चटक धूप में मां के दर्शनों के लिए जाते श्रद्धालू
खिली धूप और नीला आसमान दिल खुश कर देता है

धार्मिक महत्‍व

मां कालिंका स्‍थानीय लोगों के बीच बहुत श्रृद्धेय है और सामाजिक समारोहों और धार्मिक त्‍योहारों में मंदिर का बहुत ज्‍यादा महत्‍व है। ऐसा कहा जाता है कि बहुत समय पहले मां कालिंका एक स्‍थानीय गडरिये के सपनों में आयी और उस खास स्‍थान तक पहुंचने और मां का मंदिर बनाने के लिए कहा। यहां हर 3 साल में सर्दियों के मौसम में मेला लगता है जिसमें लाखों स्‍थानीय लोगों के अलावा दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। मेले की शुरुआत कई दिनों पहले बंदरकोट से हो जाती है मां अपने प्र‍तीक न्‍याजा, के साथ अपनी दीसाओं (बहनों) से मिलने उनके गांव जाती हैं और यात्रा पूरी करते हुए मेले से एक दिन पहले बंदरकोट पहुंचती है। ऐसा माना जाता है कि सच्‍चे मन से मन्‍नत मांगने पर मां कालिंका लोगों की मन्‍नते पूरी कर देती हैं और मन्‍नत पूरी होने पर लोग यहां आकर मां कालिंका को छत्र और घंटियां आदि बांधते हैं। यहां मेले के समय पर देश-विदेशों में बसे उत्‍तराखंडी पहुंचते हैं यहां तक बाहरी लोगों की भी मां के प्रति बहुत श्रद्धा है। वार्षिक मेले केे अलावा भी हर समय यहां लोगों का आना-जाना लग रहता है, कोई मन्‍नत मांगने के लिए जा रहा होता हैै तो कोई मन्‍नत पूरी होने पर अपना वचन पूरा करने के लिए, मंदिर में लोग बारह महीने पहुंचते रहते हैं।

मां के दर्शनों के लिए जाते लोग

आप सर्दियों में यहां बर्फ में खेल सकते हैं

मंदिर के प्रांगण का दृश्‍य

आस-पास के दर्शनीय स्‍थल

उत्‍तराखंड के अन्‍य पर्यटन सर्किटों की तुलना में यह क्षेत्र लगभग अनछुआ है, खासकर गढ़वाल क्षेत्र में। यहां केवल आस-पास के लोग ही आते हैं। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए यहां पर देखने के लिए कई दर्शनीय जगहें हैं जो अभी तक एकदम अनछुई हैं। वे यहां से ट्रेक करते हुए जोगीमढ़ी, चौखाल, बिन्‍देश्‍वर महादेव (समुद्रतल से ऊंचाई 2200 मीटर) (अल्‍मोड़ा के नजदीक स्थित बिन्‍सर महादेव से भ्रमित न हों), दीबा माता मंदिर (छोटी और बड़ी दीबा – समुद्रतल से ऊंचाई 2000 - 2800 मीटर), गुजरु गढ़ी (समुद्रतल से ऊंचाई 2600 मीटर), बीरोंखाल (यह तीलू रौतेली से संबंधित जगह है) बैजरो, गौणी छीड़ा, थलीसैण, ऐंठी दीबा मंदिर, पीरसैण, दूधातोली ट्रेक (3100 मीटर) और गैरसैण जा सकते हैं।  

बड़ी दीबा मंदिर से सूर्यास्‍त का मनमोहक नजारा


बिन्‍देश्‍वर महादेव का प्राचीन मंदिर

कैसे पहुंचे

यहां तक सड़क मार्ग से पहुंचना बहुत ही आसान है। आप रेल से भी जा सकते हैं लेकिन रेल रामनगर तक ही जाती है। आगे का सफर बस या टैक्‍सी से करना होता है। मंदिर तक कई जगहों से पहुंचा जा सकता है – या तो रामनगर से रसिया महादेव होते हुए क्‍वाठा तक और दूसरा रामनगर, कार्बेट नेशनल पार्क, मरचूला, जड़ाऊखांद, धुमाकोट, दीबा होते हुए मैठाणाघाट, सिंदुड़ी या बीरोंखाल में उतर सकते हैं जहां से आपको पैदल चलना होगा। 

आनंद विहार से बैजरो तक सीधी बस सेवा है जो शाम को 7 बजे आनंद विहार से चलती है और सुबह 6 बजे आपको मैठाणाघाट या सिन्‍दूड़ी में छोड़ देती है यहां से मंदिर की दूरी 4 किलोमीटर पहले 2 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई है और आगे सीधा रास्‍ता है, अगर बीरोंखाल में उतरते हैं तो आपको करीब 6-8 किलोमीटर चलना होगा। जबकि यदि आप रसिया महादेव होते हुए क्‍वाठा पहुंचे और वहा से करीब 2 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है।

निजी वाहन से जाने पर आप क्‍वाठा तक सड़क मार्ग से जा सकते हैं।

कहां ठहरें:

ठहरने के लिए यहां कोई लग्‍जरी होटल या बजट होटल नहीं है, चाहें तो टेन्‍ट में रह सकते हैं या आस-पास के गांव में किसी के घर में आसरा ले सकते हैं। गांव में आर्गेनिक चीजों से बना खाना खा सकते हैं और यहां के लोगों के जीवन और संस्‍कृति के बारे में जान सकते हैं। 

अगली बार छुट्टियों पर जाने की योजना बनाते समय इस जगह पर विचार करना न भूलें।

उपरोक्‍त लेख मेरे अनुभवों और रिसर्च के आधार पर आधारित है। यदि आपके पास और कोई जानकारी उपलब्‍ध हैं तो नीचे दिए गए ईमेल एड्रेस पर संपर्क कर सकते हैं। 

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Monday, November 7, 2016

हिमाचल का सबसे लोकप्रिय ट्रैवल डेस्‍टीनेशन - खीर गंगा (Kheer Ganga)

रुद्रनाग से दिखायी देता खूबसूरत नजारा

खीर गंगा के बारे में जानिए

दोस्‍तों हिमाचल में अनेक खूबसूरत पर्यटन स्‍थल हैं और साथ ही यह ट्रेकिंग, पैराग्‍लाइडिंग, पर्वतारोहण और स्‍कीइंग जैसे साहसिक गतिविधियों के लिए भी मशहूर है, खीर गंगा इनमें से एक है जो पार्वती घाटी में स्थित एक खूबसूरत ट्रेक है यह हिमाचल की काफी लोकप्रिय जगह है, इसलिए यहां बहुत ज्‍यादा भीड़-भाड़ रहती है। यहां लोगों के आने का एक अन्‍य कारण यह भी है कि इस जगह के बारे में मान्‍यता है कि शिवजी के बड़े पुत्र कार्तिक जी ने यहां हजारों साल पहले तप किया था और यहां खीर की गंगा बहती थी, आज भी पानी के साथ बहते हुए छोटे-छोटे सफेद कण देखेे जा सकते हैं।

यहां तक पहुंंचने के लिए भुंंतर, कसोल, मणिकरण और भरसैणी तक सड़क मार्ग और आगे का 10 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना होता है।

खीर गंगा ट्रेक की शुरुआत 

भरसैणी में पार्वती नदी पर बने डैम के पास उतरते ही जैसे आप नीचे उतरते हैं तो आपको सामने पार्वती और धौली-गंगा का संगम और पार्वती घाटी का अद्भुत नजारा दिखायी देता है। धौलीगंगा नदी पर बने पुल को पार करते ही असली सफर शुरु हो जाता है यहां से आगे पार्वती नदी के किनारे चलते हुए पल-पल बदलते नजारों का आनंद लिया जा सकता है, जो आपको मंत्रमुग्‍ध कर देंगे, भरसैणी से लगभग 1 घंटे की चढ़ाई के बाद नकथान गांव पड़ता है यह इस रास्‍ते पर आखिरी गांव है, यहां पर सैलानी थोड़ी देर रुक कर आराम कर सकते हैं और कुछ खा-पी सकते हैं, यहां से काफी अच्‍छा नजारा दिखता है और यहां बहुत सारे सेव के बाग हैंं।

सेवों से लदा पेड़

आगे जाने पर रुद्रनाग नाम की जगह आती है जहां पत्‍थर के ऊपर से झरना गिरता है जो काफी सुंदर लगता है, यहां से थोड़ा आगे चलने पर पार्वती नदी पर एक पुल आता है जिसके बाद का ट्रेक घने जंगल के बीच होकर जाता है, रास्‍ते में आपको कैफे मिल जायेंगे जहां आप रुककर कुछ खा-पी भी सकते हैं।

पत्‍थर से गिरता झरना

खीर गंगा में पहुंचने पर थकान मिट जाती है

खीर गंगा पहुंचने पर आपको अलग ही नजारा दिखता है यहां के बुग्‍याल और उन पर मखमली घास आपकी थकान को छू-मंतर कर देती है अगर थोड़ी बहुत थकान रह गयी हो तो आप यहां मौजूद गर्म पानी की धारा में अपनी थकान उतार सकते हैं। यहां पर ठहरने और खाने-पीने की पर्याप्‍त व्‍यवस्‍था है, आप टेंट में ठहर सकते हैं या पक्‍की जगह में ठहर सकते हैं खाने-पीने के लिए रेस्‍टोरेंट भी है, अगर अपना ब्रश, शैम्‍पू, टूथपेस्‍ट और फेसवॉश लाना भूल गये हैं तो कोई बात नहीं यहा एक स्‍टोर भी है जहां से आप सुपर स्‍टोर की तरह शॉपिंग कर सकते हैं।

खीर गंगा में गर्म पानी के कुंड का नजारा

वैसे तो गर्म पानी की धारा मनीकरण गुरुद्वारे के भीतर भी है लेकिन यहां की बात ही अलग है 1-2 घंटे गर्म पानी में बिताने के बाद सारी थकावट दूर हो जाती है। उसके बाद आप घास के मैदानों के नजारों और सामने की चोटिंयों का आनंद उठा सकते हैं।

पार्वती घाटी का मनमोहक नजारा

खीर गंगा में सैलानियों के ठहरने के लिए लगे टेंट्स

यह ट्रेक साल में करीब 7 महीने खुला रहता है। सर्दियों में पहाड़िया बर्फ से ढकी रहती है वहीं बरसात के मौसम में यहां की हरियाली आपको मंत्र-मुग्‍ध कर देती है, बरसात में फिसलन और लैंड स्‍लाइड का डर भी रहता है।

रास्‍ता काफी लंबा और पथरीला है इसलिए ट्रैकिंग शूज होना बहुत जरुरी है र्स्‍पोर्ट्स शूज में परेशानी हो सकती है क्‍योंकि वे ज्‍यादा सु‍रक्षित नहीं होते हैं, कई लोग चप्‍पल और सैंडल पहनकर ही ट्रेक करने देते हैं जिसमें चोट लगने और छाले पड़ने की संभावना बहुत ज्‍यादा रहती है, जिसके आपका अनुभव मुश्किलों से भरा हो सकता है। इसलिए पूरी तैयारी के साथ जाना समझदारी है।

खीर गंगा का अप्रिय अनुभव

यहां मैं अपने अनुभव को आप सभी के साथ बांटना चाहूंगा क्‍योंकि हमारा दिल्‍ली से कसोल तक का सफर काफी परेशानी भरा था, हमें दिल्‍ली से भुंतर पहुंचने में लगभग 22 घंटे लगे थे जबकि वोल्‍वो 12-13 घंटे लेती है, वास्‍तव में हम टूर ऑपरेटर के लुभावने विज्ञापन के झांसे में आ गये थे और यह सोचते हुए ट्रिप बुक करा लिया कि कुछ नया अनुभव करने को मिलेगा लेकिन सब कुछ इसका उल्‍टा हुआ, वह अपने वायदों पर बिल्‍कुल भी खरा नहीं उतरा जिसकी वजह से हमें परेशानियों से जूझना पड़ा इसलिए अगर आप भी टूर ऑपरेटर के साथ जाने की सोच रहे हैं तो पहले उसके रिव्‍यू पढ़ लें या उसकी जांच पड़ताल कर लें।

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आशा हैै आपको लेख पसंद आया हो, आपके कमेंट्स का स्‍वागत है।

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