Saturday, November 19, 2016

चुनौतियों भरा रुइनसारा ताल ट्रेक (RUENSARA LAKE TREK)



रुइनसारा के लिए हमारी यात्रा की शुरुआत 

बात 2013 की है, जब Uttrakhand में त्रासदी आयी थी हजारों लोग लापता हो गये थे और उनमें से कई मारे गये थे, उसी साल सितंबर 26 को हम 4 दोस्‍तों हिमांशु दत्‍त, हुकम नेगी, गौरव तलन और मैंने Bali Pass जाने की योजना बनायी, यह बहुत ही रोमांचक Trek है।

इस रोमांचक सफर को करीब से देखने के लिए इस वीडियों को देखें



हमें पता तो था कि बहुत तबाही हुई है लेकिन यह नहीं जानते थे वह सभी जगह हुई थी, Trek बुक करते समय जब हमने गाइड से संपर्क और वहां के हालात के बारे में पूछा तो गाइड ने बताया परेशानी वाली कोई बात नहीं सब कुछ ठीक-ठाक है लेकिन वहां पहुंचने पर पता चला स्थिति कितनी ठीक है। खैर हमने दिल्‍ली से रात को देहरादून की बस पकड़ी और सुबह 5 बजे देहरादून पहुंचे, वहां से सीधे सांकरी तक जाने वाली बस पकड़ी, यह सफर करीब 210 किमी. का है जिसमें करीब 10 घंटे लगते हैं, हम विकास नगर होते हुए करीब 12 बजे पुरोला पहुंचे वहां रुककर खाना खाया और आगे के सफर पर चल दिए, लोकल बस थी इसलिए सवारियां चढ़ी रही थी और उतर रही थी और बस में बहुत भीड़ थी और भारी बारिश होने के कारण सड़क काफी खराब थी इसलिए बस बहुत धीमे चल रही थी। पुराला से आगे बढ़ने पर नजारों ने दिल जीत लिया था चीड़ के पेड़ों के बीच से गुजरती हुई काली सड़क सच में मन मोह लेती है, चेहरे को छूती ठंडी और स्‍वच्‍छ हवा नाक को पूरी तरह खोल देती है और आप हर तरह की महक को महसूस कर पाते हैं, हम कुछ देर बाद मोरी पहुंचे जो River Rafting के लिए भी लोकप्रिय है, आगे नैटवाड़ होते हुए हम करीब 4 बजे सांकरी पहुंचे।

सांकरी गांव

रुइनसारा के लिए पहला पडाव

सांकरी एक छोटा सा गांव हैं यहां पर GNVN और PWD के गेस्‍ट हाउस और अन्‍य छोटे होटल बने हैं, यहां के मकान बौद्ध शैली के हैं और लकड़ी पर बहुत खूबसूरत नक्‍काशी की गयी है, यह समुद्रतल से 1920 मीटर की ऊंचाई पर स्थि‍त है और यहां से कई सारे Trek निकलते हैं जैसे कि Har ki Doon, जो बहुत लोकप्रिय ट्रेक है इसके अलावा केदारकांठा, बाली पास आदि।

यहां हमारा गाइड हमारा इंतजार कर रहा था, गाइड से मिलने के बाद हम होटल में चले गये, होटल बहुत अच्‍छा और साफ-सुथरा था, कल रात 9 बजे से बस में बैठे-बैठे हमारी हालत खराब हो चुकी थी इसलिए, मन कर रहा था बस लेट जायें लेकिन ऐसा नहीं कर सकते थे क्‍योंकि इससे हम बीमार पड़ सकते हैं जिसे ऑल्‍टीट्यूड सिकनेस कहते हैं, हमें वहां के मौसम में खुद को ढालना था, इसलिए हम आगे घूमने निकल गये, वापिस आने पर गाइड से आगे के ट्रेक की जानकारी लेने के बाद हम जल्‍दी ही सो गये।

रुइनसारा के ट्रेक का पहला दिन (सांकरी - तालुका - सीमा (ओसला)

तालुका और सामने का नजाारा

सुबह हमें अगले Base Camp सीमा-ओसला पहुंचना था जो वहां से 25 किमी. दूर था, सांकरी से तालुका 11 किमी. जीप से और आगे का 14 किमी. पैदल पूरा करना होता है, लेकिन बारिश की वजह से सड़क कई जगह से टूटी हुई थी इसलिए जीप नहीं जा सकती थी, हमें पैदल ही जाना था। हम तालुका के लिए निकल पड़े मानसून की वजह से रास्‍ता कच्‍चा और कीचड़ से भरा हुआ था। करीब 2 घंटे पैदल चलने और कई पानी के नाले पार करने के बाद हम तालुका पहुंचे जहां से आपको Himalaya और रुइनसारा घाटी के पहली बार दर्शन होते हैं और सामने स्‍वर्ग रोहिणी पर्वत (Swarg Rohini Mountain) शान से खड़ा नजर आता है, ये एक अदभुत नजारा होता है, हमने यहां खाना खाया और ओसला की ओर चल दिये, हर की दून के लिए भी यही रुट है, जबकि सीमा से रास्‍ते अलग हो जाते हैं, एक हर की दून चला जाता है और दूसरा रुइनसारा की ओर।

चौलाई के खेतों से गुजरता रास्‍ता

हमें बिल्‍कुल भी अंदाजा नहीं था कि आज हमारा बैंड बजने वाला है, जैसे ही ताकुला से थोड़ी दूर चलें तो देखा कि बारिश की वजह से रास्‍ता नदी में बह चुका था और वहां बड़ी फिसलन थी जरा भी गलती होने का मतलब था सीधे उफनती नदी में गिरना। किसी तरह से वहां से निकले तो आगे फिर रास्‍ता गायब था।

इस सीजन में इस रास्‍ते पर आने वाले हम पहले लोगों में से थे इसलिए हमें रास्‍ते के खराब होने की जानकारी थी, कई जगह को पूरा का पूरा हिस्‍सा ही गायब था और मलवा बह रहा था, हमें आगे की चिंता होने लगी लेकिन हमने हिम्‍मत नहीं हारी और आगे बढ़ते रहे। हमारे पोर्टरों को भी मुश्किल हो रही थी, वे बेचारे इस खतरनाक रास्‍ते पर खाने-पीने और ठहरने का सामान पीठ पर लादकर चल रहे थे।

गंगाड़ गांव

आगे हम घने जंगल में उफनती सुपिन नदी के किनारे-किनारे चलते हुए गंगाड़ गांव पहुंचे यह बहुत ही खूबसूरत गांव हैं यहां के मकान प्राचीन शैली के हैं। यहां के लोगों का जीवन बहुत कठिन है इन्‍हें अपनी जरुरत की चीजों को लेने के लिए करीब 10 किलोमीटर पैदल चलते हुए तालुका या सांकरी तक जाना होता है, सर्दियों में बर्फ पड़ने पर ज्‍यादा मुश्किल पेश आती हैं जब इनका संपर्क बाकी दुनिया से कट सा जाता है।

हमें पैदल चलते हुए लगभग 6 घंटे होने वाले थे लेकिन मंजिल आने का नाम नहीं ले रही थी, आखिरकार शाम करीब 4 बजे हम अपने आज के बेस कैम्‍प सीमा पहुंचे, यहां पर गढ़वाल मंडल विकास निगम और PWD का गेस्‍ट हाउस हैं जो बंद थे क्‍योंकि रुट आपदा के बाद से पूरी तरह प्रभावित था और सैलानी यहां नहीं आ रहे थे, हम यहां पहुंचे ही थी कि बारिश शुरु हो गयी थी, हमने एक छोटे सी दुकान में शरण ली, किसी तरह से रहने की व्‍यवस्‍था हुई, हम बहुत थके हुए थे इसलिए खाना खाकर करीब 8 बजे ही सो गये क्‍योंकि अगले दिन हमें इतनी ही दूरी तय करनी थी।

रुइनसारा के ट्रेक का दूसरा दिन (सीमा - रुइनसारा ताल) (3500 mts.)

कालानाग पर्वत के तल पर स्थित रुइनसारा ताल साफ पानी का ताल है, यहां से आपको कालानाग पर्वत, रुइनसार रेंज, बंदरपूंछ और स्‍वर्गरोहिणी पर्वतों का करीब से दीदार करने का अवसर मिलता है जो एकदम अदभुत होता है, यह एक सबसे बेहतरीन कैंपिंग साइट भी है।

सीमा में बारिश का नजारा

सुबह फिर हम 8 बजे अपने रास्‍ते चल दिए, आज भी हमें करीब 15 किमी. चलना था मगर आज की परि‍स्थितियां कुछ अलग थी, समुद्र तल से ऊंचाई बढ़ने की वजह से ऑक्‍सीजन का स्‍तर कम होने और उमस भरे मौसम की वजह से हमें ज्‍यादा थकान महसूस होने लगी और ज्‍यादा पसीना निकलने की वजह से पानी की कमी होने लगी। बार-बार पानी पीने बावजूद प्‍यास नहीं बुझ रही थी तो हमने ओआरएस को पानी की बोतल में घोल लिया फिर थोड़ा आराम मिला, जब आप ऐसी जगहों पर जायें तो ओआरएस या ग्‍लूकोज जरुर लेकर जायें वरना डी-हाइड्रेशन की समस्‍या हो सकती है।

हम नदी के किनारे-किनारे चल रहे थे, पानी का बहाव इतना तेज था कि लगातार बहाव को देखने पर मेरा सिर चकरा रहा था, उस पर रास्‍ता कहीं जगह बिल्‍कुल बह चुका था हमने पहले रास्‍ता बनाया फिर आगे बढ़े लेकिन हमने अपना हौंसला नहीं टूटने दिया।

रुइनसारा घााटी में बहती रुपिन नदी

पूरी घाटी में हम 7-8 लोगों के अलावा और कोई नहीं था और केवल एक आवाज सुनाई देती थी वो थी उफनती नदी की गर्जना। हम करीब 3 बजे जैसे ही रुइनसारा बेस कैम्‍प पहुंचे बारिश फिर से शुरु हो गयी थी, बारिश हमारा साथ दे रही थी। पूरी घाटी में बारिश और नदी की गर्जना ही सुनाई दे रही थी। ठंड और भूख से हमारा बुरा हाल था क्‍योंकि हमारे रास्‍ते का खाना पोर्टरों के पास था और वे हमसे आगे निकल गये थे इसीलिए हमने भूखे पेट ही ट्रेक किया, रुइनसारा पहुंचने पर जब हमारे गाइड ने हमें गर्मागर्म चाय और मैगी खिलाई तब जाकर जान में जान आई। कई लोग सोचते होंगे कि हमें ऐसी जगह जाने की क्‍या जरुरत है जहां पैसे भी तो और मुश्किल भी उठाओ तो इसका मेरा पास कोई ठोस जवाब नहीं है बस यह मेरा शौक है, मुझे नये अनुभवों को लेना पसंद है।

हमने इस तरह से अपना रास्‍ता बनाया

रुइनसारा ताल में लकड़ी से बना भगवान शिवजी का मंदिर

बारिश बंद होने के बाद हमने आग जलाई उसके बाद ही हमारी ठंड कम हुई, खाना खाकर हम जल्‍दी सो गये, क्‍योंकि बारिश फिर से शुरु हो गयी और रात भर होती रही।

रुइनसारा के ट्रेक का तीसरा दिन (रुइनसारा से सीमा)

बेस कैंप से नजारा

सुबह जैसे ही मैंने अपना टेन्‍ट खोला तो सामने का नजारा देखकर मैं दंग रह गया क्‍योंकि सामने की पहाड़ी पर बर्फ की चादर बिछ गयी थी और उस पर पड़ रही उगते हुए सूरज की किरणें गजब ढा रही थी, मैं उस खुशी को बयां नहीं कर सकता। धूप तो निकल आयी थी लेकिन मौसम आज साथ नहीं दे रहा था चोटियों में फिर से बादल बनने लगे थे और धीरे-धीरे वे घने होते चले गये, काफी देर इंतजार करने के बाद जब मौसम ठीक होने की उम्‍मीद नहीं बची तो हमने Bali Pass न जाने और यहीं से वापिस लौटने का फैसला किया।

स्‍वर्गरोहिणी का अदभुत नजारा

नाश्‍ता करने के बाद हम सीमा की ओर चलने लगे फिर से हमें 14 किमी. का ट्रेक करना था जो कि बहुत थका देने वाला था खैर हम दुबारा 3 बजे के आस-पास सीमा पहुंचे और वहां पहुंचते ही फिर से बारिश शुरु हो गयी। आज भी हमें तंग जगह में ही सोना पड़ा क्‍योंकि गेस्‍ट हाउस अभी भी बंद,आज कुछ और ट्रेकर्स यहां पहुंच चुके थे इनमें ज्‍यादातर बंगाली थे, वे भी आसरा न मिलने की वजह से परेशान थे, यहां पर मोबाइल नेटवर्क भी नहीं है कि केयर टेकर को फोन किया जा सके, लेकिन किसी तरह से केयर टेकर से संपर्क किया गया और उनके लिए रहने की व्‍यवस्‍था की गयी, उनके साथ महिलाएं और बच्‍चे भी थे।

रुइनसारा के ट्रेक का चौथा दिन (सीमा - तालुका - सांकरी)

खूबसूरत रुइनसारा घाटी

आज हमें सांकरी पहुंचना है जो यहां से करीब 25 किमी. दूर था मतलब आज भी बस चलते ही जाना था। 3 दिनो से हमने नहाया नहीं था इसलिए हमने रास्‍ते में नहाने का प्‍लान ब और हम बहुत उत्‍साहित होकर छोटी धाारा में नहाने लगे लेकिन वहां पानी इतना ठंडा था कि सारा उत्‍साह गायब हो गया लेकिन हम पूरी तरह से तरोताजा हो गये थे करीब आधा घंटा नहाने के बाद हम आगे बढ़ेे और हम दिन में करीब 1 बजे तालुका पहुंचे वहां पर खाना खाया, यहां पर पता चला कि सांकरी तक जाने वाली जीप रोड़ ठीक हो गयी है, सुनकर बड़ी खुशी हुई, तालुका में बहुत लोग थे जिन्‍हें सांकरी या आगे जाना था इसलिए जीप भर गयी तो मैंने और मेरे दोस्‍त हिमांशु दत्‍त ने छत पर बैठकर जाने का फैसला किया जबकि हुकुम और गौरव जीप के अंदर बैठ गये। जब बोलेरो ऊबड़-खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाती तो हमारी हालत खराब जाती थी लेकिन मजा भी आ रहा था।

बोलेरो के अंदर जगह नहीं थी तो मैंने और हिमांशु ने छत पर सफर करने को फैसला किया

आज हमें यहीं रुकना और कल देहरादून और फिर दिल्‍ली जाना है, यह मेरा अब तक का सबसे रोमांचक और चुनौती भरा ट्रेक था।

आपको भी अगर चुनौतियां पसंद है और खुद को आजमाना चाहते हैं तो आपको यह Trek करना चाहिए आप यहां से आगे बाली पास होते हुए यमनोत्री उतर सकते हैं।

आपके कमेंट्स मेरे लिए बहुमूल्‍य इसलिए कमेंट करने में झिझके नहींं।

यह ब्‍लॉग पूर्णतया मेरे अनुभवों पर आधारित है।

धन्‍यवाद

मैंने और भी कई मजेदार ट्रैकिंग अनुभवों बारे में लिखा है ....इन्‍हें भी पढ़ें 

नेपाल डायरी


 दयारा बुग्‍याल की सैर


खूबसूरत हिमाचल, खीर गंगा 



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