Wednesday, March 29, 2017

ट्रैवल डायरी - होली (Travel Diary - Holi)

घिन्‍ड़ुड़ी (Sparrow)
इस बार हमारा ट्रिप काफी जबरदस्‍त रहा, हमने बर्फ, ट्रेकिंग और होली का मजा लिया। मार्च के महीने में बर्फ पड़ना एक अनोखी घटना है जो इससे पहले हमारे इलाके में कभी नहीं हुई। इसे ग्‍लोबल वार्मिंग से जोड़कर देखा जा सकता है।
अब हमारे ट्रिप की बात करते हैं, मैं और मेरे भाई हुकुम नेगी ने इस बार होली गांव में मनाने का फैसला किया, दिल्‍ली की होली और हमारे गांव की होली में काफी अंतर है वहां आज भी बच्‍चे गांव-गांव घूमकर लोगों के घरों में होली गाते हैं और बदले में लोग उन्‍हें पैसे या दाल-चावल आदि देते हैं यह एक प्राचीन परंपरा है और मुझे खुशी है कि अभी तक यह जीवित है।
शुक्रवार से ही दिल्‍ली में मौसम काफी उग्र था जबकि हमारे गांव में बर्फबारी शुरु हो चुकी थी। हम शनिवार को प्रात: 4 बजे दिल्‍ली से निकले तो हल्‍की-हल्‍की बारिश हो रही थी लेकिन दिल्‍ली पार होते ही मौसम बिगड़ने लगा जिससे सड़क पर चले रहे वाहनों की रफ्‍तार कम हो गयी, 2-3 जगह पर तो ट्रक पलटे मिले। हम नेशनल हाइवे 24 पर चलते हुए जब गढ़ गंगा पहुंचे तो रात खुलने लगी थी साथ में हल्‍की-हल्‍की बारिश हो रही थी जिससे पूरा नजारा एकदम खुशनुमा और आकर्षक लग रहा था। सड़क पर सरपट दौड़ते वाहन, बादलों और सूरज की लुका-छुपी, जलती हुई स्‍ट्रीट लाइटें और सड़क किनारे लगे पेड़-पौधें से गिरती पानी की बूंदे हमारे ट्रिप को और भी यादगार बना रही थी।
मुरादाबाद-रामपुर बाईपास से हमने कार नेशनल हाइवे नंबर 121 की तरफ मोड़ और ठाकुरद्वारा होते हुए करीब 9 बजे हम काशीपुर पहुंचे वहां अपने भाई के घर नाश्‍ता करने के बाद करीब 11 बजे गांव की तरफ रवाना हो गये। काशीपुर इस समय उत्‍तराखंड के फौजियों और बाकी अन्‍य लोगों के लिए हॉट प्रॉपर्टी है, हर तरफ बनते मकान इस बात का पुख्‍ता करते हैं। बिना किसी मास्‍टर प्‍लान के बनते घर आने वाले समय काशीपुर को भी एक प्रदूषित शहर बना देंगे।
हम करीब 12 बजे रामनगर पहुंचे, रामनगर में भी काफी भीड़-भाड़ है, इसका एक कारण इसका कॉर्बेट नेशनल पार्क का बेस स्‍टेशन होना भी है। हमारे गांव के लिए सड़क कार्बेट नेशनल पार्क के बीच से होकर गुजरती है रास्‍ते में ढिकुली और मोहान जगहें आती जहां बहुत सारे लग्‍जरी कॉटेज, रिर्सोट्स और छोटे होटल बने हुए है यहां सैलानियों का हर वक्‍त जमावड़ा रहता है। रास्‍ते में गर्जिया मां का मंदिर भी पड़ता जिसमें स्‍थानीय और बाहरी लोगों की बड़ी आस्‍ता है, यह मंदिर रामगंगा नंदी के बीचों बीच एक चोटी पर बना हुआ है।
मोहान से आगे बढ़ते हुए हम करीब 1 बजे मरचूला पहुंचे, यह जगह भी धीरे-धीरे पर्यटन स्‍थल के तौर पर विकसित होती जा रही है। यह अल्‍मोड़ा और पौड़ी जिले की सीमा पर स्थित है करीब 4 किलोमीटर आगे से पौड़ी गढ़वाल जिले की सीमा शुरु हो जाती है। हम पहाड़ों पर बल खाती सड़क पर चले जा रहे थे और प्रकृति का आनंद ले रहे थे बाहर का मौसम काफी सर्द था तापमान लगभग 11 डिग्री सेल्सियस के करीब था और बूंदा-बांदी भी हो रही थी। हम सल्‍ट महादेव, खिरैरी खाल, जड़ाऊखांद, धुमाकोट होते हुए करीब 3 बजे दीबा पहुंचे, मोहान से यहां तक रास्‍ता खड़ी चढ़ाई वाला है इसलिए यहां की ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 2500 मीटर से ज्‍यादा है। यहां दीबा मां का मंदिर है जो मां काली का एक रुप है मां का मुख्‍य मंदिर यहां से 3 किमी की चढ़ाई पर बना हुआ है वहां से आप 360 डिग्री का नजारा देख सकते हैं। यहां पर 12 महीने सर्दी रहती है लेकिन आज तो भयंकर सर्दी थी और हर जगह बर्फ से अटी पड़ी थी, हवा बहुत तेज थी जिसके कारण हम ठंड से कांप रहे थे इसलिए हमने यहां ज्‍यादा देर ठहरना मुनासिब नहीं समझा।
यहां से सड़क नीचे उतरना शुरु हो जाती है जिसमें 3 खतरनाक बेंड भी आते हैं, सड़क के दोनों तरफ बर्फ की सफेद चाद बिछी हुई थी और उस पर बुरांस के पेड़ो पर खिले चटक लाल रंग के फूल मन को चंचल बना रहे थे, बेंड्स खत्‍म होने के बाद कोठिला गांव और उसके बाद मैठाणाघाट आता है। कभी यहां बड़ी चहल-पहल रहती थी लेकिन अब तो लोग कम ही दिखते हैं। यहां से मेरे घर की दूरी लगभग 3 किमीं है। करीब 4 बजे हम अपने लोकल मार्केट में पहुंचे और गाड़ी खड़ी करने के बाद करीब 5 बजे तक घर में पहुंच गये।
रात काफी सर्द थी और तेज बारिश हो रही थी हमें आशंका थी कि रात में फिर से बर्फबारी न हो जाये लेकिन जब सुबह उठे तो मौसम एकदम साफ था और आसमान एकदम नीला। धूप आते ही सर्दी गायब हो गयी जिससे थोड़ी राहत मिली।
आज हमने हुकुम के गांव डांडा ग्‍वीन जाना है जो हमारे घर से लगभग 6 किलोमीटर दूर है जिसमें से 3 किमी. एकदम खड़ी चढ़ाई है। हम 10 बजे ग्‍वीन पहुंचे सड़क यहीं तक है इसके बाद ट्रेक करने जाना होता है, करीब आधा किमी चलने के बाद जंगल शुरु हो जाता है यहां बांझ, बुरांस चीड़ और न जाने कितने प्रकार के पेड़ पौधे हैं, इन पेड़ों पर बैठी चिड़ियों की चहचहाहट और हवा से हिलते चीड़ के पत्‍तों की सरसराहट ने हमारी सारी थकान दूर कर दी, हम काफी देर तक वहां बैठे रहे
डांडाग्‍वीन से दिखता  खूबसूरत नजारा
हम करीब 12 बजे डांडा ग्‍वीन पहुंचे यह एक छोटा सा गांव है जो समुद्रतल से करीब 2500 से 2700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और चारों ओर से जंगल से घिरा हुआ है, यहां हमने बचपन में बहुत दिन बिताये हैं अक्‍सर गर्मियों की छुट्टि‍यों में यहां आते थे और काफल एवं सेबों का मजा लेते थे। यहां भी अब काफी कम परिवार रहते हैं बाकी सब बेहतर जिंदगी की तलाश में बाहर चले गये हैं। हम करीब 4 बजे वापिस मैठाणाघाट आ गये वहां होली के लिए हमने थोड़ी बहुत खरीददारी की और वापिस घर आ गये।
गांव में होली ज्‍यादातर कोरे रंगों से ही मनाई जाती है क्‍योंकि पानी से खेलने की भूल कोई नहीं कर सकता है क्‍योंकि पानी बहुत ठंडा होता है। हमारा होली का अनुभव काफी अच्‍छा रहा।
अगले दिन सुबह उठने के बाद हम दिल्‍ली के लिए रवाना हुए, हमने पहले ही तय कर दिया था इस बार हम लैंस डाउन होते हुए जायेंगे। लैंसडाउन एक पर्यटन स्‍थल है और साथ ही गढ़वाल राईफल की छावनी भी है हमने रास्‍ते में ताड़केश्‍वर धाम में दर्शन किए जो भगवान शिव को समर्पित मंदिर है यह मंदिर देवदार के पेड़ों के झुरमुट के बीच बना हुआ है। लंबे-लंबे देवदार के पेड़ों के बीच बना यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है।
ताड़केश्‍वर धाम
दर्शन करने के बाद हम दिल्‍ली के लिए रवाना हो गये और करीब 8 बजे दिल्‍ली पहुंच गये। कुलमिलाकर हमारा यह ट्रिप काफी शानदार और रोमांचक रहा इस तरह के ट्रिप हमें फिर से तरोताजा कर देते हैं और हमारे अंदर एक नयी शक्ति का संचार भी करते हैं जिससे जिंदगी नीरस और तनावपूर्ण नहीं लगती है।
दोस्‍तों आप भी थोड़ा सा समय निकालें और निकल जाइये इस प्रदूषण भरे माहौल से दूर। अगर आप तय नहीं पा रहे हैं कि कहां जाना है तो मुझे बताइये मैं आपकी मदद करुंगा।
धन्‍यवाद!

Friday, March 3, 2017

ब्रह्मताल विंटर ट्रैक (Brahmtaal Winter Trek)

लोहाजंग का मनोरम दृश्‍य
इस बार का किस्‍सा तो बहुत ही रोचक है जब हमने इस ट्रैक पर जाने की योजना बनायी तो हमारे ग्रुप में करीब 15 से 18 लोगों ने चलने के लिए हां कहा था। हम बंदोबस्‍त के बारे में चिंतित थे कि कैसे इतने लोगों के लिए व्‍यवस्‍था हो पायेगी लेकिन जिस दिन जाना था यकीन मानिए उस दिन केवल 6 लोग फाइनल थे।
ऐसा इसलिए हुआ क्‍योंकि सभी लोग तैयार तो थे लेकिन प्रतिबद्ध नहीं थे जिससे कोई भी व्‍यवस्‍था नहीं हो पायी और हम बिना योजना बनाये जाने वाले थे। हम लोगों ने मुंस्‍यारी के पास धाकुड़ी टॉप जाने का प्रोग्राम बनाया था क्‍योंकि वहां से काफनी और पिंडारी ग्‍लेशियर के दर्शन करना बड़ा ही अदभुत होता है। हमारे एक साथी वहां पहले जा चुके थे तो उन्‍होंने कहा कि वहां जाकर सारा बंदोबस्‍त हो जायेगा लेकिन बस अड्डे के लिए निकलने से ठीक 5 घंटे पहले उन्‍होंनें किसी कारण से चलने में असमर्थता जता दी जिसकी वजह से ट्रैक को रद्द करने की नौबत आ गयी थी।
करीब 4 बजे थे और 6 बजे हमें ट्रैक के लिए निकलता था सभी लोगों के बैग पैक थे और जो पहली बार जा रहे थे वे तो बेहद उत्‍साहित थे साथ ही उन्‍होंने काफी खरीददारी भी की थी लेकिन अब स्थिति ये थी कहां जाये, फिर काफी लोगों से जानकारी लेते हुए करीब 6 बजे हमने ब्रह्म ताल जाने का फैसला किया।
हम करीब 9 बजे आनंद विहार बस अड्डा पहुंचे वहां से अल्‍मोड़ा जाने वाली बस में सवार हो गये और करीब 5 बजे काठगोदाम पहुंचे, वहां भी बस वाले ने हमें काठगोदाम से करीब एक किलो‍मीटर आगे उतारा जिससे हमें रात में पैदल चलकर वापिस आना पड़ा और हमारी लोहाजंग जाने वाली सीधी बस छूट गयी।
काठगोदाम में भी हमने काफी मशक्‍कत करने के बाद एक टैक्‍सी वाले को राजी किया और उसने कहा कि वह गरुड़ तक जायेगा और वहां से हमें दूसरी टैक्‍सी में बिठा देगा। हम सभी लोग टैक्‍सी में सवार होकर चल पड़े। हम कुमाऊं की खूबसूरत काली लहराती, बलखाती सड़कों पर अल्‍मोड़ा, सोमेश्‍वर, कोसानी होते हुए करीब 12 बजे बैजनाथ पहुंचे।
बैजनाथ बागेश्‍वर जिले के गरुड़ तहसील में पड़ता है, कौसानी से 12 किमी की दूरी पर स्थित यह एक लोकप्रिय स्‍थान है यहां गोमती नदी और गरुड़ गंगा नदी के संगम पर बैजनाथ मंदिर है जो 12वीं शताब्‍दी का है। इसे 1150 में कंत्‍यूरी राजाओं ने बनवाया था। यहां पर पत्‍थरों से बने कई मंदिर है जिनमें मुख्‍य मंदिर शिवजी का है इसके अलावा यहां पार्वती, गणेश, कुबेर, चंद्रिका, सूर्य, ब्रह्मा ही के भी मंदिर हैं।
यहां पर पार्वती जी की आदम कद काले पत्‍थर से बनी मूर्ति है जो बहुत जी जीवंत लगती है। हिन्‍दु पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां गोमती और गरुड़ नदी के संगम पर शिवजी और पार्वती की शादी हुई थी।
खैर गरुड़ में टैक्‍सी वाले ने हमें उतार कर दूसरी टैक्‍सी में बिठा दिया और चला गया। टैक्‍सी वाले से हमारी बात काठगोदाम से लोहाजंग तक के लिए हुई थी लेकिन दूसरे टैक्‍सी वाले ने कहा कि उससे केवल देवाल तक की बात हुई है अगर उससे आगे जाना है तो और पैसे लगेंगे हमने पहली टैक्‍सी वाले को फोन लगाया तो उसका फोन बंद था। हम ठगा हुआ महसूस कर रहे थे, क्‍योंकि टैक्‍सी वाले को पता था हमारे पास और कोई चारा नहीं है इसलिए वह अड़ा रहा आखिर हमने उससे कहा कि भाई तू हमें देवाल तक छोड़ दे उसके बाद हम देख लेंगे। गरुड़ से आगे बढ़ने पर सड़क चीड़ और बुरांस के जंगलों से होकर गुजरती है जो थकान को थोड़ा कम कर देती है।  
डंगोली, ग्‍वार पजेणा, स्‍याली, सिरकोट बाजार होते हुए हम ग्‍वालदम पहुंचे। ग्‍वालदम चमोली जिले में पड़ता है यहां से कुमाऊं की सीमा खत्‍म होती और गढ़वाल की सीमा शुरु होती है।
ग्‍वालदम समुद्रतल से 1950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा सा हिल स्‍टेशन है, यह कुलसार से 25 किमी की दूरी पर है जहां नंदा देवी राज जात की डोली रुकती है। यहां से त्रिशूल पर्वत श्रृंखला का शानदार नजारा पहली बार दिखाती देता है जो आपकी आंखों को सुकून पहुंचाता है। ग्‍वालदम एक ऐतिहासिक जगह है यहां पर कुमाऊं और गढ़वाल के राजाओं के बीच कई लड़ाईयां लड़ी गयी क्‍योंकि सामरिक दृष्टि से यह बहुत अहम स्‍थान था। यहां पर और भी कई घूमने की जगहें हैं।   
यहां से आगे बढ़ते हुए हम सरकोट, नंद किशोर और उसके बाद पिंडर नदी के किनारे चलते हुए करीब 3 बजे देवाल पहुंचे। यहां से तीसरी टैक्‍सी लेकर करीब शाम 5 बजे लोहाजंग पहुंचे।
लोहाजंग एक छोटा सा गांव है जो गढ़वाल के चमोली जिले में पड़ता है इसकी समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 2350 मीटर है। लोहाजंग रुपकुंड, बेदनी बुगयाल, ब्रह्मताल ट्रेक्‍स के लिए बेस स्‍टेशन है। यहां पर रहने की भरपूर व्‍यवस्‍था है, यहां GMVN के साथ-साथ बहुत सारे छोटे-छोटे होटल हैं। यहां से आपको नंदघुमठी का मनमोहक नजारा दिखायी देता है।
हमारे यहां पहुंचने पर सूर्यास्‍त हो चुका था और तेज हवा बह रही थी जिसके कारण बहुत ज्‍यादा ठंड थी। हम गाइड से मिले और सामान रखने के बाद आस-पास टहलने लगे थे। मौसम बहुत साफ था और कई दिनों से बारिश नहीं होने के कारण ठंड में नमी बिलकुल नहीं थी। हवा तेज और रुखी थी जिससे हमारी उंगलियां ठंड के कारण सुन्‍न होने लगी थी।
बर्फबारी के बाद बादलों से ढकी घाटी
रात में हवा और तेज हो गयी, ऐसा लग रहा था तूफान आ रहा है। सुबह आंख खुली तो चारों ओर सफेद चादर बिछ चुकी थी और अभी भी बर्फबारी जारी थी, हमें लगने लगा कि अगर बर्फबारी नहीं रुकी तो हमें ट्रैक कैंसल करना पड़ेगा।
आपको पता ही होगा कि ट्रैकिंग या माउन्‍टेनरिंग जैसे साहसिक गतिविधियां में मौसम अहम भूमिका निभाता है, पूरी गतिविधि का दारोमदार मौसम पर ही निर्भर रहता है क्‍योंकि प्रकृति से जीतना नामुमकिन है। हमने थोड़ा इंतजार करने का फैसला किया और लगभग 10 बजे मौसम तक मौसम कुछ ठीक हुआ और हमने अपना ट्रैक आगे जारी रखने का फैसला किया और तैयार होकर अगले बेस कैम्‍प की तरफ चल पड़े, बर्फबारी अभी भी रुक-रुक कर हो रही थी। पेड़-पौधे, खेत खलिहान, घर पहाड़ सभी कुछ सफेद चादर से ढका हुआ था दृश्‍य किसी ब्‍लैक एंड व्‍हाइट फिल्‍म जैसा था।
बर्फबारी के बाद लोहाजंग का दृश्‍य
यह आसान ट्रैक है हम लगभग 2-3 घंटे में बेस कैम्‍प में पहुंच गये हैं। बेस कैम्‍प बेकलताल से पहले लगा था यह जगह भी तालाब जैसी ही थी बीच में गहरी और चारों ओर से उभरी हुई। यहां ऊंचाई अधिक होने के कारण अभी भी रुक-रुक बर्फबारी हो रही थी और साथ बहुत तेज हवा भी चल रही थी, ठंड के कारण हमारे हाथ-पैरों की उंगलियां ठंडी पड़ने लगी थी।
बेस कैम्‍प पर चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी टेन्‍ट लगाने के लिए सूखी जगह न मिल पाने के कारण हमें बर्फ के ऊपर ही टेंट लगाने पड़े, दोपहर के बाद मौसम थोड़ा सा खुलना शुरु हुआ तो सूरज और बादलों के बीच लुका-छुपी का खेल शुरु हो गया लेकिन शाम होते-होते बादल हार गये और थोड़ी देर के लिए हमें धूप के दर्शन हुए। मौसम खुलने पर हमने सबसे पहले आग जलाने के लिए लकड़ियां जमा की क्‍योंकि वहां बहुत तेज और जमा देने वाली हवा चल रही थी। लकड़ियां बहुत गीली थीं जिससे आग जलाने में थोड़ी बहुत दिक्‍कत हुई लेकिन अनुभव काम आया और गीली लकड़ियां भ्‍ाी जल उठीं।
बर्फबारी के बीच बेस कैम्‍प का नजारा
रात होते ही पार्टी शुरु हुई जो काफी देर तक चली फिर हमने खाना खाया और लगभग 10 बजे सोने चले गये। टेन्‍ट बर्फ के ऊपर बिठाये हुए थे इसलिए टेन्‍ट के अंदर भी ठंड लग रही थी इसकी बड़ी वजह थी स्‍लीपिंग मैट्स का अच्‍छी क्‍वालिटी का न होना। वे नमी और ठंडक को इंसु‍लेट नहीं कर पाये जिससे नमी ऊपर स्‍लीपिंग बैग तक पहुंचे गयी। रात करवट बदलते हुए ही बीती और सुबह जैसे ही उजाला हुआ मैं तो टेंट से बाहर गया। बाहर तो और भी बुरा हाल था पानी तक जमा हुआ था। मैनें रात में जलाई आग को टटोलना शुरु किया तो उसमें कुछ अंगारे अभी जल रहे थे बस फिर क्‍या था मैंने उन्‍हें से आग जला ली और पीने के पानी के लिए बर्फ को बर्तन में रखकर पिघलाना शुरु कर दिया जिससे सभी लोगों को बहुत सुविधा हुई।
करीब 8 बजे तक हम नाश्‍ता करके ब्रह्मताल जाने के लिए तैयार हो गये थे, थोड़ा सा ऊपर चलने पर एक और ताल आता है जिसका नाम बेकलताल है यह करीब 200 मीटर लम्‍बा और 100 मीटर चौड़ा होगा।
यहां से आगे करीब 1 किमीं की चढ़ाई है उसके बाद ब्रह्मताल जाने के लिए आपको नीचे उतरना होता है ताल के पास भी बेस कैंप है। ब्रह्मताल जाने का असली मजा सर्दियों में ही है क्‍योंकि जब बर्फ पड़ती है तो यह ताल जम जाता है और आस-पास की पर्वत श्रृंखलाओं का प्रतिबिंब इसमें दिखने लगता है।
त्रिशूल पर्वत का नजारा
आप खमीला टॉप तक जा सकते हैं जहां से आपको पूरा त्रिशूल पर्वत और बेदिनी बुग्‍याल का एक हिस्‍सा नजर आता है, बेदिनी बुगयाल रुपकुंड ट्रेक के रास्‍ते में पड़ता है। खमीला टॉप पर हम सबसे पहले पहुंचे इसलिए वहां की बर्फ एकदम अनछुई और ताजा थी। बाद में जो लोग आये उन्‍होंने बर्फ को तहस-नहस कर दिया। यहां हम करीब एक घंटा रहे और उसके बाद लगभग 1 बजे तक वापिस बेस कैम्‍प आ गये। अब हमारे पास दो विकल्‍प थे पहला य‍ह कि आज रात यहीं कैम्‍प करना और दूसरा यह कि अभी नीचे उतरते हुए शाम तक लोहाजंग पहुंच जाना। हमने दूसरा वाला विकल्‍प चुना और गर्मागर्म दाल-भात खाने के बाद करीब 3:30 बजे लोहाजंग के लिए ट्रैक करना शुरु किया, हम करीब 2 घंटे में ही लोहाजंग पहुंच गये।
खमीला टॉप 
रात को लोहाजंग में रुकने के बाद सुबह दिल्‍ली जाने वाली 6:30 की बस में बैठ गये जो हमारी बहुत बड़ी भूल थी। बस वाला हमें रुलाते-रुलाते हुए लाया बस एक घंटे चलती और उसके बाद एक घंटे के लिए रुक जाती। ऐसा करते-करते उसने हमें करीब शाम 7 बजे हल्‍दवानी पहुंचाया। हल्‍वानी पहुंचने पर बस एक से डेढ़ घंटे डिपो में खड़ी रही और करीब 8:30 बजे वहां से निकली लेकिन आधा घंटा ही हुआ होगा कि ड्राइवर ने फिर से बस रोक दी और खाना खाने लगा। हम करीब 22 घंटे का सफर करते हुए करीब सुबह 5 बजे दिल्‍ली पहुंचे।
मैं तो यही सुझाव दूंगा कि सीधी बस कभी ना लें इसकी बजाय लोकल बस लेते हुए टुकड़ों में यात्रा करें आपका बहुत ज्‍यादा समय बचेगा।
यह ट्रैक हमारे लिए यादगार और अनुभवों भरा रहा। यह दूसरा मौका था जब हमने बर्फबारी में ट्रेक किया।
कैसे पहुंचे : लोहाजंग पहुंचने के दो रास्‍ते हैं -
1. दिल्‍ली - काठगोदाम - अल्‍मोड़ा- बैजनाथ - ग्‍वालदम - देवाल होते हुए लोहाजंग पहुंचना
2. दिल्‍ली - ॠषिकेष - देवप्रयाग - श्रीनगर - रुद्रप्रयाग - कर्णप्रयाग - थराली - ग्‍वालदम - देवाल होते हुए लोहाजंग पहुंचना
कब जायें: जुलाई और अगस्‍त को छोड़कर कभी भी जा सकते हैं
कहां रुकें: लोहा जंग में GNVN तथा बहुत सारे छोटे होटल और लॉज हैं जो ऑफ सीजन में काफी कम दाम पर मिल जाते हैं। सीजन यानि अप्रैल - जून और सितंबर - अक्‍टूबर के बीच पहले से व्‍यवस्‍था करके जायें क्‍योंकि यहां बहुत भीड़-भाड़ रहती है।
याद रखें ट्रैकिंग के लिए कभी भी र्स्‍पोट्स या अन्‍य फॉर्मल जूते पहनकर न जायें वरना आपका अनुभव दर्दनाक हो सकता है। केवल ट्रैकिंग शूज ही इस्‍तेमाल करें।
अगर आप ब्‍लॉग के बारे में कोई टिप्‍पणी करना चाहते हैं तो आप मुझे ईमेल कर सकते हैं या नीचे कमेंट भी पोस्‍ट कर सकते हैं।
याद रखें आपके सुझाव या आलोचना मुझे अपने ब्‍लॉग ज्‍यादा बेहतर बनाने में मदद करती है इसलिए बेझिझक होकर कमेंट पोस्‍ट करें।
धन्‍यवाद

कुछ लोकप्रिय लेख