लोहाजंग का मनोरम दृश्य |
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सभी लोग तैयार तो थे लेकिन प्रतिबद्ध नहीं थे जिससे कोई भी व्यवस्था नहीं हो पायी और हम बिना योजना बनाये जाने वाले थे। हम लोगों ने मुंस्यारी के पास धाकुड़ी टॉप जाने का प्रोग्राम बनाया था क्योंकि वहां से काफनी और पिंडारी ग्लेशियर के दर्शन करना बड़ा ही अदभुत होता है। हमारे एक साथी वहां पहले जा चुके थे तो उन्होंने कहा कि वहां जाकर सारा बंदोबस्त हो जायेगा लेकिन बस अड्डे के लिए निकलने से ठीक 5 घंटे पहले उन्होंनें किसी कारण से चलने में असमर्थता जता दी जिसकी वजह से ट्रैक को रद्द करने की नौबत आ गयी थी।
करीब 4 बजे थे और 6 बजे हमें ट्रैक के लिए निकलता था सभी लोगों के बैग पैक थे और जो पहली बार जा रहे थे वे तो बेहद उत्साहित थे साथ ही उन्होंने काफी खरीददारी भी की थी लेकिन अब स्थिति ये थी कहां जाये, फिर काफी लोगों से जानकारी लेते हुए करीब 6 बजे हमने ब्रह्म ताल जाने का फैसला किया।
हम करीब 9 बजे आनंद विहार बस अड्डा पहुंचे वहां से अल्मोड़ा जाने वाली बस में सवार हो गये और करीब 5 बजे काठगोदाम पहुंचे, वहां भी बस वाले ने हमें काठगोदाम से करीब एक किलोमीटर आगे उतारा जिससे हमें रात में पैदल चलकर वापिस आना पड़ा और हमारी लोहाजंग जाने वाली सीधी बस छूट गयी।
काठगोदाम में भी हमने काफी मशक्कत करने के बाद एक टैक्सी वाले को राजी किया और उसने कहा कि वह गरुड़ तक जायेगा और वहां से हमें दूसरी टैक्सी में बिठा देगा। हम सभी लोग टैक्सी में सवार होकर चल पड़े। हम कुमाऊं की खूबसूरत काली लहराती, बलखाती सड़कों पर अल्मोड़ा, सोमेश्वर, कोसानी होते हुए करीब 12 बजे बैजनाथ पहुंचे।
बैजनाथ बागेश्वर जिले के गरुड़ तहसील में पड़ता है, कौसानी से 12 किमी की दूरी पर स्थित यह एक लोकप्रिय स्थान है यहां गोमती नदी और गरुड़ गंगा नदी के संगम पर बैजनाथ मंदिर है जो 12वीं शताब्दी का है। इसे 1150 में कंत्यूरी राजाओं ने बनवाया था। यहां पर पत्थरों से बने कई मंदिर है जिनमें मुख्य मंदिर शिवजी का है इसके अलावा यहां पार्वती, गणेश, कुबेर, चंद्रिका, सूर्य, ब्रह्मा ही के भी मंदिर हैं।
यहां पर पार्वती जी की आदम कद काले पत्थर से बनी मूर्ति है जो बहुत जी जीवंत लगती है। हिन्दु पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां गोमती और गरुड़ नदी के संगम पर शिवजी और पार्वती की शादी हुई थी।
खैर गरुड़ में टैक्सी वाले ने हमें उतार कर दूसरी टैक्सी में बिठा दिया और चला गया। टैक्सी वाले से हमारी बात काठगोदाम से लोहाजंग तक के लिए हुई थी लेकिन दूसरे टैक्सी वाले ने कहा कि उससे केवल देवाल तक की बात हुई है अगर उससे आगे जाना है तो और पैसे लगेंगे हमने पहली टैक्सी वाले को फोन लगाया तो उसका फोन बंद था। हम ठगा हुआ महसूस कर रहे थे, क्योंकि टैक्सी वाले को पता था हमारे पास और कोई चारा नहीं है इसलिए वह अड़ा रहा आखिर हमने उससे कहा कि भाई तू हमें देवाल तक छोड़ दे उसके बाद हम देख लेंगे। गरुड़ से आगे बढ़ने पर सड़क चीड़ और बुरांस के जंगलों से होकर गुजरती है जो थकान को थोड़ा कम कर देती है।
डंगोली, ग्वार पजेणा, स्याली, सिरकोट बाजार होते हुए हम ग्वालदम पहुंचे। ग्वालदम चमोली जिले में पड़ता है यहां से कुमाऊं की सीमा खत्म होती और गढ़वाल की सीमा शुरु होती है।
ग्वालदम समुद्रतल से 1950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा सा हिल स्टेशन है, यह कुलसार से 25 किमी की दूरी पर है जहां नंदा देवी राज जात की डोली रुकती है। यहां से त्रिशूल पर्वत श्रृंखला का शानदार नजारा पहली बार दिखाती देता है जो आपकी आंखों को सुकून पहुंचाता है। ग्वालदम एक ऐतिहासिक जगह है यहां पर कुमाऊं और गढ़वाल के राजाओं के बीच कई लड़ाईयां लड़ी गयी क्योंकि सामरिक दृष्टि से यह बहुत अहम स्थान था। यहां पर और भी कई घूमने की जगहें हैं।
यहां से आगे बढ़ते हुए हम सरकोट, नंद किशोर और उसके बाद पिंडर नदी के किनारे चलते हुए करीब 3 बजे देवाल पहुंचे। यहां से तीसरी टैक्सी लेकर करीब शाम 5 बजे लोहाजंग पहुंचे।
लोहाजंग एक छोटा सा गांव है जो गढ़वाल के चमोली जिले में पड़ता है इसकी समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 2350 मीटर है। लोहाजंग रुपकुंड, बेदनी बुगयाल, ब्रह्मताल ट्रेक्स के लिए बेस स्टेशन है। यहां पर रहने की भरपूर व्यवस्था है, यहां GMVN के साथ-साथ बहुत सारे छोटे-छोटे होटल हैं। यहां से आपको नंदघुमठी का मनमोहक नजारा दिखायी देता है।
हमारे यहां पहुंचने पर सूर्यास्त हो चुका था और तेज हवा बह रही थी जिसके कारण बहुत ज्यादा ठंड थी। हम गाइड से मिले और सामान रखने के बाद आस-पास टहलने लगे थे। मौसम बहुत साफ था और कई दिनों से बारिश नहीं होने के कारण ठंड में नमी बिलकुल नहीं थी। हवा तेज और रुखी थी जिससे हमारी उंगलियां ठंड के कारण सुन्न होने लगी थी।
रात में हवा और तेज हो गयी, ऐसा लग रहा था तूफान आ रहा है। सुबह आंख खुली तो चारों ओर सफेद चादर बिछ चुकी थी और अभी भी बर्फबारी जारी थी, हमें लगने लगा कि अगर बर्फबारी नहीं रुकी तो हमें ट्रैक कैंसल करना पड़ेगा।
बर्फबारी के बाद बादलों से ढकी घाटी |
आपको पता ही होगा कि ट्रैकिंग या माउन्टेनरिंग जैसे साहसिक गतिविधियां में मौसम अहम भूमिका निभाता है, पूरी गतिविधि का दारोमदार मौसम पर ही निर्भर रहता है क्योंकि प्रकृति से जीतना नामुमकिन है। हमने थोड़ा इंतजार करने का फैसला किया और लगभग 10 बजे मौसम तक मौसम कुछ ठीक हुआ और हमने अपना ट्रैक आगे जारी रखने का फैसला किया और तैयार होकर अगले बेस कैम्प की तरफ चल पड़े, बर्फबारी अभी भी रुक-रुक कर हो रही थी। पेड़-पौधे, खेत खलिहान, घर पहाड़ सभी कुछ सफेद चादर से ढका हुआ था दृश्य किसी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म जैसा था।
यह आसान ट्रैक है हम लगभग 2-3 घंटे में बेस कैम्प में पहुंच गये हैं। बेस कैम्प बेकलताल से पहले लगा था यह जगह भी तालाब जैसी ही थी बीच में गहरी और चारों ओर से उभरी हुई। यहां ऊंचाई अधिक होने के कारण अभी भी रुक-रुक बर्फबारी हो रही थी और साथ बहुत तेज हवा भी चल रही थी, ठंड के कारण हमारे हाथ-पैरों की उंगलियां ठंडी पड़ने लगी थी।
बर्फबारी के बाद लोहाजंग का दृश्य |
बेस कैम्प पर चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी टेन्ट लगाने के लिए सूखी जगह न मिल पाने के कारण हमें बर्फ के ऊपर ही टेंट लगाने पड़े, दोपहर के बाद मौसम थोड़ा सा खुलना शुरु हुआ तो सूरज और बादलों के बीच लुका-छुपी का खेल शुरु हो गया लेकिन शाम होते-होते बादल हार गये और थोड़ी देर के लिए हमें धूप के दर्शन हुए। मौसम खुलने पर हमने सबसे पहले आग जलाने के लिए लकड़ियां जमा की क्योंकि वहां बहुत तेज और जमा देने वाली हवा चल रही थी। लकड़ियां बहुत गीली थीं जिससे आग जलाने में थोड़ी बहुत दिक्कत हुई लेकिन अनुभव काम आया और गीली लकड़ियां भ्ाी जल उठीं।
रात होते ही पार्टी शुरु हुई जो काफी देर तक चली फिर हमने खाना खाया और लगभग 10 बजे सोने चले गये। टेन्ट बर्फ के ऊपर बिठाये हुए थे इसलिए टेन्ट के अंदर भी ठंड लग रही थी इसकी बड़ी वजह थी स्लीपिंग मैट्स का अच्छी क्वालिटी का न होना। वे नमी और ठंडक को इंसुलेट नहीं कर पाये जिससे नमी ऊपर स्लीपिंग बैग तक पहुंचे गयी। रात करवट बदलते हुए ही बीती और सुबह जैसे ही उजाला हुआ मैं तो टेंट से बाहर गया। बाहर तो और भी बुरा हाल था पानी तक जमा हुआ था। मैनें रात में जलाई आग को टटोलना शुरु किया तो उसमें कुछ अंगारे अभी जल रहे थे बस फिर क्या था मैंने उन्हें से आग जला ली और पीने के पानी के लिए बर्फ को बर्तन में रखकर पिघलाना शुरु कर दिया जिससे सभी लोगों को बहुत सुविधा हुई।
बर्फबारी के बीच बेस कैम्प का नजारा |
करीब 8 बजे तक हम नाश्ता करके ब्रह्मताल जाने के लिए तैयार हो गये थे, थोड़ा सा ऊपर चलने पर एक और ताल आता है जिसका नाम बेकलताल है यह करीब 200 मीटर लम्बा और 100 मीटर चौड़ा होगा।
यहां से आगे करीब 1 किमीं की चढ़ाई है उसके बाद ब्रह्मताल जाने के लिए आपको नीचे उतरना होता है ताल के पास भी बेस कैंप है। ब्रह्मताल जाने का असली मजा सर्दियों में ही है क्योंकि जब बर्फ पड़ती है तो यह ताल जम जाता है और आस-पास की पर्वत श्रृंखलाओं का प्रतिबिंब इसमें दिखने लगता है।
आप खमीला टॉप तक जा सकते हैं जहां से आपको पूरा त्रिशूल पर्वत और बेदिनी बुग्याल का एक हिस्सा नजर आता है, बेदिनी बुगयाल रुपकुंड ट्रेक के रास्ते में पड़ता है। खमीला टॉप पर हम सबसे पहले पहुंचे इसलिए वहां की बर्फ एकदम अनछुई और ताजा थी। बाद में जो लोग आये उन्होंने बर्फ को तहस-नहस कर दिया। यहां हम करीब एक घंटा रहे और उसके बाद लगभग 1 बजे तक वापिस बेस कैम्प आ गये। अब हमारे पास दो विकल्प थे पहला यह कि आज रात यहीं कैम्प करना और दूसरा यह कि अभी नीचे उतरते हुए शाम तक लोहाजंग पहुंच जाना। हमने दूसरा वाला विकल्प चुना और गर्मागर्म दाल-भात खाने के बाद करीब 3:30 बजे लोहाजंग के लिए ट्रैक करना शुरु किया, हम करीब 2 घंटे में ही लोहाजंग पहुंच गये।
त्रिशूल पर्वत का नजारा |
खमीला टॉप |
मैं तो यही सुझाव दूंगा कि सीधी बस कभी ना लें इसकी बजाय लोकल बस लेते हुए टुकड़ों में यात्रा करें आपका बहुत ज्यादा समय बचेगा।
यह ट्रैक हमारे लिए यादगार और अनुभवों भरा रहा। यह दूसरा मौका था जब हमने बर्फबारी में ट्रेक किया।
कैसे पहुंचे : लोहाजंग पहुंचने के दो रास्ते हैं -
1. दिल्ली - काठगोदाम - अल्मोड़ा- बैजनाथ - ग्वालदम - देवाल होते हुए लोहाजंग पहुंचना
2. दिल्ली - ॠषिकेष - देवप्रयाग - श्रीनगर - रुद्रप्रयाग - कर्णप्रयाग - थराली - ग्वालदम - देवाल होते हुए लोहाजंग पहुंचना
कब जायें: जुलाई और अगस्त को छोड़कर कभी भी जा सकते हैं
कहां रुकें: लोहा जंग में GNVN तथा बहुत सारे छोटे होटल और लॉज हैं जो ऑफ सीजन में काफी कम दाम पर मिल जाते हैं। सीजन यानि अप्रैल - जून और सितंबर - अक्टूबर के बीच पहले से व्यवस्था करके जायें क्योंकि यहां बहुत भीड़-भाड़ रहती है।
याद रखें ट्रैकिंग के लिए कभी भी र्स्पोट्स या अन्य फॉर्मल जूते पहनकर न जायें वरना आपका अनुभव दर्दनाक हो सकता है। केवल ट्रैकिंग शूज ही इस्तेमाल करें।
अगर आप ब्लॉग के बारे में कोई टिप्पणी करना चाहते हैं तो आप मुझे ईमेल कर सकते हैं या नीचे कमेंट भी पोस्ट कर सकते हैं।
याद रखें आपके सुझाव या आलोचना मुझे अपने ब्लॉग ज्यादा बेहतर बनाने में मदद करती है इसलिए बेझिझक होकर कमेंट पोस्ट करें।
धन्यवाद
मुझे भी यहां जाने का अवसर मिला जो मेरे लिए बहुत ही मजेदार रहा।
ReplyDeleteIt was a great experience.
I would like to go with them again and again.
Loved ur post .I also wanna visit lohajang
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