Wednesday, July 28, 2021

गुजुडू गढ़ी की अदभुत गुफा और सैर-सपाटा

Gujuru Garhi Temple

गुजुडू गढ़ी गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक है, यह ऐतिहासिक होने के साथ-साथ घूमने के लिए बहुत अच्‍छी जगह भी है। जब आप चोटी पर पहुंचते हैं तो आपको कुमाऊं और गढ़वाल का आश्‍चर्यजनक दृश्‍य दिखायी पड़ता है लेकिन जो चीज इस जगह को विशेष बनाती है वह है यहां की गुफाएं और उनके अंदर बनी सीढियां और कुएं।

यह स्‍थान दीवा डांडा (जंगल) के मध्‍य में स्थित है और समुद्रतल से इसकी ऊंचाई लगभग 2400 मीटर है यहां का मौसम गर्मियों में सुहावना और सर्दियों में बहुत ठंडा रहता है, सर्दियों में यहां बर्फबारी भी होती है जिससे यहां का नजारा और भी मनमोहक हो जाता है।

गुजुडू गढ़ी हमारे गांव से लगभग 20 किलो‍मीटर की दूरी पर है यहां तक पहुंचने के दो रास्‍ते हैं-पहला रास्‍ता कठिन चढाई वाला है और दूसरा काफी आसान है इसमें हमें लगभग 4-5 किलोमीटर ही पैदल चलना होता है।

 

Way up to Gujuru Garhi Top

हमारे गांव के लड़कों ने गुजुडू गढ़ी घूमने का प्‍लान बनाया, हम 12 लोग लगभग दोपहर 12 बजे अपने गांव सिन्‍दुड़ी से टैक्‍सी में सवार हुए और मैठाणाघाट-बवांसा-ग्‍वीन-रसियामहादेव होते हुए लगभग 3 बजे किनगोड़ीखाल में पहुंचे क्‍योंकि हम वहां रात को रुकने वाले थे इसलिए रास्‍ते से ही खाने-पीने का सामान खरीद लिया गया। गुजुडू गढ़ी चोटी पर होने के कारण वहां पानी की समस्‍या है इसलिए हमारे पास 12 लोगों के लिए खाना पकाने और पीने के लिए पर्याप्‍त पानी ले जाने की चुनौती थी इसलिए सभी से 2-2 लीटर की बोतलें लाने के लिए कहा गया था। किनगोड़ी खाल से करीब 1 किमी ऊपर चढने के बाद हमें एक घर दिखायी दिया जहां से हमें पानी मिल सकता था इसलिए हमने उनसे अनुरोध किया और उन्‍होंने हमें 40 लीटर का ड्रम दे दिया लेकिन समस्‍या यह थी कि इसे खड़ी चढ़ाई में कौन लेकर जाएगा! 40 लीटर पानी से भरा ड्रम ले जाने की चुनौती भाई बब्‍बू ने संभाली, रास्‍ते में रुक-रुक कर बारिश भी हो रही थी जिसके कारण आधा किलोमीटर चढ़ने के बाद उसे मुश्किल होने लगी इसलिए ड्रम से थोड़ा पानी गिरा दिया गया इसी प्रकार जैसे ऊंचाई बढ़ती गयी ड्रम में पानी कम होता चला गया और जब हम बेसकैम्‍प तक पहुंचे तो उसमें लगभग 15 लीटर पानी ही रह गया था।

किनगोड़ीखाल से गुजुडू गढ़ी की चोटी तक पहुंचने में हमें लगभग 2-3 घंटे लगे, पूरा रास्‍ता चढ़ाई वाला है जिससे थकान अधिक हो रही थी लेकिन जब मैं चोटी पर पहुंचा तो सारी थकान दूर हो गयी। चोटी पर एक मंदिर बना हुआ है जिसमें अनेक दे‍वी-देवताओं की मूर्तियां रखी हुई हैं, मंदिर के पास में एक कुआं है जो अब बंद हो गया है वहीं मंदिर के पीछे की ओर 2 मकान बने हुए है एक तो शायद धर्मशाला है और दूसरी जंगलात की चौकी है, धर्मशाला की स्थिति चिंताजनक है वहां रात को रुका नहीं जा सकता है लेकिन जंगलात की चौकी रहने लायक है। हम 4 लोग सबसे पहले चोटी पर पहुंचे थे इसलिए हमने सबसे पहले चौकी की साफ-सफाई की और उसके बाद लकड़ियाँ ढूंढने चले गये, अन्‍य साथियों के पहुंचने तक हम आग जलाने के लिए लकड़ियां जमा कर चुके थे बाद में सभी की मदद से लकड़ियों को कैम्‍प तक पहुंचाया गया। बारिश के कारण लकड़ियां बहुत गीली थीं जिसके कारण आग जलाने में बहुत परेशानी हुई।

Well on the Top

रात में वहां का नजारा और भी आकर्षक लग रहा था चोटी से एक तरफ कुमाऊँ और दूसरी तरफ गढ़वाल के बिजली की रोशनी में चमकते गांव दिखायी दे रहे थे और आसमान में अनेक आकृतियां बनायें तारे हमें लुभा रहे थे ऐसा लग रहा था मानों हम अंतरिक्ष में बैठे हों, मैं तो बहुत देर तक उन नजारों को निहारता रहा जिससे मुझे बहुत ही ज्‍यादा सुकून मिला। रात गहराने के साथ बेसकैम्‍प में मस्‍ती का लेवल बढ़ता चला गया, म्‍यूजिक बजने लगा, सभी लोग म्‍यूजिक के बीट्स पर झूमने लगे जब मस्‍ती ज्‍यादा चढ़ी तो ढोल बजने लगा और यह सिलसिला प्रात: 4 बजे तक चलता रहा। 

View from the Grujuru Garhi Peak

सुबह मैंने उठकर चाय बनायी और तरो-ताजा होने के बाद चोटी पर चला गया वहां की ठंडी हवा में ध्‍यान (मेडिटेशन) करने लगा लगभग आधा घंटा ध्‍यान करने के बाद मैं और भी तरोताजा महसूस करने लगा। 7 बज चुके थे लेकिन अन्‍य साथी अभी तक सो रहे थे मैंने फिर से सबको जगाया, एक-एक करके सभी उठने लगे। सब लोगों के जागने के बाद हमने नाश्‍ता किया जो कि रात का बचा हुआ खाना था। लगभग 9 बजे हमें वहां गुफाएं देखने के लिए चल दिए क्‍योंकि हम लोगों में से किसी को जानकारी नहीं थी कि गुफाएं कहां पर है इसलिए ढूंढने में बहुत समय लगा, एक बार तो ऐसा लगा कि चलो यार चलते हैं लेकिन 1 घंटा भटकने के बाद आखिर कार हमें गुफा मिल ही गयी।

गुफा के अंदर जाने में तो पहले मैं हिचकिचाया क्‍योंकि वहां जंगली जानवर हो सकते थे लेकिन हिम्‍मत करके मैं अंदर गया तो देखा वहां पत्‍थरों को काटकर ऊपर की ओर एक सुरंग बनायी गयी है जिसमें अनेकों पत्‍थरों की सीडियाँ बनायी गयी थी और कुछ-कुछ दूरी पर बायीं ओर कुएं बने हुए थे जिनमें पानी भरा हुआ था, सुरंग में पानी टपक रहा था। सच में यह एक अद्भुत नजारा था, वहां जाने पर मुझे नेपाल की याद आ गयी। 2015 में जब मैं नेपाल गया था तो वहां के पोखरा शहर में भी एक ऐसी ही सुरंग है जो नीचे की ओर जाती है उसमें आप 2 मंजिल जितना नीचे उतर सकते हैं उसके बाद उसे बंद कर दिया गया है।

Gujuru Garhi Cave


गुफा और सुरंग का अनुभव करने से सभी साथी प्रसन्‍न थे क्‍योंकि जिसके लिए हम यहां तक पहुंचे थे वह हमें मिल चुका था। गुफा के दर्शन करने के बाद जैसे ही हम मुख्‍य रास्‍ते पर आये तो पता लगा वहां पहुंचना तो बहुत आसान था। चोटी से 1 किलोमीटर पहले 2 रास्‍ते निकलते हैं एक गुफा की ओर जाता है और दूसरा चोटी की ओर।

नीच उतरते हुए हम उसी घर में पहुंचे जहां से हमने पानी का ड्रम लिया था। वह जगह जंगल के बीच में है और वहां केवल 2 परिवार रहते हैं, उन्‍होंने तरह-तरह के फलदार पेड़ लगाये हुए हैं, उन्‍होंने हमें प्‍लम खाने को दिये, कुछ लोगों ने उनसे ताजे आलू, प्‍याज और लहसुन खरीदा। चलने से पहले हमने उनका धन्‍यवाद किया और अपना रात का बना हुआ राशन उन्‍हें दे दिया जिससे उन्‍हें बड़ी प्रसन्‍नता हुई।

वहां से लगभग 1 किलोमीटर उतरने के बाद हम पुन: किनगोड़ी खाल पहुंच गये वहां पर भी कुछ साथियों ने स्‍थानीय चीजें खरीदीं जिसके पश्‍चात हम गाड़ी में सवार होकर लगभग दोपहर 1 बजे तक घर पहुंच गये थे। 

आपको यह लेख कैसा लगा मुझे अवश्‍य बतायें।

इन मजेदार ब्‍लॉग्‍स को भी अवश्‍य पढ़ें 

 

 

Monday, July 19, 2021

बिन्‍देश्‍वर महादेव (बिनसर महादेव) पौड़ी गढ़वाल

 
बिन्‍देश्‍वर मंदिर परिसर में‍ विराजमान नंदी की पत्‍थर की विशाल मूर्ति

यूं तो हमारे क्षेत्र में अनेकों प्रसिद्ध जगहें हैं जैसे कि मां कालिंका का मंदिर, दीवा मां का मंदिर, गुजडू गढी की अदभुत गुफाएं इत्‍यादि उन्‍हीं में से एक है बिन्‍देश्‍वर महादेव (बिनसर महादेव)। यह बिसौणा गांव में स्थित है जो पौड़ी गढ़वाल के थलीसैण ब्‍लॉक के चौथान क्षेत्र में आता है, इसकी ऊंचाई समुद्रतल से 2480 मीटर है। यहां तक पहुंचने के लिए आपको थलीसैन से पीठसैण तक 12 किलोमीटर टैक्‍सी या कार से और आगे का रास्‍ता पैदल ही तय करना होता है जिसमें लगभग 2-3 घंटे लगते हैं रास्‍ता ज्‍यादा मुश्किल नहीं है लेकिन लम्‍बा है। जैसे ही आप पीठसैण से चलना शुरु करते हैं आपको अनेक चमकदार चट्टानें मिलेंगी जो धूप में चमकते हुए बहुत अद्भुत लगती हैं उसके बाद का रास्‍ता घने जंगल के बीच से होकर गुजरता है, यहां आपको अनेक प्रजातियों के घने वृक्ष मिलेंगे।

पुराने समय में यहां दर्शन करने जब लोग जाते थे तो उसे जात्रा कहा जाता था जो दीपावली के 11 दिन बाद शुरू होती है। लोग अपने-अपने क्षेत्रों से पैदल चलकर यहां पहुंचते हैं और पैदल यात्रा के समय महिलाएं गढ़वाली लोकगीत बौ सुरैला (झुमैलो की तरह का लोकगीत) गाते हुए चलती हैं। यहां पूजा दिन से लेकर रात भर चलती है, रातभर देवताओं का नाच होता है रातभर चलने वाली पूजा के बाद अगले दिन सुबह पूर्णमासी स्नान के बाद लोग वापसी करते हैं। लोग यहां पर बैल यानी नंदी दान करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाराजा पृथू ने अपने पिता, बिन्‍दू की याद में 9वीं/10वीं शताब्‍दी में कराया था। यह कत्‍यूरी शैली का मंदिर है जो जागेश्‍वर और आदि बद्री के समकालीन था लेकिन इस बात के कोई लिखित प्रमाण नहीं है। 


हम यहां सितम्‍बर 2020 में गये थे उस समय पूरा वन हरा-भरा था, जगह-जगह प्रकृति के रंग दिखायी दे रहे थे, हमने अपना सफर लगभग सुबह 6 बजे शुरु किया था लगभग 2 घंटे की सड़क यात्रा के बाद हम पीठसैण पहुंचे, पीठसैण ढलान वाली जगह पर स्थित है जहां से चौथान क्षेत्र का खुबसूरत दृश्‍य दिखायी देता है यहां पर वीर चंद्रसिंह गढ़वाली द्वार है जो हमें इस स्‍वतंत्रता सेनानी की याद दिलाता है। यहां से लगभग 1-2 किलोमीटर की चढ़ाई शुरु होती है जिसके बाद का रास्‍ता उतार-चढ़ाव वाला है, भोज पत्र, बुरांस, देवदार और अन्‍य अनेकों प्रजातियों से भरे घने जंगल से गुजरता रास्‍ता आपको थकान अनुभव नहीं होने देता है। 

पीठसैण की चोटी का दृश्‍य
 


2-3 घंटे पैदल चलने के बाद बिंदेश्‍वर महादेव के दर्शन होते हैं यहां पर पहले प्राचीन शैली का पत्‍थरों से बना मंदिर था जिसे हटाकर अब यहां नये मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। प्रांगण में आपको पत्‍थरों पर की गयी सुंदर नक्‍काशी देखने को मिलेगी, यहां पर पत्‍थर पर तराशी गयी नंदी की विशाल मूर्ति है जिसके आस-पास अनेकों प्राचीन शिलालेख बिखरे हुए हैं। सूंड के आकार के झरने से कल-कल बहता पानी आपकी यात्रा की थकान और प्‍यास को पूरी तरह मिटा देता है। 

मंदिर में रखे अनेक तरह के शिलालेख और आकृतियां
 

लगभग 3 घंटे रुकने के बाद हम लोगों ने लौटने का निर्णय लिया, जब हम पीठसैण के ऊपर पहुंचे तो सूर्यास्‍त होने को था जिसका दृश्‍य बहुत ही मनोरम था। पीठसैण पहुंचकर लड़कों का प्‍लान बदल गया, सबने तय किया कि भौन, मांसों, जगतपुरी, चौखाल होते हुए वापिस जायेंगे। पीठसैण में अंधेरा होने लगा था, अंधेरा बढ़ने के साथही पहाड़ों में दूर-दूर बसें घरों की लाइटे एक-एक करके जलने लगी थी जो आसमान में तारों की भांति चमचमा रही थी जिसका आकर्षण बहुत ही सुकूनदायक था, जैसे ही हम बल खाती सड़क से नीचे उतरने लगे प्‍लान एक बार फिर बदल गया, अब तय हुआ कि रास्‍ते में रुककर पार्टी करेंगे और उसके बाद घर जायेंगे, फिर क्‍या था देखते ही देखते पार्टी का सारा सामान एकत्रित हो गया। रात के लगभग 8 बज चुके थे हम एकदम निर्जन जगह पर रुके शायद उपरैंखाल नाम था। कार की हेडलाइट की रोशनी में चिकन-भात बनाया गया, जो सोमरस पीना चाहते है उनके लिए भी पूरी व्‍यवस्‍था थी, सभी ने पार्टी का पूरा आनंद उठाया और रात लगभग 10 बजे हमने अपना सफर शुरु किया और लगभग 12 बजे तक अपने-अपने घरों तक पहुंच गये।

इस ट्रिप ने हमें 6 महीने के लॉकडाउन के मानसिक दबाव से निकलने में बड़ी सहायता की, हम सभी बहुत हल्‍का और सकारात्‍मक महसूस कर रहे थे। 

 
यदि आप लोग भी यहां आना चाहते हैं तो मुझे अवश्‍य संपर्क करें। 
 
इन्‍हें भी पढ़ें 
 



 
 

 

कुछ लोकप्रिय लेख