पुराने समय में यहां दर्शन करने जब लोग जाते थे तो उसे जात्रा कहा जाता था जो दीपावली के 11 दिन बाद शुरू होती है। लोग अपने-अपने क्षेत्रों से पैदल चलकर यहां पहुंचते हैं और पैदल यात्रा के समय महिलाएं गढ़वाली लोकगीत बौ सुरैला (झुमैलो की तरह का लोकगीत) गाते हुए चलती हैं। यहां पूजा दिन से लेकर रात भर चलती है, रातभर देवताओं का नाच होता है रातभर चलने वाली पूजा के बाद अगले दिन सुबह पूर्णमासी स्नान के बाद लोग वापसी करते हैं। लोग यहां पर बैल यानी नंदी दान करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाराजा पृथू ने अपने पिता, बिन्दू की याद में 9वीं/10वीं शताब्दी में कराया था। यह कत्यूरी शैली का मंदिर है जो जागेश्वर और आदि बद्री के समकालीन था लेकिन इस बात के कोई लिखित प्रमाण नहीं है।
हम यहां सितम्बर 2020 में गये थे उस समय पूरा वन हरा-भरा था, जगह-जगह प्रकृति के रंग दिखायी दे रहे थे, हमने अपना सफर लगभग सुबह 6 बजे शुरु किया था लगभग 2 घंटे की सड़क यात्रा के बाद हम पीठसैण पहुंचे, पीठसैण ढलान वाली जगह पर स्थित है जहां से चौथान क्षेत्र का खुबसूरत दृश्य दिखायी देता है यहां पर वीर चंद्रसिंह गढ़वाली द्वार है जो हमें इस स्वतंत्रता सेनानी की याद दिलाता है। यहां से लगभग 1-2 किलोमीटर की चढ़ाई शुरु होती है जिसके बाद का रास्ता उतार-चढ़ाव वाला है, भोज पत्र, बुरांस, देवदार और अन्य अनेकों प्रजातियों से भरे घने जंगल से गुजरता रास्ता आपको थकान अनुभव नहीं होने देता है।
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पीठसैण की चोटी का दृश्य |
2-3 घंटे पैदल चलने के बाद बिंदेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं यहां पर पहले प्राचीन शैली का पत्थरों से बना मंदिर था जिसे हटाकर अब यहां नये मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। प्रांगण में आपको पत्थरों पर की गयी सुंदर नक्काशी देखने को मिलेगी, यहां पर पत्थर पर तराशी गयी नंदी की विशाल मूर्ति है जिसके आस-पास अनेकों प्राचीन शिलालेख बिखरे हुए हैं। सूंड के आकार के झरने से कल-कल बहता पानी आपकी यात्रा की थकान और प्यास को पूरी तरह मिटा देता है।
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मंदिर में रखे अनेक तरह के शिलालेख और आकृतियां |
लगभग 3 घंटे रुकने के बाद हम लोगों ने लौटने का निर्णय लिया, जब हम पीठसैण के ऊपर पहुंचे तो सूर्यास्त होने को था जिसका दृश्य बहुत ही मनोरम था। पीठसैण पहुंचकर लड़कों का प्लान बदल गया, सबने तय किया कि भौन, मांसों, जगतपुरी, चौखाल होते हुए वापिस जायेंगे। पीठसैण में अंधेरा होने लगा था, अंधेरा बढ़ने के साथही पहाड़ों में दूर-दूर बसें घरों की लाइटे एक-एक करके जलने लगी थी जो आसमान में तारों की भांति चमचमा रही थी जिसका आकर्षण बहुत ही सुकूनदायक था, जैसे ही हम बल खाती सड़क से नीचे उतरने लगे प्लान एक बार फिर बदल गया, अब तय हुआ कि रास्ते में रुककर पार्टी करेंगे और उसके बाद घर जायेंगे, फिर क्या था देखते ही देखते पार्टी का सारा सामान एकत्रित हो गया। रात के लगभग 8 बज चुके थे हम एकदम निर्जन जगह पर रुके शायद उपरैंखाल नाम था। कार की हेडलाइट की रोशनी में चिकन-भात बनाया गया, जो सोमरस पीना चाहते है उनके लिए भी पूरी व्यवस्था थी, सभी ने पार्टी का पूरा आनंद उठाया और रात लगभग 10 बजे हमने अपना सफर शुरु किया और लगभग 12 बजे तक अपने-अपने घरों तक पहुंच गये।
इस ट्रिप ने हमें 6 महीने के लॉकडाउन के मानसिक दबाव से निकलने में बड़ी सहायता की, हम सभी बहुत हल्का और सकारात्मक महसूस कर रहे थे।
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