Gujuru Garhi Temple |
गुजुडू गढ़ी गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक है, यह ऐतिहासिक होने के साथ-साथ घूमने के लिए बहुत अच्छी जगह भी है। जब आप चोटी पर पहुंचते हैं तो आपको कुमाऊं और गढ़वाल का आश्चर्यजनक दृश्य दिखायी पड़ता है लेकिन जो चीज इस जगह को विशेष बनाती है वह है यहां की गुफाएं और उनके अंदर बनी सीढियां और कुएं।
यह स्थान दीवा डांडा (जंगल) के मध्य में स्थित है और समुद्रतल से इसकी ऊंचाई लगभग 2400 मीटर है यहां का मौसम गर्मियों में सुहावना और सर्दियों में बहुत ठंडा रहता है, सर्दियों में यहां बर्फबारी भी होती है जिससे यहां का नजारा और भी मनमोहक हो जाता है।
गुजुडू गढ़ी हमारे गांव से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है यहां तक पहुंचने के दो रास्ते हैं-पहला रास्ता कठिन चढाई वाला है और दूसरा काफी आसान है इसमें हमें लगभग 4-5 किलोमीटर ही पैदल चलना होता है।
Way up to Gujuru Garhi Top |
हमारे गांव के लड़कों ने गुजुडू गढ़ी घूमने का प्लान बनाया, हम 12 लोग लगभग दोपहर 12 बजे अपने गांव सिन्दुड़ी से टैक्सी में सवार हुए और मैठाणाघाट-बवांसा-ग्वीन-रसियामहादेव होते हुए लगभग 3 बजे किनगोड़ीखाल में पहुंचे क्योंकि हम वहां रात को रुकने वाले थे इसलिए रास्ते से ही खाने-पीने का सामान खरीद लिया गया। गुजुडू गढ़ी चोटी पर होने के कारण वहां पानी की समस्या है इसलिए हमारे पास 12 लोगों के लिए खाना पकाने और पीने के लिए पर्याप्त पानी ले जाने की चुनौती थी इसलिए सभी से 2-2 लीटर की बोतलें लाने के लिए कहा गया था। किनगोड़ी खाल से करीब 1 किमी ऊपर चढने के बाद हमें एक घर दिखायी दिया जहां से हमें पानी मिल सकता था इसलिए हमने उनसे अनुरोध किया और उन्होंने हमें 40 लीटर का ड्रम दे दिया लेकिन समस्या यह थी कि इसे खड़ी चढ़ाई में कौन लेकर जाएगा! 40 लीटर पानी से भरा ड्रम ले जाने की चुनौती भाई बब्बू ने संभाली, रास्ते में रुक-रुक कर बारिश भी हो रही थी जिसके कारण आधा किलोमीटर चढ़ने के बाद उसे मुश्किल होने लगी इसलिए ड्रम से थोड़ा पानी गिरा दिया गया इसी प्रकार जैसे ऊंचाई बढ़ती गयी ड्रम में पानी कम होता चला गया और जब हम बेसकैम्प तक पहुंचे तो उसमें लगभग 15 लीटर पानी ही रह गया था।
किनगोड़ीखाल से गुजुडू गढ़ी की चोटी तक पहुंचने में हमें लगभग 2-3 घंटे लगे, पूरा रास्ता चढ़ाई वाला है जिससे थकान अधिक हो रही थी लेकिन जब मैं चोटी पर पहुंचा तो सारी थकान दूर हो गयी। चोटी पर एक मंदिर बना हुआ है जिसमें अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी हुई हैं, मंदिर के पास में एक कुआं है जो अब बंद हो गया है वहीं मंदिर के पीछे की ओर 2 मकान बने हुए है एक तो शायद धर्मशाला है और दूसरी जंगलात की चौकी है, धर्मशाला की स्थिति चिंताजनक है वहां रात को रुका नहीं जा सकता है लेकिन जंगलात की चौकी रहने लायक है। हम 4 लोग सबसे पहले चोटी पर पहुंचे थे इसलिए हमने सबसे पहले चौकी की साफ-सफाई की और उसके बाद लकड़ियाँ ढूंढने चले गये, अन्य साथियों के पहुंचने तक हम आग जलाने के लिए लकड़ियां जमा कर चुके थे बाद में सभी की मदद से लकड़ियों को कैम्प तक पहुंचाया गया। बारिश के कारण लकड़ियां बहुत गीली थीं जिसके कारण आग जलाने में बहुत परेशानी हुई।
Well on the Top |
रात में वहां का नजारा और भी आकर्षक लग रहा था चोटी से एक तरफ कुमाऊँ और दूसरी तरफ गढ़वाल के बिजली की रोशनी में चमकते गांव दिखायी दे रहे थे और आसमान में अनेक आकृतियां बनायें तारे हमें लुभा रहे थे ऐसा लग रहा था मानों हम अंतरिक्ष में बैठे हों, मैं तो बहुत देर तक उन नजारों को निहारता रहा जिससे मुझे बहुत ही ज्यादा सुकून मिला। रात गहराने के साथ बेसकैम्प में मस्ती का लेवल बढ़ता चला गया, म्यूजिक बजने लगा, सभी लोग म्यूजिक के बीट्स पर झूमने लगे जब मस्ती ज्यादा चढ़ी तो ढोल बजने लगा और यह सिलसिला प्रात: 4 बजे तक चलता रहा।
View from the Grujuru Garhi Peak |
सुबह मैंने उठकर चाय बनायी और तरो-ताजा होने के बाद चोटी पर चला गया वहां की ठंडी हवा में ध्यान (मेडिटेशन) करने लगा लगभग आधा घंटा ध्यान करने के बाद मैं और भी तरोताजा महसूस करने लगा। 7 बज चुके थे लेकिन अन्य साथी अभी तक सो रहे थे मैंने फिर से सबको जगाया, एक-एक करके सभी उठने लगे। सब लोगों के जागने के बाद हमने नाश्ता किया जो कि रात का बचा हुआ खाना था। लगभग 9 बजे हमें वहां गुफाएं देखने के लिए चल दिए क्योंकि हम लोगों में से किसी को जानकारी नहीं थी कि गुफाएं कहां पर है इसलिए ढूंढने में बहुत समय लगा, एक बार तो ऐसा लगा कि चलो यार चलते हैं लेकिन 1 घंटा भटकने के बाद आखिर कार हमें गुफा मिल ही गयी।
गुफा के अंदर जाने में तो पहले मैं हिचकिचाया क्योंकि वहां जंगली जानवर हो सकते थे लेकिन हिम्मत करके मैं अंदर गया तो देखा वहां पत्थरों को काटकर ऊपर की ओर एक सुरंग बनायी गयी है जिसमें अनेकों पत्थरों की सीडियाँ बनायी गयी थी और कुछ-कुछ दूरी पर बायीं ओर कुएं बने हुए थे जिनमें पानी भरा हुआ था, सुरंग में पानी टपक रहा था। सच में यह एक अद्भुत नजारा था, वहां जाने पर मुझे नेपाल की याद आ गयी। 2015 में जब मैं नेपाल गया था तो वहां के पोखरा शहर में भी एक ऐसी ही सुरंग है जो नीचे की ओर जाती है उसमें आप 2 मंजिल जितना नीचे उतर सकते हैं उसके बाद उसे बंद कर दिया गया है।
Gujuru Garhi Cave |
गुफा और सुरंग का अनुभव करने से सभी साथी प्रसन्न थे क्योंकि जिसके लिए हम यहां तक पहुंचे थे वह हमें मिल चुका था। गुफा के दर्शन करने के बाद जैसे ही हम मुख्य रास्ते पर आये तो पता लगा वहां पहुंचना तो बहुत आसान था। चोटी से 1 किलोमीटर पहले 2 रास्ते निकलते हैं एक गुफा की ओर जाता है और दूसरा चोटी की ओर।
नीच उतरते हुए हम उसी घर में पहुंचे जहां से हमने पानी का ड्रम लिया था। वह जगह जंगल के बीच में है और वहां केवल 2 परिवार रहते हैं, उन्होंने तरह-तरह के फलदार पेड़ लगाये हुए हैं, उन्होंने हमें प्लम खाने को दिये, कुछ लोगों ने उनसे ताजे आलू, प्याज और लहसुन खरीदा। चलने से पहले हमने उनका धन्यवाद किया और अपना रात का बना हुआ राशन उन्हें दे दिया जिससे उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई।
वहां से लगभग 1 किलोमीटर उतरने के बाद हम पुन: किनगोड़ी खाल पहुंच गये वहां पर भी कुछ साथियों ने स्थानीय चीजें खरीदीं जिसके पश्चात हम गाड़ी में सवार होकर लगभग दोपहर 1 बजे तक घर पहुंच गये थे।
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अद्भुत जानकारी प्राचीन् धरोहरो की
ReplyDeleteThis is historical place,gujurugadi is one garh among 52 garh. We must fwd this to the Uttarakhand govt tourism dept for further well development as Vaisno Devi mata Temple. Nice composer. I like it. Jai Uttrakhand.
ReplyDeleteWah bete ki wah maja hi gaya blog dekh ke
ReplyDeleteBahut hi sundar nazara tha gujurugadi ka
ReplyDeleteBahut sunder sir
ReplyDeleteBhut sunset or adbhud
ReplyDeleteआप सभी का धन्यवाद
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