Thursday, August 11, 2022

बीरोंखाल और आसपास के लोकप्रिय पर्यटन स्‍थल

बीरोंखाल समुद्रतल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है जो पौड़ी गढ़वाल जिले के बीरोंखाल ब्‍लॉक का मुख्‍यालय है। ब्‍लॉक मुख्‍यालय होने के कारण यहां पर कई विभागों के कार्यालय हैं और एक सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र भी है।  बीरोंखाल चारों दिशाओं से सडक मार्ग से जुडा हुआ है इसलिए यहां तक पहुंचना सरल और सुगम है।

तीलू रौतेली की रणभूमि - बीरोंखाल

बीरोंखाल में ठीक ब्‍लॉक मुख्‍यालय के नीचे वीरबाला तीलू रौतेली की मूर्ति लगी हुई परन्‍तु बहुत ही कम लोगों को जानकारी होगी कि यह मूर्ति क्‍यों लगाई गयी है और इस स्‍थान का नाम बीरोंखाल क्‍यों  है, तो चलिए मैं आपको बताता हूं। 

ब्‍लॉक परिसर

16वीं सदी की घटना है जब कंत्‍यूरों का अत्‍याचार अपने चरम पर था, उनके अत्‍याचार से पूरा क्षेत्र त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा था, इसी बीच चौंदकोट के थोकदार भुप्‍पु रौत और उनके दोनों बेटे कंत्‍यूरों के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्‍त हुए। भुप्‍पु रौत की एक बेटी भी थी जिसका नाम था तीलू, जिसे बाद में तीलू रौतेली के नाम से जाना गया। इस घटना के बाद तीलू रौतेली के भीतर प्रतिशोध की ज्‍वाला दहक उठी और अपने पिता व भाईयों तथा अन्‍य प्रियजनों की मृत्‍यु का प्रतिशोध लेने के लिए तीलू को 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में उतरने का निर्णय लिया। 

पूरी कहानी को पढ़ने के लिए आप इस पुस्‍तक को खरीद सकते हैं जिसमें इस पूरी घटना का विस्‍तार से वर्णन किया गया है।

तीलू रौतेली 7 वर्षों तक निरंतर युद्ध करती रही और एक भी युद्ध में उसे हार का सामना नहीं करना पड़ा। इसी घटनाक्रम में तीलू रौतेली डुमैला डांडा में कंत्‍यूरों से निर्णायक युद्ध लड़ रही थी और इसी युद्ध में उसके गुरु और मामा शिब्‍बू पोखरियाल ने अदम्‍य साहस का परिचय देते हुए अपना बलिदान दिया था। 

शिब्‍बू पोखरियाल के अदम्‍य साहस को देखते हुए तीलू रौतेली ने घोषणा की - 
साथियों आज से 

शिब्‍बू पोखरियाल जी के इस बलिदान स्‍थल को बीरोंखाल के नाम से जाना जायेगा। 

इसी के पश्‍चात इसका नाम बीरोंखाल पड़ा। 

बीरोंखाल में पोली टेक्‍नीक संस्‍थान, इंटर कॉलेज, कन्‍या इंटर कॉलेज, प्राथमिक विद्यालय, सरस्‍वती शिशु मंदिर, ब्‍लॉक मुख्‍यालय, बाल विकास परियोजना अधिकारी, पशु चिकित्‍सा केन्‍द्र, सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र, डाक घर, भारतीय स्‍टेट बैंक, सहकारी बैंक, एटीएम तथा छोटे-छोटे होटल हैं। बीरोंखाल तहसील भी है किन्‍तु कार्यालय स्‍यूंसी नगर में है।

बीरोंखाल ब्‍लॉक के अंतर्गत आने वाले दर्शनीय स्‍थल

1. कालिंका माता मंदिर

मॉंं कालिंका का मंदिर बीरोंखाल से लगभग 4-5 किलोमीटर्स की दूरी पर है, यहां से आपको प्रकृति का अद्भुत दृश्‍य दिखायी देता है, दायीं ओर आपको हिमालय की चोटियां दिखायी देती है जिनमें त्रिशूल, चौखंभा, हाथी पर्वत आदि प्रमुख है। सर्दियों में श्रद्धालू  बर्फबारी का आनंद ले सकते हैं।

कालिंका मां काली का स्‍वरुप है। यह कालिंका मां का मंदिर उत्‍तर भारत के उत्‍तराखंड राज्‍य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह अल्‍मोड़ा जिले की सीमा के नजदीक पड़ता है। मंदिर का अस्तित्‍व कई सदियों पुराना है लेकिन अब इसके ढांचे को बदल दिया गया है और नया रुप-रंग दे दिया गया है।

मां कालिंका का मंदिर समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और एक समतल, खाली और पथरीली जगह पर बना है एवम् हरियाली से घिरा है यहां से आपको 360 डिग्री का नजारा दिखाई देता है। इसके चारों चीड़, बांज, बुरांस एवं अन्‍य कई प्रजातियों के पेड़ो से भरा जंगल है। मंदिर तक पहुंचने के लिए गढ़वाल और कुमाउं दोनों ओर से कई रास्‍ते हैं। चढ़ाई आसान से मध्‍यम और कठिन है। यहां से दूधातोली पर्वतों, त्रिशूल श्रृंखला और साथ ही पश्चिम गढ़वाल के बंदरपूंछ रेंज के पर्वतों का शानदार नजारा दिखायी देता जो आपको मंत्र-मुग्‍ध कर देता है।

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2. जोगी मढ़ी के बुग्‍याल

जोगी मढ़ी चोटी पर लेकिन समतल जगह पर स्थित है और आस-पास बड़े-बड़े खेत हैं जो इस जगह की खूबसूरती को बहुत बढ़ा देते हैं। यहां पर एक गेस्‍ट हाउस भी है जो ठहरने का अच्‍छा विकल्‍प हो सकता है। सर्दियों में यहां भी बहुत बर्फबारी होती है। 

आप सराईंखेत या बीरोंखाल से स्‍यूंसी, भैंसोणा होते हुए यहां पहुंच सकते हैं। यहां का मौसम गर्मियों में भी खुशनुमा रहता है, दिन के समय जहां हल्‍की गर्मी होते हैं वहीं रात को काफी ठंड रहती है।

  

3. गुजडू गढी 

गुजुडू गढ़ी गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक है, यह ऐतिहासिक होने के साथ-साथ घूमने के लिए बहुत अच्‍छी जगह भी है। जब आप चोटी पर पहुंचते हैं तो आपको कुमाऊं और गढ़वाल का आश्‍चर्यजनक दृश्‍य दिखायी पड़ता है लेकिन जो चीज इस जगह को विशेष बनाती है वह है यहां की गुफाएं और उनके अंदर बनी सीढियां और कुएं।

यह स्‍थान दीवा डांडा (जंगल) के मध्‍य में स्थित है और समुद्रतल से इसकी ऊंचाई लगभग 2400 मीटर है यहां का मौसम गर्मियों में सुहावना और सर्दियों में बहुत ठंडा रहता है, सर्दियों में यहां बर्फबारी भी होती है जिससे यहां का नजारा और भी मनमोहक हो जाता है।

इसके बारे में मैंने अलग से लेख लिखा है कृपया विस्‍तार से पढने के लिए नीचे दी गयी फोटो पर क्लिक करें।


4. दीबा माता का मंदिर

दीबा डांडा (जंगल) पट्टी खाटली का सबसे मुख्‍य और बड़ा जंगल है यह पूर्व से पश्चिम तक 15 किमी तक फैला हुआ है। यहां पर बांज की कई प्रजातियों जैसे कि खार्सू, मोरु आदि के अतिरिक्‍त अयांर, बुरांस, काफल, चीड़ जैसे अनेकों पेड़ों से भरा हुआ है। जंगल में हिरन, बारहसिंगा, गुलदार, भालू आदि जैसे जंगली जानवर रहते हैं। जंगल की चोटी पर बने दीबा माता के मंदिर से आपको पूरा गढ़वाल, कुमाऊं और हिमालय का अद्भुत दृश्‍य दिखाई देता है। दीबा मंदिर की समुद्रतल से ऊंचाई 2500 मीटर से अधिक है यहां से आपको त्रिशूल, चौखंभा, हाथी पर्वत जैसी पर्वत चोटियां दिखाती देती हैं।

 इसके बारे में मैंने अलग से लेख लिखा है कृपया विस्‍तार से पढने के लिए नीचे दी गयी फोटो पर क्लिक करें।

5. बिनसर महादेव

यूं तो हमारे क्षेत्र में अनेकों प्रसिद्ध जगहें हैं जैसे कि मां कालिंका का मंदिर, दीवा मां का मंदिर, गुजडू गढी की अदभुत गुफाएं इत्‍यादि उन्‍हीं में से एक है बिन्‍देश्‍वर महादेव (बिनसर महादेव)। यह बिसौणा गांव में स्थित है जो पौड़ी गढ़वाल के थलीसैण ब्‍लॉक के चौथान क्षेत्र में आता है, इसकी ऊंचाई समुद्रतल से 2480 मीटर है। यहां तक पहुंचने के लिए आपको थलीसैन से पीठसैण तक 12 किलोमीटर टैक्‍सी या कार से और आगे का रास्‍ता पैदल ही तय करना होता है जिसमें लगभग 2-3 घंटे लगते हैं रास्‍ता ज्‍यादा मुश्किल नहीं है लेकिन लम्‍बा है। जैसे ही आप पीठसैण से चलना शुरु करते हैं आपको अनेक चमकदार चट्टानें मिलेंगी जो धूप में चमकते हुए बहुत अद्भुत लगती हैं उसके बाद का रास्‍ता घने जंगल के बीच से होकर गुजरता है, यहां आपको अनेक प्रजातियों के घने वृक्ष मिलेंगे। 

इसके बारे में मैंने अलग से लेख लिखा है कृपया विस्‍तार से पढने के लिए नीचे दी गयी फोटो पर क्लिक करें।


6. गुजिया महादेव 

सिंदूडी तल्‍ली, कोठिला और डांगू ग्राम सभाओं के मध्‍य स्थित खटलगढ़ या खडलगढ़ नदी के किनारे बसा यह शिवालय बहुत ही प्रसिद्ध है। सुंदर मंदिर प्रांगण के साथ यहां पर धर्मशालाएं बनी हुई जिस कारण श्रद्धालू यहां बिना किसी कठिनाई के विश्राम कर सकते हैं। महाशिव रात्रि के अवसर पर यहां बहुत चहल-पहल रहती है। नदी का कल-कल बहता हुआ पानी आपके कानों में किसी कर्णप्रिय संगीत के समान महसूस होता है। 

सावन के महीने में शिवालय में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। प्रत्‍येक सोमवार को बडी संख्‍या में श्रद्धालू यहां पूजा करने आते हैं। सावन के तीसरे सोमवार को शिवालय पूजन होता है जिसके दौरान यहां भजन-कीर्तन और भंडारे का आयोजन किया जाता है।

यहां पहुंचने के लिए आपको सिरोली और सिन्‍दूडी में उतरकर लगभग 200-३०० मीटर पैदल चलना होता है। 

7.  पोली टेक्‍नीक इंस्‍टीट्यूट

बीरोंखाल से 1 किमी की दूरी पर नौगॉंव में बना यह इंस्‍टीट्यूट बहुत खूबसूरत है। यहां पर पूरे राज्‍य के छात्र पढने आते हैं। यहां अभी केवल सिविल इंजीनियरिंग ही पढाई जाती है।


मौसम: यहां का मौसम सर्दियों में बहुत ठंडा और गर्मियों में सुहावना रहता है, दिसंबर से फरवरी तक बर्फबारी भी होती है।

पारंपरिक पहनावा

युवा पीढ़ी तो पश्चिमी कपड़े ही पहनते है लेकिन बुजुर्ग महिलायें आज भी गत्युड़ (धोती) पहनती हैं। वर्तमान में युवा महिलाएं अपनी संस्कृति की ओर आकर्षित हो रही हैं जो शुभ संदेश है।

पारम्परिक गढ़वाली पहनावा


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