Uttarakhand's 5 Popular winter trekking destinations |
दोस्तों आज मैं आपको उत्तराखंड के 5 ट्रेकिंग डेस्टीनेशन्स के बारे में संक्षिप्त में बताने जा रहा हूं। इन सभी जगहों पर मैं व्यक्तिगत रुप से गया हूं इसलिए जो कुछ मैंने लिखा है वह मेरे अनुभवों पर आधारित है।
इन सभी जगहों के बारे में मैंने विस्तार से लिखा है अधिक जानकारी के लिए ब्लॉग के होम पेज पर जायें।
1. दयारा बुग्याल विंटर ट्रेक (Dayara Bugyal Winter Trek)
समुद्र तल से 3000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल घास के ढलुआ मैदान हैं। यहां से आप हिमालय की आश्चर्य चकित कर देने वाली चोटियों के दर्शन कर सकते हैं, गर्मियों के बाद जब सर्दियों में इन मैदानों की मखमली घास पर बर्फ पड़ती है तो यह सैलानियों और स्कीइंग के दीवानों का अड्डा बन जाती है यहां सर्दियों में स्कीइंग भी सिखायी जाती है । यहां एक अनोखा त्योहार मनाया जाता है जिसका नाम बटर फेस्टीबल है जिसमें गांव वाले और सैलानी एक दूसरे को मक्खन लगाकर होली खेलते हैं। गांव वाले पारंपरिक वेश-भूषा में लोक-नृत्य करते हैं, मट्ठा और मक्खन की होली का आगाज राधा कृष्ण के नृत्य के साथ किया जाता है, इसलिए इस समय यहां काफी चहल-पहल रहती है।
दयारा बुग्याल पहुंचने के लिए देहरादून से बस से उत्तरकाशी तक जा सकते हैं और उसके बाद टैक्सी पकड़ कर बारसू पहुंचा जा सकता है, बारसू एक खूबसूरत गांव है यहां के घर पारंरिक शैली के हैं, यहाँ के लोगों की आमदनी पर्यटन, खेती और मवेशी पालन पर निर्भर है, देहरादून से यहां तक पहुंचने में 7-8 घंटे का समय लगता है। यह रुट सीजन (मई-जून) में काफी व्यस्त रहता है क्योंकि यमनोत्री और गंगोत्री के लिए भी यही रुट है।
यहां ठहरने की उचित व्यवस्था है लेकिन बिना व्यवस्था किए जाने पर खाने-पीने की व्यवस्था करने में परेशानी हो सकती है, यहां 2-3 छोटी-छोटी दुकानें हैं जहां जरुरत का सामान मिलना मुश्किल हो सकता है इसलिए अपनी पूरी व्यवस्था करके चलना सही रहता है।
बारसू से अगला बेस कैंप लगभग 5 किमी. दूर है और बारसू से दयारा बेस कैम्प तक पहुंचने में लगभग 4 घंटे का समय लगता है, रास्ता खड़ी चढ़ाई वाला है और सर्दियों में यह बर्फ से ढका रहता है इसलिए पूरी तैयारी के साथ जाना चाहिए।
एक दूसरा रास्ता भी है जो रैथाल गांव से होकर जाता है वहां से 7 किमी पैदल चलते हुए यहां पहुंचा जा सकता है।
ट्रैक का स्तर:
थोड़ा सा मुश्किल है।
मौसम :
वैसे तो खुशनुमा रहता है लेकिन सर्दियों में ठंड बहुत ज्यादा रहती है।
कहां रुकें
यहां पर GMVN का गेस्ट हाउस है इसके अलावा आप होम स्टे या कैम्प लगाकर रह सकते हैं, गेस्ट हाउस में आपको ज्यादा सुविधाएं नहीं मिलेंगी इसलिए पूरी व्यवस्था के साथ जाना ठीक रहता है।
2. तुंगनाथ - चंद्रशिला समिट: शिव के दर्शनों के साथ प्रकृति के नजारों के भी दर्शन कीजिए
ॠषिकेश से 211 किमी. की दूरी पर रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ में स्थित तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव के पंच केदारों – केदारनाथ, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, मद्धयमाहेश्वरऔर कल्पेश्वर में से एक है जिन्हें तृतीय केदार कहा जाता है और भगवान शिव के अंगों के तौर पर जाना जाता है। समुद्रतल से लगभग 3700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिवजी का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर एक हजार साल पुराना है।
धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ यह बहुत मशहूर ट्रेकिंग डेस्टीनेशन भी है। चोपता से तुंगनाथ बाबा के मंदिर की दूरी लगभग साढ़े तीन किलोमीटर है और वहां से दो किलोमीटर आगे चंद्रशिला समिट है। मंदिर तक चढ़ाई थोड़ी मुश्किल है और समुद्र तल से ऊंचाई अधिक होने से सांस लेने में थोड़ी दिक्कत हो सकती है मगर रास्ते पर चलते हुए आपको चौखंभा, नंदा देवी, नीलकंठ, कोमेट और केदारनाथ पर्वतों की झलक देखने को मिलती है
ऊखीमठ मार्केट से टैक्सी पकड़कर सारी गांव पहुंचें यहां से देवरिया ताल के लिए चढ़ाई शुरु होती है, रास्ता काफी अच्छा बना हुआ है लेकिन थोड़ी मुश्किल चढ़ाई है देवरिया ताल पहुंचने में पहुंचने में करीब 2 घंटे लगते हैं। इसे यक्ष ताल भी कहा जाता है ऐसा माना जाता है कि महाभारत में यहीं पर यक्ष ने युद्धिष्ठर से प्रश्न पूछे थे। यहां ताल के अलावा घास का बहुत बड़ा बुग्याल है जहां से चौखंभा पर्वत का नजारा खूबसूरत दिखायी देता है और आपकी थकान को पूरी तरह मिटा देता है।
कब जायें:
अप्रैल, मई जून, जुलाई, सितंबर, अक्टूबर और नवंबर यहां जाने के लिए सबसे अच्छे महीने हैं। बरसात में यहां का नजारा ही कुछ और होता है चारो तरफ हरे-हरे बुग्याल आपका मन मोह लेते हैं।
सर्दियों में यहां बहुत ज्यादा बर्फबारी होती है इसलिए मंदिर तक पहुंचना मुश्किल होता है इसके अलावा मंदिर भी बंद होता है।
ट्रैक का स्तर:
आसान से थोड़ा सा मुश्किल
मौसम :
वैसे तो खुशनुमा रहता है लेकिन सर्दियों में ठंड बहुत ज्यादा रहती है।
कैसे जायें:
तुंगनाथ जाने के लिए आप दिल्ली से सीधी बस ले सकते हैं या ॠषिकेश से उत्तराखंड रोडवेज की बस पकड़ सकते हैं या रेल मार्ग से हरिद्वार तक और आगे बस से जा सकते हैं, रात को करीब 8 बजे कश्मीरी गेट से गुप्त काशी के लिए बस चलती है जो सुबह करीब 10 बजे कुंड छोड़ देती है वहां से टैक्सी लेकर ऊखीमठ जा सकते हैं।
कहां ठहरें:
अगर आप देवरिया ताल जाना चाहते हैं तो आप ऊखीमठ में GNVN या अन्य होटलों में ठहर सकते हैं।
यदि आप सीधे तुंगनाथ जाना चाहते हैं तो आप चोपता में ठहर सकते हैं, यहां पर भी ठहरने की पूरी व्यवस्था है।
3. श्री बद्री नाथ दर्शन और क्वारी पास ट्रेक (Badrinath and Kuari Pass)
उत्तराखंड के चार धामों और इनके महत्व के बारे में लगभग सभी जानते हैं इन्हीं में से एक धाम है चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बद्रीनाथ (Badrinath) धाम, यह भगवान विष्णु के एक रुप बदरी को समर्पित मंदिर है, ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने यहां पर तपस्या करनी शुरु की तो वहां बहुत ज्यादा बर्फबारी होने लगी और मां लक्ष्मी से यह देखा न गया तो उन्होंने बेर (बदरी) के पेड़ का अवतार लेकर उनकी कई वर्षों तक धूप, बारिश और हिमपात से रक्षा की, कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ (Badrinath) के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
यहां आकर भक्तों को अनंत सुख का एहसास होता है और तप्त कुंड में स्नान करने से मन की पीड़ाओं से मुक्ति मिल जाती है और उनका मन अलकनंदा (Alaknanda) नदी के पानी की तरह निर्मल हो उठता है।
आप तरह प्लान कर सकते हैं – पहला दिन श्री ब्रदीनाथ धाम। दूसरा दिन – माणा गांव घूमते हुए वापिस जोशीमठ आकर औली होते हुए गौरसों बुग्याल बेसकैम्प में रात गुजारें। तीसरा दिन - क्वारी पास ट्रेक करते हुए खुलारा में रुकें। चौथा दिन - खुलारा - ढाक - जोशीमठ - रुदप्रयाग - देव प्रयाग - ऋषिकेश
कब जायें :
अगर श्री ब्रदीनाथ धाम की बात करें तो मई से अक्टूबर तक ही यहां का मौसम जाने लायक रहता है इनमें से भी जून से अगस्त तक भारी बारिश होती है जिसके कारण हाइवे बार-बार बंद हो जाता है और यात्री बीच में फंस जाते हैं। मेरी राय में अक्टूबर का महीना सबसे उत्तम रहता है। भीड़-भाड़ भी नहीं होती है और रास्ता भी खुला रहता है।
क्वारी पास ट्रेक के लिए आप पूरे साल जा सकते हैं लेकिन सर्दियों में यहां बहुत ज्यादा बर्फबारी होती है।
ट्रैक का स्तर:
अगर श्री ब्रदीनाथ धाम की बात करें तो यह बहुत आसान है क्योंकि यह सड़क मार्ग से जुडा है लेकिन कुवारी पास ट्रेक थोड़ा मुश्किल है।
मौसम :
वैसे तो खुशनुमा रहता है लेकिन सर्दियों में ठंड बहुत ज्यादा रहती है।
कहां ठहरें:
यहां पर ठहरने का एकमात्र उपाय टेंट हैं
4. नाग टिब्बा - एक बढ़िया वीकेंड ट्रिप (Naag Tibba)
Naag Devta Mandir |
नाग टिब्बा टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड का काफी मशहूर ट्रेक है, इसकी समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 3000 मीटर है जो पहाड़ों की राजधानी मसूरी से 85 किमी. की दूरी पर है। स्थानीय भाषा में नागटिब्बा का मतलब होता है नाग देवता का स्थान, यहां पर नाग देवता का मंदिर हैं जहां स्थानीय लोग अपने पशुओं की रक्षा करने के लिए नाग देवता की पूजा करने के लिए जाते हैं। यहां से दिखने वाले खूबसूरत नजारों और पहुंचने की आसानी के कारण ट्रेकर्स और सैलानियों की यह मनपंसद जगहों में से एक है साथ ही यहां पर सूर्योदय और सूर्यास्त का मनमोहक नजारा देखते ही बनता है यदि आप जनवरी में जाते हैं तो आपको यहां विंटरलाइन देखने अवसर मिलता है यानि सूरज को अपनी तरफ अस्त होते हुए और दूसरी तरफ उगते हुए देख सकते हैं। सर्दियों में आप यहां बर्फ का आनंद भी ले सकते हैं जबकि बरसात में हरे-भरे जंगल और बुगयाल अनुभव को और भी हसीन बना देते हैं।
नागटिब्बा जाने के तीन रास्ते हैं, पहला देवलसारी से, दूसरा पंतवाणी से और तीसरा श्रीकोट से जाता है। देवलसारी की तरफ से जाने पर आपको मसूरी वन विभाग से अनुमति लेनी होती है, दूसरा रास्ता श्रीकोट से जाता है जो देहरादून से 110 किमी. की दूरी पर है, यह रास्ता देवलसारी और पंतवाणी की अपेक्षा छोटा है, यहां से 5 किमी. चलते हुए आप नाग टिब्बा टॉप पर पहुंच सकते हैं जहां से आपको हिमालय का बहुत ही शानदार नजारा दिखायी देता है। यहां से टॉप तक पहुचंने में 3-4 घंटे का समय लगता है, इसी प्रकार देवलसारी से यहां तक का पैदल सफर लगभग 13 किमी. का है जिसमें 7-8 घंटे लग सकते हैं, जबकि पंतवाणी से टॉप तक पहुंचने में लगभग 5-6 घंटे लगते हैं और रास्ता चढ़ाई वाला है।
कब जायें :
अक्टूबर से अप्रैल के मध्य खासकर सर्दियों में जायें क्योंकि इस दौरान यहां बर्फबारी होती है।
ट्रैक का स्तर:
थोड़ा सा मुश्किल है क्योंकि शुरुआत में बहुत खडी चढाई है।
मौसम :
वैसे तो खुशनुमा रहता है लेकिन सर्दियों में ठंड बहुत ज्यादा रहती है।
कहां ठहरें:
यहां पर ठहरने का एकमात्र उपाय टेंट हैं
5. ब्रह्मताल विंटर ट्रैक (Brahmtaal Winter Trek)
ब्रह्मताल जाने का असली मजा सर्दियों में ही है क्योंकि जब बर्फ पड़ती है तो यह ताल जम जाता है और आस-पास की पर्वत श्रृंखलाओं का प्रतिबिंब इसमें दिखने लगता है।
कैसे पहुंचे :
लोहाजंग पहुंचने के दो रास्ते हैं - 1. दिल्ली - काठगोदाम - अल्मोड़ा- बैजनाथ - ग्वालदम - देवाल होते हुए लोहाजंग पहुंचना
2. दिल्ली - ॠषिकेष - देवप्रयाग - श्रीनगर - रुद्रप्रयाग - कर्णप्रयाग - थराली - ग्वालदम - देवाल होते हुए लोहाजंग पहुंचना
कब जायें:
जुलाई और अगस्त को छोड़कर कभी भी जा सकते हैं
कहां रुकें:
लोहा जंग में GNVN तथा बहुत सारे छोटे होटल और लॉज हैं जो ऑफ सीजन में काफी कम दाम पर मिल जाते हैं। सीजन यानि अप्रैल - जून और सितंबर - अक्टूबर के बीच पहले से व्यवस्था करके जायें क्योंकि यहां बहुत भीड़-भाड़ रहती है।
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बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
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