Sunday, June 12, 2022

पाताल भुवनेश्‍वर की अद्भुत गुफा और इसके रहस्य

पाताल भुवनेश्‍वर गुफा 

आज हम उत्‍तराखंड के गंगोलीहाट में स्थित पाताल भुवनेश्‍वर गुफा के बारे में बात करेंगे, यह अत्‍यंत प्राचीन गुफाओं में से एक है। यहां पर एक शिलालेख भी लगाया गया है जिसके अनुसार इस गुफा की खोज त्रेता युग में राजा ऋतुपर्ण द्वारा की गयी, पुन: द्वापर युग में इस गुफा की खोज पांडवों द्वारा की गयी। कलयुग में प्रथम बार 819 ई. में (मानसखंड के स्‍कंद पुराण के आधार पर) आदि जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा इस गुफा की खोज की गयी है एवं उन्‍हीं के द्वारा चंद राजाओं को गुफा के संबंध में जानकारी दी गयी।

गुफा गर्मियों में सुबह ८ बजे से शाम को 5:30 बजे और सर्दियों में सुबह 9 से शाम 4 बजे तक खुली रहती है, यहां पर पहुंचने के बाद आपको एक पर्ची कटानी होती है, हमने चार लोगों के लिए रु.200 शुल्‍क जमा किया हालांकि कुछ लोग चार से ज्‍यादा थे उन्‍होंने भी इतना ही शुल्‍क जमा किया। क्‍योंकि नीचे कोई भी सामान ले जाने की अनुमति नहीं है इसलिए आपको अपना सामान, मोबाइल फोन, कैमरा आदि को ऊपर काउंटर पर जमा कराना होता है। 

गुफा का पहला अनुभव

गुफा संकरी और थोड़ी खतरनाक है इसलिए लोगों को ग्रुप्‍स में और यहां के स्‍थानीय गाइड्स की देख-रेख में ही उतारा जाता है। हम यहां सुबह 7 बजे ही पहुंच गये थे इसलिए गुफा में प्रवेश करने वाला पहला ग्रुप हमारा ही था। 

पाताल भुवनेश्‍वर गुफा प्रवेश द्वार

गुफा को सामने से देखने पर यह मुझे कोई साधारण सी जगह दिखी लेकिन जब गुफा का मुख्‍य द्वार खुला और हमें गुफा में प्रवेश करने के लिए कहा गया तो एक पल के लिए मेरी सांसे अटक गयी क्‍योंकि गुफा के प्रवेश द्वार की ऊंचाई लगभग 3 फीट ही थी और हमें नीचे की ओर पत्‍थरों से काटकर बनायी गयी सीढियों से सरकते हुए नीचे उतरना था जैसे-जैसे नीचे उतरते गये दिल की धड़कनें तेज होती चली गयी, सीढ़ियों के दोनों ओर जंजीरें बंधी हुई है जिनसे नीचे उतरने में आसानी होती है क्‍योंकि 2 से 3 स्‍थानों पर आपको सरकते हुए आगे बढ़ना होता है।

 लगभग 30 मीटर उतरने के बाद का दृश्‍य बहुत अद्भुत और अतुल्‍य था क्‍योंकि 30 मीटर की गहराई में उतरने के बाद हम 150 वर्ग मीटर समतल मैदान में पहुंचे जिसमें लोग आसानी से खड़े होकर इधर-उधर टहल सकते हैं। शुरुआत में तो सभी चीजें सामान्‍य लगी किन्‍तु जब गाइड ने गुफा के भीतर बनी इन कलाकृतियों की विशेषताओं का वर्णन करना शुरु किया तो हम हक्‍के-बक्‍के रह गये क्‍योंकि वहां पर पूरे ब्रह्मांड और हिंदू धर्म के सभी तीर्थ स्‍थानों के साथ-साथ सभी चार वेदों, भगवान शिव की जटाएं, ऐरावत हाथी की आकृति जिसका रंग ठीक हाथी के रंग के जैसा है उसकी सूंड और पैरों की बनावट को स्‍पष्‍ट रुप से देखा जा सकता है, के प्रत्‍यक्ष प्रमाण और जुड़ाव स्‍पष्‍ट दिखायी पड़ते हैं। जब गाइड किसी कलाकृति के बारे में बता रहा था तो मुंह से एक ही शब्‍द निकलता था 'ओह अच्‍छा!'

अधिकतर कलाकृतियों की खास बात यह है कि ये भूमि पर नहीं बल्कि ऊपर से नीचे की ओर बनी हुई हैं। इनका निर्माण कैसे हुआ यह एक पहेली है, जमीन पर शेषनाग की रीड़ की हड्डी जैसी आकृतियां उभरी हुई हैं जिनके ऊपर से चलते हुए आपको महसूस होगा मानों आप शेषनाग की पीठ पर चल रहे हैं। 

पांडवों से लेकर भगवान श्रीकृष्‍ण और गणेश जी के साथ संबंध दर्शाने वाले प्रमाण यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। जितना कष्‍ट गुफा में नीचे उतरते समय होता है उससे कहीं अधिक आनंद धरातल पर इन पौराणिक कलाकृतियों को देखने पर मिलता है। गुफा में थोड़ा आगे बढ़ने पर भगवान शिव की जटाओं की आकृति उभरी हुई थी  जिनसे लगातार पानी रिस रहा था जो नीचे एक कुंड में गिरता है, कुडं पूरा भरा हुआ था लेकिन अतिरिक्‍त पानी जमीन पर नहीं बह रहा था वह तो उसी कुंड में कहीं समा रहा था। जब मैंने उन जटाओं जैसी आकृतियों को छुआ तो वे बहुत ही चिकनी और ठंडी महसूस हुई तथा उनका रंग संगमरमर की तरह सफेद था।

इनके अलावा ऐसी असंख्‍य आश्‍चर्यचकित कर देने वाली कलाकृतियां गुफा के अंदर बिखरी पड़ी है जैसे छत से लटकी कमल की आकृति, वासुकी नाग की स्‍पष्‍ट आकृति, सप्‍तऋषियों को समर्पित 7 कुंड, हंस की आकृति।

यहां पर 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्‍थापित ताम्‍बे से बना शिवलिंग आज भी उतना ही चमकदार और नया प्रतीत होता है। यहां पर एक शिंवलिंग है जिसका आकार धीरे-धीरे बढ़ रहा है जिसके बारे में यहां के गाइड बताते हैं कि जिस दिन शिवलिंग छत को छू लेगा उसदिन सृष्टि का विनाश हो जायेगा।

याद रखने योग्‍य बातें

गुफा के भीतर जुलाई से अक्‍टूबर तक ऑक्‍सीजन की अधिक कमी रहती है इसलिए श्‍वास, कमजोर दिल वाले, दिल की बीमारी, गंभीर एंजाइटी या फोबिया के रोगियों तथा 5 से कम उम्र के बच्‍चोंं व बुजुर्गों का प्रवेश प्रतिबंधित है।

जनवरी और फरवरी महीने में गुफा के भीतर ऑक्‍सीजन पर्याप्‍त मात्रा में उपलब्‍ध रहती है।

आस-पास घूमने योग्‍य जगहें

गुफा से 100 मीटर की दूरी पर एक और प्राचीन वृद्ध भुवनेश्‍वर महादेव मंदिर है जो ठीक गांव के बीचों-बीच स्थित है, मंदिर के भीतर पत्‍थरों के अनेक खम्‍भे हैं तथा बीचों बीच छत पर पत्‍थरों पर खूबसूरत नक्‍काशी की गयी है। मंदिर का गर्भ गृह भी पत्‍थरों से निर्मित है। 

वृद्ध भुवनेश्‍वर महादेव मंदिर

गंगोलीहाट एक छोटा हिल स्‍टेशन है लेकिन यहां पर आपको रहने के लिए होटल आदि मिल जाते हैं। गंगोलीहाट में सबसे लोकप्रिय है ‘हाट कालिका मां मंदिर’ जो एक शक्ति पीठ भी है।

गंगोलीहाट में पाताल भुवनेश्‍वर के अलावा तीन गुफाएं और भी हैं – शैलेश्‍वर गुफा, मुक्‍तेश्‍वर गुफा और हाल ही खोजी गयी भोलेश्‍वर गुफा, जहां जाने का अवसर हमें प्राप्‍त नहीं हुआ।

इनके अलावा चकोरी, मुन्सियारी, पिथोरागढ, डीडीहाट जैसी अनेकों जगह हैं इनमें से चकोरी और मुंसियारी ज्‍यादा मशहूर हैं।

कैसे पहुंचें

दिल्‍ली, देहरादून, रामनगर से गंगोलीहाट के लिए रोडवेज की बसें नियमित रुप से संचालित होती है।

पाताल भुवनेश्‍वर की दूरी गंगोलीहाट से 11 किमी है, गुफा तक पहुंचने के लिए आपको या तो अपने वाहन से या टैक्‍सी से यात्रा करनी होगी।

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बिनसर महादेव



ये लेखक के अपने विचार हैं कृपया विवेक से काम लें।


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