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भानगढ़ का किला (c) |
नवंबर 2012 में हमने एक बाइक ग्रुप को ज्वाइन किया, ग्रुप ने सरिस्का और भानगढ़ (Bhangarh) का Bike Riding का प्रोग्राम बनाया, हमारे ग्रुप VIBGYOR the BASECAMP ने जो अब तक केवल ट्रेकिंग करता था, इस नये अनुभव को करने की योजना बनायी। हम पहली बार जा रहे थे इसलिए हम बहुत उत्साहित थे इस उत्साह के दो कारण थे, पहला लम्बी Bike Riding और दूसरा भानगढ़ का भुतहा किला।
ग्रुप के साथ Bike Riding का अपना अनुभव है क्योंकि ग्रुप के कुछ नियम कायदे होते हैं जिनका पालन करना होता है, उनकी अपनी टर्मिनोलॉजी होती है जैसे कि ग्रुप लीडर, मार्शल, लीड राइडर, टेल राइडर, साथ ही कुछ संकेत होते हैं ताकि बाइक्स आपस टकराये नहीं और सभी सुरक्षित रहें जैसे कि एक या दो के फॉरमेशन में चलना, रुकना चाहते हैं तो इशारा करना, हेडलाइट्स हर समय जलाकर रखना आदि। |
फ्लैग ऑफ |
सुबह 4 बजे हमें नानकपुरा से फ्लैग ऑफ करना था, सभी एक-एक करके पहुंच रहे थे, सब लोगों के पहुंचने पर ब्रीफिंग हुई और हम आगे की ओर बढ़ गये। उनके पास सभी तरह की बाइक्स थी, एक कावासाकी निन्जा भी थी, 1-2 बुलैट भी थी, हम में से किसी के पास भी बुलैट नहीं थी हम 150 सीसी की Bikes पर सवार थे। सभी लोड लीड राइडर को फोलो कर रहे थे, करीब एक घंटा चलने के बाद हम माणेसर पहुंचे वहां चाय पी और आगे बढ़ गये, सुबह करीब 7-8 बजे हम नाश्ते के लिए रुके। नाश्ते करने के बाद ग्रुप एडमिन ने संकेत दिया कि यहां से Bikes भगा सकते हैं बस फिर क्या था सबके सब एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में लग गये, नियम कायदे गये तेल लेने, हाइवे पर तू्फान मच गया। बेचारा ग्रुप एडमिन किस तरह से आगे आया और सबको रोका, अब तय किया गया कि 70 किमी प्रति घंटा से ऊपर कोई नहीं जायेगा। |
रंजन व अन्य साथी राइडर्स |
बीच में एक बाइक पंक्चर हो गयी जिससे हमारा समय बर्बाद हुआ, हम लोगों को अलवर पहुंचने में ही 6 घंटे लग गये। करीब 11-12 बजे हम सरिस्का रिजॉर्ट में पहुंचे, जो ठेठ राजस्थानी स्टाइल में बना हुआ है, मिट्टी की दीवारें, राजस्थानी शैली की चित्रकारी बहुत सुंदर लग रही थी, वहां एक स्विमिंग पूल भी था, एक घंटा वहां बिताने और खाना खाने के बाद तय किया गया कि हम भानगढ़ का किला देखने जायेंगे जो रिजॉर्ट से लगभग 75 किमी दूर था, कुछ लोग रिजॉर्ट में ही रहे मगर हम तो उनके साथ हो लिये, हम सरिस्का, थाणागाजी, किशोरी, अज़बगढ़ होते हुए करीब 4.30 बजे भानगढ़ किले में पहुंचे तो चौकीदार ने मना कर दिया क्योंकि 5 बजे के बाद अंदर जाने की अनुमति नहीं, मगर बाद में वह मान गया और हम अंदर चले गये।
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शिलालेख |
भानगढ़ के बारे में कहा जाता है कि यहां भूत रहते हैं और रात को यहां रुकने की अनुमति नहीं है, कई लोगों ने उन्हें देखने का दावा भी किया है, मगर यह कितना सच है या झूठ किसी को नहीं पता मगर यह बेहद शानदार और खूबसूरत किला है, इसके चार प्रवेश द्वार हैं, लाहौरी गेट, अजमेरी, फुलबाड़ी और दिल्ली गेट। गेट से अंदर जाते ही बाज़ार और बस्ती के अवशेष हैं जिससे पता चलता है कि नगर कितना व्यवस्थित रहा होगा इसे पार करने के बाद बहुत बड़ा मंदिर आता है जो अभी भी सुरक्षित है यह पीले पत्थरों से बना है और इसकी नक्काशी बेहद खूबसूरत है। हमें यहां जाने का अवसर नहीं मिला क्योंकि शाम तेजी से ढल रही थी और हमें वापिस भी जाना था। इसके बाद हम आगे बढ़ते हुए मुख्य किले की ओर बढ़े जो करीब 100 मीटर ऊंचाई पर है वहां से आस-पास का पूरा नजारा दिखायी देता है। |
भानगढ़ के ऊपरी किले से दिखायी देता शानदार नजारा |
शाही महल में पहुंचने के बाद पता चलता है कि अपने जमाने में यह कितना भव्य और सुंदर रहा होगा। शाही स्नानागार के अवशेष इसके शाही होने का संकेत देते हैं। कुछ देर वहां और रुकने के बाद हमें नीचे आना पड़ा क्योंकि अंधेरा होने लगा था और हमें अभी 75 किमी दूर जाना था। इसीलिए हम जल्दी-जल्दी नीचे आये और वापिस चल दिये, थोड़ी दूर चलने के बाद रात हो गयी और नवंबर का आखिरी हफ्ता चल रहा था तो सर्दी भी काफी थी, आते समय हम रास्ता भटक गये और किसी तरह से पूछते-पाछते करीब 9 बजे रिजॉर्ट पहुंचे। सभी लोग बहुत ज्यादा थके होने के कारण खाना खाकर जल्दी सो गये क्योंकि अगले दिन हमें सरिस्का टाइगर रिजर्व जाना था। |
Sariska Tiger Reserve |
अगले दिन हम 4 लोग मैं, हुकुम, गौतम और हिमांशु ही सरिस्का गये बाकी सब सोते रहे, प्रेम, संदीप और रंजन बाद में आये मगर तब तक इंट्री बंद हो चुकी थी तो उन्हें वापिस लौटना पड़ा। हम जिप्सी पर बैठकर पार्क में घूमने के लिए चले गये यह काफी बड़ा पार्क है और कई तरह के जीव-जन्तु यहां रहते हैं मगर मुख्य आकर्षण तो बाघ ही है मगर हमें वहां नील गाय, हिरण, बंदर, लंगूर और मोर के अलावा कुछ नहीं दिखा। गाइड हमें बाघ के पंजे दिखाता रहा जिसमें मेरी तो कोई दिलचस्पी नहीं थी मगर हमारे एक मित्र की बाघ का नाम सुनते ही हवा टाइट हो गयी थी। करीब एक घंटा घूमने के बाद हम वापिस रिजॉर्ट आ गये।सभी ने खाना खाया और करीब 11 बजे वापिस दिल्ली के लिए चल पड़े अलवर शहर से 20 किमी. पहले अरावली पर्वत श्रृंखला के तल पर एक खूबसूरत झील सिलसिलेह पड़ती है जो करीब 7 किमी लंबी है। इस जलाशय का निर्माण महाराजा विनय सिंह ने सन् 1844 में करवाया था ताकि अलवर तक पानी पहुंचाया जा सके। महाराजा ने इस झील का नाम सिलसिलेह अपनी अपनी रानी के सम्मान में दिया जिनका नाम सीला था इसके साथ-साथ उन्होंने एक छोटा सा सफेद महल भी बनाया जो पानी से थोड़ा ऊपर है। यहां बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है, वाटर स्पोर्ट्स भी होते हैं और वीकेंड पर यहां बहुत भीड़-भाड़ रहती है। |
सिलसिलेह लेक का खूबसूरत दृश्य |
झील में थोड़ा वक्त गुजारने के बाद हम वापिस दिल्ली के लिए चल दिए। इस प्रकार एक बेहतरीन बाइक राइडिंग ट्रिप की समाप्ति हुई। मेरा मानना है कि पानी अगर तालाब में ही पड़ा रहेगा तो वह सड़ जाता है इसीलिए उसका बहना जरुरी है इसी प्रकार मनुष्य ढर्रे की जिंदगी जीता रहेगा तो वह तनाव ग्रस्त और चिड़चिड़ा हो जायेगा, उसका मानसिक विकास भी प्रभावित होगा, उसमें जीवन के प्रति लगाव कम हो सकता है। इसलिए अपनी ढर्रे वाली जिंदगी से बाहर निकलिए और नये अनुभवों के साथ खुद को फिर से तरोताजा कीजिए।
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