Thursday, August 25, 2022

The Magic of Intermittent Fasting - 16:8



If we look around us, everything in nature follows a particular order and timing. For example, the moon and the sun have a regular cycle of twelve months in a year; The four seasons are continuous and ready; the seeds must germinate before they become plants; On fruit trees, first flowers bloom, then fruits appear, and then those fruits ripen. Our body is also a part of nature, just like nature, our body also follows a particular sequence and time.

Our body works in three phases:

1. Digest food

2. Absorbing essential substances from digested food

3. Removing waste from the body

If any one of these three activities is missed, then the efficiency of the body starts getting affected, due to which our health is badly affected.

We all know that only an unhealthy and weak body is attacked by diseases. So, 1- we must do body cleansing and later by following the natural laws, 2- make the body strong. Only then can a person become strong with his mind and his stamina can increase. At present, our body is engaged in the work of the first stage only because most people do not eat according to the requirement of their body but according to their taste and moods and put all those things in their stomach which are very difficult or sometimes it is impossible for the body to digest, or our body is not made for them.

Just as bathing and changing clothes are necessary for the external cleanliness of the body, in the same way, it is necessary to remove the accumulated dirt (poisonous substances) inside the body to maintain physical, mental, and emotional health, which either enter the body or the body gives birth to them. Now, we will talk about how we can remove the accumulated dirt inside your body, in other words, cleaning the internal parts/organs of your body. After doing this, you will see your weight starts decreasing automatically, your skin becomes clear, you feel tremendous energy and your mind also becomes very clean and clear. As a result, you start feeling blissful. So, let’s talk about the first step.

Body Cleansing

For cleaning the body, it is necessary to take out the undigested food, dirt, and toxins from your body i.e., knowing how to clean/detox the body from the inside is more important than knowing what to eat.

As mentioned above, our body is made for fresh fruits, vegetables, and food that we get directly from nature. But by mistake, we start feeding it lots of cereals, oil, bread, parathas, sodas, snacks, packaged food etc.

Due to this, our body does not work properly, and diseases start growing in the body.

That's why the first step is to take out the rotting, undigested food, and dirt accumulated inside the body i.e., body cleansing.

Fasting 



Fasting is the most effective way to cleanse the body, normally Indians keep fasting for one reason or the other, which is a maximum of 12 hours, but in this remedy, you need to give 16 hours of rest to your stomach every day i.e. You must fast for 16 hours and eat only 8 hours. Suppose you ate your dinner at 8 pm, then the next day you have nothing to eat till 12 noon, you must eat your breakfast at 12 noon, followed by grain meals in the afternoon and then dinner at 8 pm, this is called intermittent (prolonged) fasting.

By fasting for 16 hours daily, your body gets time to heal each day and if 16 hours is too much for you, don't worry, you can start with 14 hours. After that keep increasing it, maybe you are already fasting for 12 hours, believe me, it is not difficult at all.

Healing Power



During this healing, the body regenerates tissues, removes old scars, and removes old, damaged, or dead cells from your skin, it melts the stones present in your kidney and gall bladder. It removes excess fat from your cells, breaks down cysts, and fibroids and regulates your hormones, cleanses your intestines, removes mucus that accumulates on your throat and removes plaque from your arteries. Your healing power goes deep into each organ and removes the toxic substances lying there and expels them from your body through stool, urine, sweat and breath.

It is also important to keep in mind that your dinner should be light such as salad and soup. If you eat very heavy food like pulses, chapati, rice etc. then it takes more time to digest which leaves you much time or no time at all for healing.

Between 6 pm to 10 am is suitable for fasting because most of the time you are not eating, you are sleeping or resting so your body does not require much energy.

If you are fasting for 16 hours every night...

You give 112 hours a week for healing...

You devote 450 hours a month to healing, so, in 3 months you give 1500 hours for healing...

With 1500 hours of healing, all chronic diseases such as diabetes, cholesterol, and PCOD can be eradicated from the root. If you are young and your problem is not too old, it may take you much less time than this.

Recommended Diet Plan

During fasting, you must eat light and digestible food which can be digested by the body quickly and easily.

Before breakfast at 10 am – coconut water or ash gourd (locally called Petha) juice or any other seasonal vegetable juice can be taken.



Breakfast at 12 noon – You can have lots of fresh seasonal fruits.

Lunch at 2 pm – Vegetable-chapati, brown rice, quinoa etc. can be taken.

Dinner at 6 pm – Salad and soup and if you feel hungry in the meantime you can have coconut water and freshly grated coconut.



 *This plan is not recommended for children, heavy physical exertion and athletes.

For more detail about the body rejuvenation, read this book. This book is a signpost for achieving great health in a natural way.

Available in E-book and paperback format.



Thursday, August 11, 2022

सूर्य नमस्‍कार (Sun Salute) की विधि और लाभ



योग का मतलब है मिलन और आसन का मतलब है मुद्रा।

योगासन के दौरान ध्‍यान देने योग्‍य बातें

योग आसन करने के लिए, आपको एक साफ ऊनी कंबल की आवश्‍यकता होती है, यदि संभव हो, कमरे में खिड़की हो जहां से आप सुबह में पूर्व की ओर और शाम को पश्चिम की ओर देख सकें। कमरा स्‍वच्‍छ और बढ़िया हवादार होता है।

सूर्य नमस्‍कार का अर्थ और लाभ

इस अद्भुत ऊर्जा देने वाले अभ्‍यास का अर्थ और भाव: सूर्य नमस्‍कार को “सन सैल्‍यूट” कहा जाता है। सूर्य यानि सन और नमस्‍कार मतलब स्‍वागत। मैं सूर्य को नमस्‍कार करता हूं जो हमारे ग्रह पर सभी चीजों को बढ़ने और समृद्धि होने की अनुमति देता है। यह जीवन का हमारा प्रकाश और शक्ति है। इस प्रकार इसका अभ्‍यास करने के कारण यह शक्ति हमारी प्रत्‍येक कोशिका में बहती है। इस तरह अभ्‍यास हमारे मन और तल को स्‍वस्‍थ रखता है।

प्रारंभ: आंखे बंद करके सीधे खड़े हो जायें और सूर्य की दिशा में हाथ जोड़ लें और प्रकाश, शक्ति और प्राण शक्ति के दाता का स्‍वागत कीजिए। अब अभ्‍यास शुरु करें। मुद्राओं को धीरे-धीरे, बिना किसी तेज हरकत के और आसानी से करें। जब भी आपको दर्द महसूस होता है, वापिस अपनी मुद्रा में आ जायें और 10-15 सेकेंड्स का विश्राम लें।

नियमित रुप से सुबह 6 बार और शाम को 6 बार अभ्‍यास करने पर, आप ज्‍यादा स्थिर, चुस्‍त और सुंदर बन सकते हैं। पूरा शरीर पवित्र ओज की शक्ति से परिपूर्ण हो जाता है। सभी मांस-पेशियां मजबूत हो जाती है, जोड़ लचीले, रीढ़ की हड्डी दृढ़ हो जाती है और साथ ही साथ, आंतरिक अंगों की मालिश भी हो जाती है। यह सामान्‍य तौर पर जिमनास्टिक्‍स और खेल पर योग आसनों का लाभ है।

सूर्य नमस्‍कार के सामंजस्यपूर्ण अभ्यास में बारह आसन हैं। उन्हें तनाव या प्रयास के बिना आसानी से और सरलता से किया जाना चाहिए। आसनों का च्रक 1-2 मिनट का होना चाहिए और समय के साथ धीरे-धीरे 3 पूर्ण चक्रों से 6 तक बढ़ाया जाना चाहिए।

धीरे धीरे शुरूआत कीजिए, अपने शरीर को कस लें और अपने आप खींचे नहीं। अपने शरीर की सुनें। अगर आपको थकान महसूस होती है, तो लेट जायें, अपनी आंखे बंद करें और मौनता का आनंद लें। अगर, आराम करने के बाद, आपके पास समय है और मन करता है, चक्र पूरा करें और अभ्‍यास को फिर से दोहराएं। यदि आपने लंबे समय से कोई योग मुद्रा या अन्य अभ्यास नहीं किए हैं, तो इन्‍हें धीरे-धीरे करना महत्वपूर्ण है। योग के अभ्यासों से आपको पसीना नहीं चाहिए, सांस भारी नहीं होनी चाहिए या अचानक हरकत नहीं करनी चाहिए। व्यायाम को नियमित और आसान बनाएं और फिर आप देखेंगे कि आपकी स्थिति धीरे-धीरे बढ़ रही है।

मेरी यह सिफारिश है कि आप योग आसनों को सिद्ध योग गुरु से सीखें!

सूर्य नमस्‍कार के दौरान धीरे-धीरे और निश्तित लय में सांस लेने की सलाह दी जाती है:

1 जब आप अपनी रीढ़ को तानते हैं, तनकर खड़े होते हैं या हाथों को ऊपर उठाते हैं तो आपको आसान और गहरी श्‍वास लेनी चाहिए

2. झुकते समय, शरीर को हिलाते या कमर को मोड़ते समय, आपको आराम से श्‍वास छोड़ना चाहिए। यह अभ्‍यास को आसान बनाता है और प्राण (जीवन ऊर्जा) प्रवाह को सभी कोशिकाओं में प्रवेश करने देता है। हर आसन को लगभग 5-10 सेंकेंड्स तक रखें।

यदि आपको कोई शारीरिक बीमारी है, तो कृपया इनमें से किसी भी अभ्‍यास को करने से पहले अपने डॉक्‍टर की सलाह लें।

चित्रों के माध्‍यम से पूरेे चक्र को दर्शाया गया है

photo credit : Internet

जिन्‍होंने इस अभ्‍यास को अभी-अभी शुरु किया है, उन्‍हें पहले 14 दिनों तक केवल एक चक्र करना चाहिए उसके बाद धीरे-धीरे 6 चक्रों तक बढ़ाना है।

3 मिनट की आराम की स्थिति के साथ खत्‍म करना महत्‍वपूर्ण होता है। पीठ के बल आराम से लेट जायें और आंखे बंद कर लें। हाथें को शरीर के बगल में रखें। मन और तन को आराम करने दें।

सम्‍पूर्ण जानका‍री के लिए इस वीडियो को देखें:

सूर्य नमस्‍कार की विधि और लाभ


आयुर्वेदिक खानपान व जीवनशैली के बारे में जानने के लिए इस बुक को पढ़ें।

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ब्‍लॉग पढने के लिए आपका धन्‍यवाद।


बीरोंखाल और आसपास के लोकप्रिय पर्यटन स्‍थल

बीरोंखाल समुद्रतल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है जो पौड़ी गढ़वाल जिले के बीरोंखाल ब्‍लॉक का मुख्‍यालय है। ब्‍लॉक मुख्‍यालय होने के कारण यहां पर कई विभागों के कार्यालय हैं और एक सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र भी है।  बीरोंखाल चारों दिशाओं से सडक मार्ग से जुडा हुआ है इसलिए यहां तक पहुंचना सरल और सुगम है।

तीलू रौतेली की रणभूमि - बीरोंखाल

बीरोंखाल में ठीक ब्‍लॉक मुख्‍यालय के नीचे वीरबाला तीलू रौतेली की मूर्ति लगी हुई परन्‍तु बहुत ही कम लोगों को जानकारी होगी कि यह मूर्ति क्‍यों लगाई गयी है और इस स्‍थान का नाम बीरोंखाल क्‍यों  है, तो चलिए मैं आपको बताता हूं। 

ब्‍लॉक परिसर

16वीं सदी की घटना है जब कंत्‍यूरों का अत्‍याचार अपने चरम पर था, उनके अत्‍याचार से पूरा क्षेत्र त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा था, इसी बीच चौंदकोट के थोकदार भुप्‍पु रौत और उनके दोनों बेटे कंत्‍यूरों के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्‍त हुए। भुप्‍पु रौत की एक बेटी भी थी जिसका नाम था तीलू, जिसे बाद में तीलू रौतेली के नाम से जाना गया। इस घटना के बाद तीलू रौतेली के भीतर प्रतिशोध की ज्‍वाला दहक उठी और अपने पिता व भाईयों तथा अन्‍य प्रियजनों की मृत्‍यु का प्रतिशोध लेने के लिए तीलू को 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में उतरने का निर्णय लिया। 

पूरी कहानी को पढ़ने के लिए आप इस पुस्‍तक को खरीद सकते हैं जिसमें इस पूरी घटना का विस्‍तार से वर्णन किया गया है।

तीलू रौतेली 7 वर्षों तक निरंतर युद्ध करती रही और एक भी युद्ध में उसे हार का सामना नहीं करना पड़ा। इसी घटनाक्रम में तीलू रौतेली डुमैला डांडा में कंत्‍यूरों से निर्णायक युद्ध लड़ रही थी और इसी युद्ध में उसके गुरु और मामा शिब्‍बू पोखरियाल ने अदम्‍य साहस का परिचय देते हुए अपना बलिदान दिया था। 

शिब्‍बू पोखरियाल के अदम्‍य साहस को देखते हुए तीलू रौतेली ने घोषणा की - 
साथियों आज से 

शिब्‍बू पोखरियाल जी के इस बलिदान स्‍थल को बीरोंखाल के नाम से जाना जायेगा। 

इसी के पश्‍चात इसका नाम बीरोंखाल पड़ा। 

बीरोंखाल में पोली टेक्‍नीक संस्‍थान, इंटर कॉलेज, कन्‍या इंटर कॉलेज, प्राथमिक विद्यालय, सरस्‍वती शिशु मंदिर, ब्‍लॉक मुख्‍यालय, बाल विकास परियोजना अधिकारी, पशु चिकित्‍सा केन्‍द्र, सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र, डाक घर, भारतीय स्‍टेट बैंक, सहकारी बैंक, एटीएम तथा छोटे-छोटे होटल हैं। बीरोंखाल तहसील भी है किन्‍तु कार्यालय स्‍यूंसी नगर में है।

बीरोंखाल ब्‍लॉक के अंतर्गत आने वाले दर्शनीय स्‍थल

1. कालिंका माता मंदिर

मॉंं कालिंका का मंदिर बीरोंखाल से लगभग 4-5 किलोमीटर्स की दूरी पर है, यहां से आपको प्रकृति का अद्भुत दृश्‍य दिखायी देता है, दायीं ओर आपको हिमालय की चोटियां दिखायी देती है जिनमें त्रिशूल, चौखंभा, हाथी पर्वत आदि प्रमुख है। सर्दियों में श्रद्धालू  बर्फबारी का आनंद ले सकते हैं।

कालिंका मां काली का स्‍वरुप है। यह कालिंका मां का मंदिर उत्‍तर भारत के उत्‍तराखंड राज्‍य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह अल्‍मोड़ा जिले की सीमा के नजदीक पड़ता है। मंदिर का अस्तित्‍व कई सदियों पुराना है लेकिन अब इसके ढांचे को बदल दिया गया है और नया रुप-रंग दे दिया गया है।

मां कालिंका का मंदिर समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और एक समतल, खाली और पथरीली जगह पर बना है एवम् हरियाली से घिरा है यहां से आपको 360 डिग्री का नजारा दिखाई देता है। इसके चारों चीड़, बांज, बुरांस एवं अन्‍य कई प्रजातियों के पेड़ो से भरा जंगल है। मंदिर तक पहुंचने के लिए गढ़वाल और कुमाउं दोनों ओर से कई रास्‍ते हैं। चढ़ाई आसान से मध्‍यम और कठिन है। यहां से दूधातोली पर्वतों, त्रिशूल श्रृंखला और साथ ही पश्चिम गढ़वाल के बंदरपूंछ रेंज के पर्वतों का शानदार नजारा दिखायी देता जो आपको मंत्र-मुग्‍ध कर देता है।

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2. जोगी मढ़ी के बुग्‍याल

जोगी मढ़ी चोटी पर लेकिन समतल जगह पर स्थित है और आस-पास बड़े-बड़े खेत हैं जो इस जगह की खूबसूरती को बहुत बढ़ा देते हैं। यहां पर एक गेस्‍ट हाउस भी है जो ठहरने का अच्‍छा विकल्‍प हो सकता है। सर्दियों में यहां भी बहुत बर्फबारी होती है। 

आप सराईंखेत या बीरोंखाल से स्‍यूंसी, भैंसोणा होते हुए यहां पहुंच सकते हैं। यहां का मौसम गर्मियों में भी खुशनुमा रहता है, दिन के समय जहां हल्‍की गर्मी होते हैं वहीं रात को काफी ठंड रहती है।

  

3. गुजडू गढी 

गुजुडू गढ़ी गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक है, यह ऐतिहासिक होने के साथ-साथ घूमने के लिए बहुत अच्‍छी जगह भी है। जब आप चोटी पर पहुंचते हैं तो आपको कुमाऊं और गढ़वाल का आश्‍चर्यजनक दृश्‍य दिखायी पड़ता है लेकिन जो चीज इस जगह को विशेष बनाती है वह है यहां की गुफाएं और उनके अंदर बनी सीढियां और कुएं।

यह स्‍थान दीवा डांडा (जंगल) के मध्‍य में स्थित है और समुद्रतल से इसकी ऊंचाई लगभग 2400 मीटर है यहां का मौसम गर्मियों में सुहावना और सर्दियों में बहुत ठंडा रहता है, सर्दियों में यहां बर्फबारी भी होती है जिससे यहां का नजारा और भी मनमोहक हो जाता है।

इसके बारे में मैंने अलग से लेख लिखा है कृपया विस्‍तार से पढने के लिए नीचे दी गयी फोटो पर क्लिक करें।


4. दीबा माता का मंदिर

दीबा डांडा (जंगल) पट्टी खाटली का सबसे मुख्‍य और बड़ा जंगल है यह पूर्व से पश्चिम तक 15 किमी तक फैला हुआ है। यहां पर बांज की कई प्रजातियों जैसे कि खार्सू, मोरु आदि के अतिरिक्‍त अयांर, बुरांस, काफल, चीड़ जैसे अनेकों पेड़ों से भरा हुआ है। जंगल में हिरन, बारहसिंगा, गुलदार, भालू आदि जैसे जंगली जानवर रहते हैं। जंगल की चोटी पर बने दीबा माता के मंदिर से आपको पूरा गढ़वाल, कुमाऊं और हिमालय का अद्भुत दृश्‍य दिखाई देता है। दीबा मंदिर की समुद्रतल से ऊंचाई 2500 मीटर से अधिक है यहां से आपको त्रिशूल, चौखंभा, हाथी पर्वत जैसी पर्वत चोटियां दिखाती देती हैं।

 इसके बारे में मैंने अलग से लेख लिखा है कृपया विस्‍तार से पढने के लिए नीचे दी गयी फोटो पर क्लिक करें।

5. बिनसर महादेव

यूं तो हमारे क्षेत्र में अनेकों प्रसिद्ध जगहें हैं जैसे कि मां कालिंका का मंदिर, दीवा मां का मंदिर, गुजडू गढी की अदभुत गुफाएं इत्‍यादि उन्‍हीं में से एक है बिन्‍देश्‍वर महादेव (बिनसर महादेव)। यह बिसौणा गांव में स्थित है जो पौड़ी गढ़वाल के थलीसैण ब्‍लॉक के चौथान क्षेत्र में आता है, इसकी ऊंचाई समुद्रतल से 2480 मीटर है। यहां तक पहुंचने के लिए आपको थलीसैन से पीठसैण तक 12 किलोमीटर टैक्‍सी या कार से और आगे का रास्‍ता पैदल ही तय करना होता है जिसमें लगभग 2-3 घंटे लगते हैं रास्‍ता ज्‍यादा मुश्किल नहीं है लेकिन लम्‍बा है। जैसे ही आप पीठसैण से चलना शुरु करते हैं आपको अनेक चमकदार चट्टानें मिलेंगी जो धूप में चमकते हुए बहुत अद्भुत लगती हैं उसके बाद का रास्‍ता घने जंगल के बीच से होकर गुजरता है, यहां आपको अनेक प्रजातियों के घने वृक्ष मिलेंगे। 

इसके बारे में मैंने अलग से लेख लिखा है कृपया विस्‍तार से पढने के लिए नीचे दी गयी फोटो पर क्लिक करें।


6. गुजिया महादेव 

सिंदूडी तल्‍ली, कोठिला और डांगू ग्राम सभाओं के मध्‍य स्थित खटलगढ़ या खडलगढ़ नदी के किनारे बसा यह शिवालय बहुत ही प्रसिद्ध है। सुंदर मंदिर प्रांगण के साथ यहां पर धर्मशालाएं बनी हुई जिस कारण श्रद्धालू यहां बिना किसी कठिनाई के विश्राम कर सकते हैं। महाशिव रात्रि के अवसर पर यहां बहुत चहल-पहल रहती है। नदी का कल-कल बहता हुआ पानी आपके कानों में किसी कर्णप्रिय संगीत के समान महसूस होता है। 

सावन के महीने में शिवालय में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। प्रत्‍येक सोमवार को बडी संख्‍या में श्रद्धालू यहां पूजा करने आते हैं। सावन के तीसरे सोमवार को शिवालय पूजन होता है जिसके दौरान यहां भजन-कीर्तन और भंडारे का आयोजन किया जाता है।

यहां पहुंचने के लिए आपको सिरोली और सिन्‍दूडी में उतरकर लगभग 200-३०० मीटर पैदल चलना होता है। 

7.  पोली टेक्‍नीक इंस्‍टीट्यूट

बीरोंखाल से 1 किमी की दूरी पर नौगॉंव में बना यह इंस्‍टीट्यूट बहुत खूबसूरत है। यहां पर पूरे राज्‍य के छात्र पढने आते हैं। यहां अभी केवल सिविल इंजीनियरिंग ही पढाई जाती है।


मौसम: यहां का मौसम सर्दियों में बहुत ठंडा और गर्मियों में सुहावना रहता है, दिसंबर से फरवरी तक बर्फबारी भी होती है।

पारंपरिक पहनावा

युवा पीढ़ी तो पश्चिमी कपड़े ही पहनते है लेकिन बुजुर्ग महिलायें आज भी गत्युड़ (धोती) पहनती हैं। वर्तमान में युवा महिलाएं अपनी संस्कृति की ओर आकर्षित हो रही हैं जो शुभ संदेश है।

पारम्परिक गढ़वाली पहनावा


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इन्‍हें भी पढ़ें : उत्‍तराखंड के 5 सबसे लोकप्रिय विन्‍टर ट्रेकिंग डेस्‍टीनेशन




Tuesday, August 2, 2022

उत्‍तराखंड के 5 सबसे लोकप्रिय विन्‍टर ट्रेकिंग डेस्‍टीनेशन

Uttarakhand's 5 Popular winter trekking destinations 

दोस्‍तों आज मैं आपको उत्‍तराखंड के 5 ट्रेकिंग डेस्‍टीनेशन्‍स के बारे में संक्षिप्‍त में बताने जा रहा हूं। इन सभी जगहों पर मैं व्‍यक्तिगत रुप से गया हूं इसलिए जो कुछ मैंने लिखा है वह मेरे अनुभवों पर आधारित है। 

इन सभी जगहों के बारे में मैंने विस्‍तार से लिखा है अधिक जानकारी के लिए ब्‍लॉग के होम पेज पर जायें।

1. दयारा बुग्‍याल विंटर ट्रेक (Dayara Bugyal Winter Trek)

Dayara Bugyal Top


समुद्र तल से 3000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल घास के ढलुआ मैदान हैं। यहां से आप हिमालय की आश्‍चर्य चकित कर देने वाली चोटियों के दर्शन कर सकते हैं, गर्मियों के बाद जब सर्दियों में इन मैदानों की मखमली घास पर बर्फ पड़ती है तो यह सैलानियों और स्‍कीइंग के दीवानों का अड्डा बन जाती है यहां सर्दियों में स्‍कीइंग भी सिखायी जाती है । यहां एक अनोखा त्‍योहार मनाया जाता है जिसका नाम बटर फेस्‍टीबल है जिसमें गांव वाले और सैलानी एक दूसरे को मक्‍खन लगाकर होली खेलते हैं। गांव वाले पारंपरिक वेश-भूषा में लोक-नृत्‍य करते हैं, मट्ठा और मक्‍खन की होली का आगाज राधा कृष्‍ण के नृत्‍य के साथ किया जाता है, इसलिए इस समय यहां काफी चहल-पहल रहती है।

दयारा बुग्‍याल पहुंचने के लिए देहरादून से बस से उत्‍तरकाशी तक जा सकते हैं और उसके बाद टैक्‍सी पकड़ कर बारसू पहुंचा जा सकता है, बारसू एक खूबसूरत गांव है यहां के घर पारंरिक शैली के हैं, यहाँ के लोगों की आमदनी पर्यटन, खेती और मवेशी पालन पर निर्भर है, देहरादून से यहां तक पहुंचने में 7-8 घंटे का समय लगता है। यह रुट सीजन (मई-जून) में काफी व्‍यस्‍त रहता है क्‍योंकि यमनोत्री और गंगोत्री के लिए भी यही रुट है।

यहां ठहरने की उचित व्‍यवस्‍था है लेकिन बिना व्‍यवस्‍था किए जाने पर खाने-पीने की व्‍यवस्‍था करने में परेशानी हो सकती है, यहां 2-3 छोटी-छोटी दुकानें हैं जहां जरुरत का सामान मिलना मुश्किल हो सकता है इसलिए अपनी पूरी व्‍यवस्‍था करके चलना सही रहता है।

बारसू से अगला बेस कैंप लगभग 5 किमी. दूर है और बारसू से दयारा बेस कैम्‍प तक पहुंचने में लगभग 4 घंटे का समय लगता है, रास्‍ता खड़ी चढ़ाई वाला है और सर्दियों में यह बर्फ से ढका रहता है इसलिए पूरी तैयारी के साथ जाना चाहिए।

एक दूसरा रास्‍ता भी है जो रैथाल गांव से होकर जाता है वहां से 7 किमी पैदल चलते हुए यहां पहुंचा जा सकता है।

ट्रैक का स्‍तर: 

थोड़ा सा मुश्किल है।

मौसम : 

वैसे तो खुशनुमा रहता है लेकिन सर्दियों में ठंड बहुत ज्‍यादा रहती है।

कहां रुकें

यहां पर GMVN का गेस्‍ट हाउस है इसके अलावा आप होम स्‍टे या कैम्‍प लगाकर रह सकते हैं, गेस्‍ट हाउस में आपको ज्‍यादा सुविधाएं नहीं मिलेंगी इसलिए पूरी व्‍यवस्‍था के साथ जाना ठीक रहता है।

2. तुंगनाथ - चंद्रशिला समिट: शिव के दर्शनों के साथ प्रकृति के नजारों के भी दर्शन कीजिए

https://thetrekkersstory.blogspot.com/
Tugnath Temple (c)


ॠषिकेश से 211 किमी. की दूरी पर रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ में स्थि‍त तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव के पंच केदारों – केदारनाथ, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, मद्धयमाहेश्वरऔर कल्‍पेश्‍वर में से एक है जिन्‍हें तृतीय केदार कहा जाता है और भगवान शिव के अंगों के तौर पर जाना जाता है। समुद्रतल से लगभग 3700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिवजी का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर एक हजार साल पुराना है।

धार्मिक स्‍थल होने के साथ-साथ यह बहुत मशहूर ट्रेकिंग डेस्‍टीनेशन भी है। चोपता से तुंगनाथ बाबा के मंदिर की दूरी लगभग साढ़े तीन किलोमीटर है और वहां से दो किलोमीटर आगे चंद्रशिला समिट है। मंदिर तक चढ़ाई थोड़ी मुश्किल है और समुद्र तल से ऊंचाई अधिक होने से सांस लेने में थोड़ी दिक्‍कत हो सकती है मगर रास्‍ते पर चलते हुए आपको चौखंभा, नंदा देवी, नीलकंठ, कोमेट और केदारनाथ पर्वतों की झलक देखने को मिलती है

ऊखीमठ मार्केट से टैक्‍सी पकड़कर सारी गांव पहुंचें यहां से देवरिया ताल के लिए चढ़ाई शुरु होती है, रास्‍ता काफी अच्‍छा बना हुआ है लेकिन थोड़ी मुश्किल चढ़ाई है देवरिया ताल पहुंचने में पहुंचने में करीब 2 घंटे लगते हैं। इसे यक्ष ताल भी कहा जाता है ऐसा माना जाता है कि महाभारत में यहीं पर यक्ष ने युद्धिष्‍ठर से प्रश्‍न पूछे थे। यहां ताल के अलावा घास का बहुत बड़ा बुग्‍याल है जहां से चौखंभा पर्वत का नजारा खूबसूरत दिखायी देता है और आपकी थकान को पूरी तरह मिटा देता है।

कब जायें:

अप्रैल, मई जून, जुलाई, सितंबर, अक्‍टूबर और नवंबर यहां जाने के लिए सबसे अच्‍छे महीने हैं। बरसात में यहां का नजारा ही कुछ और होता है चारो तरफ हरे-हरे बुग्याल आपका मन मोह लेते हैं।

सर्दियों में यहां बहुत ज्‍यादा बर्फबारी होती है इसलिए मंदिर तक पहुंचना मुश्किल होता है इसके अलावा मंदिर भी बंद होता है।

ट्रैक का स्‍तर: 

आसान से थोड़ा सा मुश्किल

मौसम : 

वैसे तो खुशनुमा रहता है लेकिन सर्दियों में ठंड बहुत ज्‍यादा रहती है।

कैसे जायें:

तुंगनाथ जाने के लिए आप दिल्‍ली से सीधी बस ले सकते हैं या ॠषिकेश से उत्तराखंड  रोडवेज की बस पकड़ सकते हैं या रेल मार्ग से हरिद्वार तक और आगे बस से जा सकते हैं, रात को करीब 8 बजे कश्‍मीरी गेट से गुप्‍त काशी के लिए बस चलती है जो सुबह करीब 10 बजे कुंड छोड़ देती है वहां से टैक्‍सी लेकर ऊखीमठ जा सकते हैं।

कहां ठहरें:

अगर आप देवरिया ताल जाना चाहते हैं तो आप ऊखीमठ में GNVN या अन्‍य होटलों में ठहर सकते हैं।

यदि आप सीधे तुंगनाथ जाना चाहते हैं तो आप चोपता में ठहर सकते हैं, यहां पर भी ठहरने की पूरी व्‍यवस्‍था है।

3. श्री बद्री नाथ दर्शन और क्‍वारी पास ट्रेक (Badrinath and Kuari Pass)

Shri Badrinath Dhaam 

उत्‍तराखंड के चार धामों और इनके महत्‍व के बारे में लगभग सभी जानते हैं इन्‍हीं में से एक धाम है चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बद्रीनाथ (Badrinath) धाम, यह भगवान विष्‍णु के एक रुप बदरी को समर्पित मंदिर है, ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्‍णु ने यहां पर तपस्‍या करनी शुरु की तो वहां बहुत ज्‍यादा बर्फबारी होने लगी और मां लक्ष्‍मी से यह देखा न गया तो उन्‍होंने बेर (बदरी) के पेड़ का अवतार लेकर उनकी कई वर्षों तक धूप, बारिश और हिमपात से रक्षा की, कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ (Badrinath) के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।

यहां आकर भक्‍तों को अनंत सुख का एहसास होता है और तप्‍त कुंड में स्‍नान करने से मन की पीड़ाओं से मुक्ति मिल जाती है और उनका मन अलकनंदा (Alaknanda) नदी के पानी की तरह निर्मल हो उठता है।

आप तरह प्‍लान कर सकते हैं – पहला दिन श्री ब्रदीनाथ धाम। दूसरा दिन – माणा गांव घूमते हुए वापिस जोशीमठ आकर औली होते हुए गौरसों बुग्‍याल बेसकैम्‍प में रात गुजारें। तीसरा दिन - क्‍वारी पास ट्रेक करते हुए खुलारा में रुकें। चौथा दिन - खुलारा - ढाक - जोशीमठ - रुदप्रयाग - देव प्रयाग - ऋषिकेश

कब जायें : 

अगर श्री ब्रदीनाथ धाम की बात करें तो मई से अक्‍टूबर तक ही यहां का मौसम जाने लायक रहता है इनमें से भी जून से अगस्‍त तक भारी बारिश होती है जिसके कारण हाइवे बार-बार बंद हो जाता है और यात्री बीच में फंस जाते हैं। मेरी राय में अक्‍टूबर का महीना सबसे उत्‍तम रहता है। भीड़-भाड़ भी नहीं होती है और रास्‍ता भी खुला रहता है।

क्‍वारी पास ट्रेक के लिए आप पूरे साल जा सकते हैं लेकिन सर्दियों में यहां बहुत ज्‍यादा बर्फबारी होती है। 

ट्रैक का स्‍तर: 

अगर श्री ब्रदीनाथ धाम की बात करें तो यह बहुत आसान है क्‍योंकि यह सड़क मार्ग से जुडा है लेकिन कुवारी पास ट्रेक थोड़ा मुश्किल है। 

मौसम : 

वैसे तो खुशनुमा रहता है लेकिन सर्दियों में ठंड बहुत ज्‍यादा रहती है।

कहां ठहरें: 

यहां पर ठहरने का एकमात्र उपाय टेंट हैं 

4. नाग टिब्‍बा - एक बढ़िया वीकेंड ट्रिप (Naag Tibba)

Naag Devta Mandir

नाग टिब्‍बा टिहरी गढ़वाल, उत्‍तराखंड का काफी मशहूर ट्रेक है, इसकी समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 3000 मीटर है जो पहाड़ों की राजधानी मसूरी से 85 किमी. की दूरी पर है। स्‍थानीय भाषा में नागटिब्‍बा का मतलब होता है नाग देवता का स्‍थान, यहां पर नाग देवता का मंदिर हैं जहां स्‍थानीय लोग अपने पशुओं की रक्षा करने के लिए नाग देवता की पूजा करने के लिए जाते हैं। यहां से दिखने वाले खूबसूरत नजारों और पहुंचने की आसानी के कारण ट्रेकर्स और सैलानियों की यह मनपंसद जगहों में से एक है साथ ही यहां पर सूर्योदय और सूर्यास्‍त का मनमोहक नजारा देखते ही बनता है यदि आप जनवरी में जाते हैं तो आपको यहां विंटरलाइन देखने अवसर मिलता है यानि सूरज को अपनी तरफ अस्‍त होते हुए और दूसरी तरफ उगते हुए देख सकते हैं। सर्दियों में आप यहां बर्फ का आनंद भी ले सकते हैं जबकि बरसात में हरे-भरे जंगल और बुगयाल अनुभव को और भी हसीन बना देते हैं।

नागटिब्‍बा जाने के तीन रास्‍ते हैं, पहला देवलसारी से, दूसरा पंतवाणी से और तीसरा श्रीकोट से जाता है। देवलसारी की तरफ से जाने पर आपको मसूरी वन विभाग से अनुमति लेनी होती है, दूसरा रास्‍ता श्रीकोट से जाता है जो देहरादून से 110 किमी. की दूरी पर है, यह रास्‍ता देवलसारी और पंतवाणी की अपेक्षा छोटा है, यहां से 5 किमी. चलते हुए आप नाग टिब्‍बा टॉप पर पहुंच सकते हैं जहां से आपको हिमालय का बहुत ही शानदार नजारा दिखायी देता है। यहां से टॉप तक पहुचंने में 3-4 घंटे का समय लगता है, इसी प्रकार देवलसारी से यहां तक का पैदल सफर लगभग 13 किमी. का है जिसमें 7-8 घंटे लग सकते हैं, जबकि पंतवाणी से टॉप तक पहुंचने में लगभग 5-6 घंटे लगते हैं और रास्‍ता चढ़ाई वाला है।

कब जायें : 

अक्‍टूबर से अप्रैल के मध्‍य खासकर सर्दियों में जायें क्‍योंकि इस दौरान यहां बर्फबारी होती है।

ट्रैक का स्‍तर: 

थोड़ा सा मुश्किल है क्‍योंकि शुरुआत में बहुत खडी चढाई है।

मौसम : 

वैसे तो खुशनुमा रहता है लेकिन सर्दियों में ठंड बहुत ज्‍यादा रहती है।

कहां ठहरें: 

यहां पर ठहरने का एकमात्र उपाय टेंट हैं 

5. ब्रह्मताल विंटर ट्रैक (Brahmtaal Winter Trek)

Khamila Top

ब्रह्मताल ट्रेक के लिए आपको लोहाजंग पहुंचना होगा यह गढ़वाल के चमोली जिले में पड़ता है इसकी समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 2350 मीटर है। लोहाजंग रुपकुंड, बेदनी बुगयाल, ब्रह्मताल ट्रेक्‍स के लिए बेस स्‍टेशन है। यहां से आपको नंदघुमठी का मनमोहक नजारा दिखायी देता है।

ब्रह्मताल जाने का असली मजा सर्दियों में ही है क्‍योंकि जब बर्फ पड़ती है तो यह ताल जम जाता है और आस-पास की पर्वत श्रृंखलाओं का प्रतिबिंब इसमें दिखने लगता है।

कैसे पहुंचे : 

लोहाजंग पहुंचने के दो रास्‍ते हैं - 1. दिल्‍ली - काठगोदाम - अल्‍मोड़ा- बैजनाथ - ग्‍वालदम - देवाल होते हुए लोहाजंग पहुंचना

2. दिल्‍ली - ॠषिकेष - देवप्रयाग - श्रीनगर - रुद्रप्रयाग - कर्णप्रयाग - थराली - ग्‍वालदम - देवाल होते हुए लोहाजंग पहुंचना

कब जायें: 

जुलाई और अगस्‍त को छोड़कर कभी भी जा सकते हैं

कहां रुकें: 

लोहा जंग में GNVN तथा बहुत सारे छोटे होटल और लॉज हैं जो ऑफ सीजन में काफी कम दाम पर मिल जाते हैं। सीजन यानि अप्रैल - जून और सितंबर - अक्‍टूबर के बीच पहले से व्‍यवस्‍था करके जायें क्‍योंकि यहां बहुत भीड़-भाड़ रहती है।

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